राज्य में मंत्री परिषद (Council of Ministers in State) भारतीय संसदीय प्रणाली में राज्य स्तर पर वास्तविक कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करने वाला निकाय है। यह मुख्यमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है और राज्यपाल को उसके कार्यों में सहायता और सलाह देने के लिए जिम्मेदार है। राज्य मंत्री परिषद सामूहिक रूप से राज्य विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है, जो राज्य में सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करती है।
1. संवैधानिक प्रावधान और संरचना (Constitutional Provisions and Composition)
राज्य मंत्री परिषद की संरचना और कार्य भारतीय संविधान के भाग VI में उल्लिखित हैं।
1.1. संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान का भाग VI (अनुच्छेद 163 और 164) राज्य कार्यपालिका से संबंधित है, जिसमें मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद भी शामिल हैं।
- अनुच्छेद 163: राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा। राज्यपाल अपने विवेकाधीन कार्यों को छोड़कर, मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करेगा।
- अनुच्छेद 164: मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
1.2. संरचना और आकार
- राज्य मंत्री परिषद में मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री शामिल होते हैं।
- 91वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003: राज्य मंत्री परिषद के सदस्यों की कुल संख्या राज्य विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी। (हालांकि, मंत्रियों की संख्या 12 से कम नहीं होगी)।
1.3. मंत्रियों की श्रेणियाँ
- कैबिनेट मंत्री (Cabinet Ministers): ये मंत्रिपरिषद के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य होते हैं और प्रमुख मंत्रालयों का नेतृत्व करते हैं। ये कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते हैं और महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेते हैं।
- राज्य मंत्री (Ministers of State): इन्हें या तो स्वतंत्र प्रभार दिया जा सकता है (स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री) या कैबिनेट मंत्रियों की सहायता के लिए नियुक्त किया जा सकता है। स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री कैबिनेट बैठकों में तभी भाग लेते हैं जब उनके मंत्रालय से संबंधित कोई विशेष मामला चर्चा में हो।
- उप-मंत्री (Deputy Ministers): ये कैबिनेट मंत्रियों या राज्य मंत्रियों की सहायता करते हैं और उन्हें संसदीय प्रक्रियाओं में मदद करते हैं। ये सीधे किसी मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार नहीं संभालते।
2. राज्य कैबिनेट (State Cabinet)
राज्य कैबिनेट राज्य मंत्री परिषद का एक छोटा और अधिक शक्तिशाली आंतरिक घेरा है।
- यह राज्य मंत्री परिषद का एक छोटा और अधिक शक्तिशाली आंतरिक घेरा है, जिसमें केवल कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
- यह राज्य सरकार की नीतियों का निर्धारण करने वाला मुख्य निर्णय लेने वाला निकाय है।
- राज्य कैबिनेट राज्य मंत्री परिषद के लिए एक ‘रसोईघर कैबिनेट’ या ‘दिमाग’ के रूप में कार्य करती है।
3. मंत्रियों की नियुक्ति और कार्यकाल (Appointment and Term of Office of Ministers)
मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाती है।
- नियुक्ति: राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- शपथ: राज्यपाल मंत्रियों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाता है।
- विधानमंडल सदस्यता: एक मंत्री को राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य होना चाहिए। यदि नियुक्ति के समय वह सदस्य नहीं है, तो उसे 6 महीने के भीतर किसी भी सदन का सदस्य बनना होगा, अन्यथा उसे मंत्री पद छोड़ना होगा।
- कार्यकाल: मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं (अनुच्छेद 164(1))। हालांकि, इसका अर्थ यह है कि वे मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा हटाए जा सकते हैं।
