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मंत्री परिषद (Council of Ministers)

मंत्री परिषद (Council of Ministers) भारत की संसदीय प्रणाली में वास्तविक कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करने वाला निकाय है। यह प्रधान मंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है और राष्ट्रपति को उसके कार्यों में सहायता और सलाह देने के लिए जिम्मेदार है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है, जो भारतीय लोकतंत्र में सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करती है।

1. संवैधानिक प्रावधान और संरचना (Constitutional Provisions and Composition)

मंत्री परिषद की संरचना और कार्य भारतीय संविधान के भाग V में उल्लिखित हैं।

1.1. संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान का भाग V (अनुच्छेद 74 और 75) मंत्री परिषद से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 74: राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान प्रधान मंत्री होगा। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करेगा। (42वें संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को सलाह मानने के लिए बाध्य किया गया, 44वें संशोधन द्वारा एक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेजने की शक्ति दी गई)।
  • अनुच्छेद 75: प्रधान मंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधान मंत्री की सलाह पर की जाएगी।

1.2. संरचना और आकार

  • मंत्री परिषद में प्रधान मंत्री और अन्य मंत्री शामिल होते हैं।
  • 91वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003: मंत्रिपरिषद के सदस्यों की कुल संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी।

1.3. मंत्रियों की श्रेणियाँ

  • कैबिनेट मंत्री (Cabinet Ministers): ये मंत्रिपरिषद के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य होते हैं और प्रमुख मंत्रालयों (जैसे रक्षा, वित्त, गृह, विदेश) का नेतृत्व करते हैं। ये कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते हैं और महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेते हैं।
  • राज्य मंत्री (Ministers of State): इन्हें या तो स्वतंत्र प्रभार दिया जा सकता है (स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री) या कैबिनेट मंत्रियों की सहायता के लिए नियुक्त किया जा सकता है। स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री कैबिनेट बैठकों में तभी भाग लेते हैं जब उनके मंत्रालय से संबंधित कोई विशेष मामला चर्चा में हो।
  • उप-मंत्री (Deputy Ministers): ये कैबिनेट मंत्रियों या राज्य मंत्रियों की सहायता करते हैं और उन्हें संसदीय प्रक्रियाओं में मदद करते हैं। ये सीधे किसी मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार नहीं संभालते।

2. मंत्री परिषद और कैबिनेट (Council of Ministers vs. Cabinet)

मंत्री परिषद एक व्यापक निकाय है, जबकि कैबिनेट उसका एक छोटा और अधिक शक्तिशाली हिस्सा है।

  • मंत्री परिषद: यह एक बड़ा निकाय है जिसमें सभी तीन श्रेणियों के मंत्री (कैबिनेट, राज्य, उप-मंत्री) शामिल होते हैं। यह सैद्धांतिक रूप से सभी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करती है।
  • कैबिनेट: यह मंत्री परिषद का एक छोटा और अधिक शक्तिशाली आंतरिक घेरा है, जिसमें केवल कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं। यह सरकार की नीतियों का निर्धारण करने वाला मुख्य निर्णय लेने वाला निकाय है।
  • कैबिनेट मंत्री परिषद के लिए एक ‘रसोईघर कैबिनेट’ (Kitchen Cabinet) या ‘दिमाग’ के रूप में कार्य करती है।
  • संविधान में मूल रूप से ‘कैबिनेट’ शब्द का उल्लेख नहीं था; इसे 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा अनुच्छेद 352 में जोड़ा गया था।

3. मंत्री परिषद की नियुक्ति और कार्यकाल (Appointment and Term of Office of Council of Ministers)

मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधान मंत्री की सलाह पर की जाती है।

  • नियुक्ति: राष्ट्रपति प्रधान मंत्री की सलाह पर मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
  • शपथ: राष्ट्रपति मंत्रियों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाता है।
  • संसद सदस्यता: एक मंत्री को संसद के किसी भी सदन का सदस्य होना चाहिए। यदि नियुक्ति के समय वह सदस्य नहीं है, तो उसे 6 महीने के भीतर किसी भी सदन का सदस्य बनना होगा, अन्यथा उसे मंत्री पद छोड़ना होगा।
  • कार्यकाल: मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं (अनुच्छेद 75(2))। हालांकि, इसका अर्थ यह है कि वे प्रधान मंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा हटाए जा सकते हैं।

4. मंत्री परिषद की जिम्मेदारियाँ (Responsibilities of the Council of Ministers)

मंत्री परिषद संसदीय प्रणाली में अपनी जिम्मेदारियों के लिए जानी जाती है।

4.1. सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility) – अनुच्छेद 75(3)

  • मंत्री परिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
  • इसका अर्थ है कि सभी मंत्री एक टीम के रूप में कार्य करते हैं। यदि लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो पूरी मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है, भले ही कुछ मंत्रियों को व्यक्तिगत रूप से अविश्वास का सामना न करना पड़ा हो।
  • ‘वे एक साथ तैरते हैं और एक साथ डूबते हैं।’

4.2. व्यक्तिगत उत्तरदायित्व (Individual Responsibility) – अनुच्छेद 75(2)

  • प्रत्येक मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।
  • इसका अर्थ है कि एक मंत्री को प्रधान मंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है, भले ही मंत्रिपरिषद को लोकसभा में बहुमत प्राप्त हो।

4.3. कानूनी उत्तरदायित्व का अभाव

  • भारत में मंत्रियों का कोई कानूनी उत्तरदायित्व नहीं है (ब्रिटेन के विपरीत)। राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा किए गए किसी भी कार्य पर किसी भी न्यायालय में सवाल नहीं उठाया जा सकता है।

5. मंत्री परिषद के कार्य (Functions of the Council of Ministers)

मंत्री परिषद सरकार के सभी प्रमुख कार्यों को करती है।

  • नीति निर्माण: सरकार की नीतियों का निर्धारण और उन्हें संसद में प्रस्तुत करना।
  • कानून बनाना: विधेयकों का मसौदा तैयार करना और उन्हें संसद में पेश करना।
  • बजट और वित्त: वार्षिक बजट तैयार करना और वित्तीय नीतियों का प्रबंधन करना।
  • प्रशासन का संचालन: विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के माध्यम से कानूनों और नीतियों को लागू करना।
  • नियुक्तियाँ: राष्ट्रपति को विभिन्न महत्वपूर्ण नियुक्तियों के संबंध में सलाह देना।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध: विदेश नीति का संचालन और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर बातचीत करना।
  • आपातकालीन शक्तियाँ: आपातकाल के दौरान निर्णय लेना (कैबिनेट की सिफारिश पर राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा करते हैं)।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

मंत्री परिषद भारतीय संसदीय प्रणाली की वास्तविक कार्यकारी शक्ति है, जो प्रधान मंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है। यह राष्ट्रपति को उसके कार्यों में सहायता और सलाह देती है और सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। कैबिनेट, जो मंत्री परिषद का एक छोटा और अधिक शक्तिशाली हिस्सा है, सरकार की नीतियों का निर्धारण करने वाला मुख्य निर्णय लेने वाला निकाय है। मंत्री परिषद नीति निर्माण, कानून बनाने, प्रशासन चलाने और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों सहित सरकार के सभी प्रमुख कार्यों को करती है। इसकी सामूहिक और व्यक्तिगत जवाबदेही भारतीय लोकतंत्र में सरकार की पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करती है।

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