आर्थिक और वित्तीय सुधार (Economic and Financial Reforms), जिन्हें आमतौर पर उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (Liberalization, Privatization, Globalization – LPG) के रूप में जाना जाता है, भारत सरकार द्वारा 1991 में शुरू किए गए व्यापक आर्थिक परिवर्तन थे। इन सुधारों का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक खुला, बाजार-उन्मुख और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना था, जिससे आर्थिक विकास और दक्षता को बढ़ावा मिल सके।
1. पृष्ठभूमि और सुधारों की आवश्यकता (Background and Need for Reforms)
1990 के दशक की शुरुआत में भारत को एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, जिसने इन सुधारों को अपरिहार्य बना दिया।
- गंभीर आर्थिक संकट (1991):
- उच्च राजकोषीय घाटा: सरकार का खर्च उसकी आय से बहुत अधिक था।
- भुगतान संतुलन संकट (BoP Crisis): भारत के पास केवल कुछ हफ्तों के आयात के लिए विदेशी मुद्रा भंडार बचा था।
- बढ़ती मुद्रास्फीति (Inflation): कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं, जिससे आम जनता पर बोझ पड़ रहा था।
- अंतर्राष्ट्रीय ऋण: भारत पर भारी अंतर्राष्ट्रीय ऋण था और नए ऋण प्राप्त करना मुश्किल हो रहा था।
- खाड़ी युद्ध (1990-91): खाड़ी युद्ध के कारण तेल की कीमतें बढ़ गईं और विदेशों में काम करने वाले भारतीयों द्वारा भेजा जाने वाला धन (remittances) कम हो गया, जिससे संकट और गहरा गया।
- लाइसेंस राज की अक्षमता: स्वतंत्रता के बाद भारत ने एक बंद अर्थव्यवस्था और ‘लाइसेंस राज’ (Licence Raj) की नीति अपनाई थी, जिसमें उद्योगों को स्थापित करने और चलाने के लिए कई सरकारी अनुमतियों की आवश्यकता होती थी। इससे भ्रष्टाचार, अक्षमता और नवाचार की कमी हुई।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक का दबाव: संकट से निपटने के लिए, भारत को IMF और विश्व बैंक से ऋण लेना पड़ा, जिन्होंने संरचनात्मक सुधारों की शर्त रखी।
2. उदारीकरण (Liberalization)
उदारीकरण का अर्थ है अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण और प्रतिबंधों को कम करना, जिससे निजी क्षेत्र को अधिक स्वतंत्रता मिले।
- औद्योगिक क्षेत्र में सुधार:
- लाइसेंस राज का अंत: अधिकांश उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया। केवल कुछ रणनीतिक क्षेत्रों (जैसे रक्षा, परमाणु ऊर्जा) में ही लाइसेंसिंग जारी रही।
- एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (MRTP Act) का निरसन: कंपनियों के आकार और विस्तार पर लगे प्रतिबंधों को हटा दिया गया।
- उत्पादन क्षमता पर लगे प्रतिबंधों को हटाना।
- वित्तीय क्षेत्र में सुधार:
- बैंकों, बीमा और पूंजी बाजार में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना।
- विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) को भारतीय पूंजी बाजार में निवेश करने की अनुमति।
- ब्याज दरों का विनियमन।
- कर सुधार:
- आयकर और कॉर्पोरेट कर दरों में कमी।
- सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क में कमी।
- विदेशी विनिमय सुधार:
- भारतीय रुपये को आंशिक रूप से परिवर्तनीय बनाना।
- विदेशी मुद्रा बाजार को उदार बनाना।
3. निजीकरण (Privatization)
निजीकरण का अर्थ है सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSUs) के स्वामित्व या प्रबंधन को निजी क्षेत्र में स्थानांतरित करना।
- उद्देश्य:
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की दक्षता और उत्पादकता में सुधार करना।
- सरकारी राजस्व बढ़ाना और राजकोषीय घाटे को कम करना।
- प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना।
- तरीके:
- विनिवेश (Disinvestment): सरकारी कंपनियों में शेयरों की बिक्री।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजी क्षेत्र को पूर्ण हस्तांतरण।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना।