4. मंत्री परिषद की जिम्मेदारियाँ (Responsibilities of the Council of Ministers)
राज्य मंत्री परिषद संसदीय प्रणाली में अपनी जिम्मेदारियों के लिए जानी जाती है।
4.1. सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility) – अनुच्छेद 164(2)
- राज्य मंत्री परिषद सामूहिक रूप से राज्य विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
- इसका अर्थ है कि सभी मंत्री एक टीम के रूप में कार्य करते हैं। यदि राज्य विधानसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो पूरी मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है, भले ही कुछ मंत्रियों को व्यक्तिगत रूप से अविश्वास का सामना न करना पड़ा हो।
- ‘वे एक साथ तैरते हैं और एक साथ डूबते हैं।’
4.2. व्यक्तिगत उत्तरदायित्व (Individual Responsibility) – अनुच्छेद 164(1)
- प्रत्येक मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।
- इसका अर्थ है कि एक मंत्री को मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है, भले ही मंत्रिपरिषद को राज्य विधानसभा में बहुमत प्राप्त हो।
4.3. कानूनी उत्तरदायित्व का अभाव
- भारत में मंत्रियों का कोई कानूनी उत्तरदायित्व नहीं है (ब्रिटेन के विपरीत)। राज्यपाल द्वारा किए गए किसी भी कार्य पर किसी भी न्यायालय में सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
5. मंत्री परिषद के कार्य (Functions of the Council of Ministers)
राज्य मंत्री परिषद राज्य सरकार के सभी प्रमुख कार्यों को करती है।
- नीति निर्माण: राज्य सरकार की नीतियों का निर्धारण और उन्हें राज्य विधानमंडल में प्रस्तुत करना।
- कानून बनाना: राज्य के विषयों पर विधेयकों का मसौदा तैयार करना और उन्हें राज्य विधानमंडल में पेश करना।
- बजट और वित्त: राज्य का वार्षिक बजट तैयार करना और वित्तीय नीतियों का प्रबंधन करना।
- प्रशासन का संचालन: विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के माध्यम से कानूनों और नीतियों को लागू करना।
- नियुक्तियाँ: राज्यपाल को विभिन्न महत्वपूर्ण नियुक्तियों के संबंध में सलाह देना।
- राज्य का प्रतिनिधित्व: राष्ट्रीय मंचों पर राज्य का प्रतिनिधित्व करना।
- राज्य में संकट प्रबंधन: किसी भी राज्य संकट के दौरान निर्णय लेना।
6. मंत्री परिषद के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to the Council of Ministers)
राज्य मंत्री परिषद को अपने प्रभावी कामकाज में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- गठबंधन राजनीति: यदि स्पष्ट बहुमत नहीं है, तो गठबंधन सहयोगियों के हितों को संतुलित करना और आम सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- मुख्यमंत्री का प्रभुत्व: मुख्यमंत्री की मजबूत व्यक्तित्व और बहुमत के कारण कैबिनेट कभी-कभी मुख्यमंत्री के हाथों में एक ‘रबर स्टैंप’ बन सकती है।
- केंद्र-राज्य संबंध: केंद्र सरकार और राज्यपाल के साथ संबंधों में तनाव।
- नौकरशाही का प्रभाव: नौकरशाही का नीति निर्माण और कार्यान्वयन पर प्रभाव।
- संसाधनों की कमी: राज्य सरकारों के पास अक्सर पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की कमी होती है, जिससे नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन बाधित होता है।
- आंतरिक दलगत चुनौतियाँ: अपने ही दल के भीतर असंतोष या गुटबाजी।
7. निष्कर्ष (Conclusion)
राज्य में मंत्री परिषद भारतीय संसदीय प्रणाली में राज्य सरकार की वास्तविक कार्यकारी शक्ति है, जो मुख्यमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है। यह राज्यपाल को उसके कार्यों में सहायता और सलाह देती है और सामूहिक रूप से राज्य विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। कैबिनेट, जो मंत्री परिषद का एक छोटा और अधिक शक्तिशाली हिस्सा है, राज्य सरकार की नीतियों का निर्धारण करने वाला मुख्य निर्णय लेने वाला निकाय है। राज्य मंत्री परिषद नीति निर्माण, कानून बनाने, प्रशासन चलाने और राज्य के प्रतिनिधित्व सहित सरकार के सभी प्रमुख कार्यों को करती है। इसकी सामूहिक और व्यक्तिगत जवाबदेही भारतीय लोकतंत्र में राज्य सरकार की पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करती है।