- प्रभाव: निजीकरण से कुछ क्षेत्रों में दक्षता बढ़ी, लेकिन इसने रोजगार के नुकसान और सामाजिक कल्याण पर प्रभाव को लेकर बहस भी छेड़ दी।
4. वैश्वीकरण (Globalization)
वैश्वीकरण का अर्थ है विश्व की अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण, जिसमें वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और प्रौद्योगिकी का मुक्त प्रवाह शामिल है।
- उद्देश्य:
- भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना।
- विदेशी निवेश और प्रौद्योगिकी को आकर्षित करना।
- भारतीय उत्पादों और सेवाओं के लिए वैश्विक बाजार तक पहुंच प्राप्त करना।
- प्रमुख उपाय:
- आयात शुल्क में कमी: आयात पर लगे प्रतिबंधों और शुल्कों को कम करना।
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) और विदेशी संस्थागत निवेश (FII) को बढ़ावा: विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश की अनुमति देना।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) की सदस्यता: भारत 1995 में WTO का संस्थापक सदस्य बना, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों का पालन करना पड़ा।
- भारतीय कंपनियों को विदेशों में निवेश करने की अनुमति।
5. LPG सुधारों के प्रभाव (Impacts of LPG Reforms)
LPG सुधारों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक और दूरगामी प्रभाव पड़ा।
- सकारात्मक प्रभाव:
- उच्च आर्थिक विकास दर: भारत की जीडीपी वृद्धि दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि: विदेशी निवेश और निर्यात में वृद्धि के कारण विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा।
- प्रतिस्पर्धा में वृद्धि: उद्योगों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी, जिससे उत्पादों की गुणवत्ता और दक्षता में सुधार हुआ।
- उपभोक्ता विकल्प: उपभोक्ताओं के लिए उत्पादों और सेवाओं के अधिक विकल्प उपलब्ध हुए।
- रोजगार सृजन: सेवा क्षेत्र (विशेषकर आईटी) और अन्य उद्योगों में रोजगार के अवसर बढ़े।
- गरीबी में कमी: आर्थिक विकास के कारण गरीबी के स्तर में कमी आई।
- भारत का वैश्विक एकीकरण: भारत एक प्रमुख वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा।
- नकारात्मक प्रभाव और चुनौतियाँ:
- कृषि क्षेत्र की उपेक्षा: सुधारों का लाभ कृषि क्षेत्र तक पूरी तरह से नहीं पहुँच पाया।
- क्षेत्रीय असमानताएँ: विकसित और पिछड़े क्षेत्रों के बीच असमानताएँ बढ़ीं।
- रोजगार रहित विकास: कुछ क्षेत्रों में उच्च विकास दर के बावजूद पर्याप्त रोजगार सृजन नहीं हुआ (Jobless Growth)।
- सामाजिक सुरक्षा का अभाव: निजीकरण और उदारीकरण के कारण कुछ वर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा में कमी आई।
- पर्यावरणीय चिंताएँ: तीव्र आर्थिक विकास के कारण पर्यावरणीय प्रदूषण और संसाधनों का अत्यधिक दोहन बढ़ा।
- वित्तीय क्षेत्र की अस्थिरता: वैश्विक वित्तीय संकटों के प्रति अधिक संवेदनशीलता।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
1991 के आर्थिक और वित्तीय सुधार, जिन्हें उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) के रूप में जाना जाता है, भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थे। गंभीर आर्थिक संकट के जवाब में शुरू किए गए इन सुधारों ने भारत को एक बंद अर्थव्यवस्था से एक खुली, बाजार-उन्मुख और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत अर्थव्यवस्था में बदल दिया। इन सुधारों ने उच्च आर्थिक विकास दर, विदेशी निवेश में वृद्धि और उपभोक्ता विकल्पों में विस्तार जैसे महत्वपूर्ण सकारात्मक परिणाम दिए। हालांकि, कृषि क्षेत्र की उपेक्षा, क्षेत्रीय असमानताएँ और रोजगार रहित विकास जैसी चुनौतियाँ भी सामने आईं। कुल मिलाकर, LPG सुधारों ने भारत को 21वीं सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया।