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राज्य वित्त आयोग: कार्य और भूमिका (State Finance Commission: Functions and Role)

राज्य वित्त आयोग: कार्य और भूमिका (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

राज्य वित्त आयोग (State Finance Commission – SFC) भारतीय संविधान के तहत एक संवैधानिक निकाय है, जिसे 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा स्थापित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य राज्यों और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं (पंचायतों और नगर पालिकाओं) के बीच वित्तीय संबंधों की समीक्षा करना और उन्हें सशक्त बनाने के लिए सिफारिशें करना है, ताकि जमीनी स्तर पर विकेंद्रीकरण और विकास को बढ़ावा मिल सके।

1. राज्य वित्त आयोग की पृष्ठभूमि और आवश्यकता (Background and Need for State Finance Commission)

स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद उनके वित्तीय सशक्तिकरण की आवश्यकता महसूस हुई।

  • स्थानीय स्वशासन का संवैधानिककरण: 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियमों ने पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) और नगर पालिकाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
  • वित्तीय विकेंद्रीकरण की आवश्यकता: इन स्थानीय निकायों को अपने कार्यों और जिम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से निभाने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता थी।
  • राज्यों पर निर्भरता: स्थानीय निकाय अक्सर अपने राजस्व के लिए राज्य सरकारों पर अत्यधिक निर्भर थे, जिससे उनकी स्वायत्तता सीमित हो जाती थी।
  • असंतुलन: राज्य और स्थानीय निकायों के बीच राजस्व के स्रोतों और व्यय की जिम्मेदारियों में असंतुलन को दूर करने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता थी।
  • केंद्र वित्त आयोग के समान: केंद्र स्तर पर केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व बंटवारे के लिए केंद्रीय वित्त आयोग (अनुच्छेद 280) की तर्ज पर, राज्य स्तर पर भी एक ऐसे ही निकाय की आवश्यकता थी।

2. संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions)

राज्य वित्त आयोग के गठन और कार्यों का प्रावधान भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से किया गया है।

  • अनुच्छेद 243I (पंचायतों के लिए):
    • राज्यपाल प्रत्येक पांचवें वर्ष की समाप्ति पर एक वित्त आयोग का गठन करेगा।
    • यह आयोग पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करेगा।
  • अनुच्छेद 243Y (नगर पालिकाओं के लिए):
    • अनुच्छेद 243I के तहत गठित वित्त आयोग नगर पालिकाओं की वित्तीय स्थिति की भी समीक्षा करेगा।

3. राज्य वित्त आयोग की संरचना और नियुक्ति (Composition and Appointment of State Finance Commission)

आयोग के सदस्यों की संख्या और योग्यता राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित की जाती है।

  • नियुक्ति: राज्यपाल द्वारा की जाती है।
  • सदस्य: आयोग में एक अध्यक्ष और उतने अन्य सदस्य होते हैं जितने राज्य विधानमंडल कानून द्वारा निर्धारित करें।
  • योग्यताएँ: राज्य विधानमंडल कानून द्वारा सदस्यों की योग्यताएँ निर्धारित कर सकता है। आमतौर पर, इसमें वित्त, लेखा, अर्थशास्त्र और सार्वजनिक प्रशासन के विशेषज्ञ शामिल होते हैं।

4. राज्य वित्त आयोग के कार्य और सिफारिशें (Functions and Recommendations of State Finance Commission)

राज्य वित्त आयोग का मुख्य कार्य स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए सिफारिशें करना है।

  • राजस्व का वितरण: राज्य और पंचायतों/नगर पालिकाओं के बीच राज्य द्वारा लगाए गए करों, शुल्कों, टोलों और फीस के शुद्ध आगमों के वितरण के सिद्धांतों पर सिफारिशें करना।
  • करों का निर्धारण: ऐसे करों, शुल्कों, टोलों और फीस का निर्धारण करना जो पंचायतों/नगर पालिकाओं को सौंपे या विनियोजित किए जा सकते हैं।
  • राज्य की संचित निधि से अनुदान: पंचायतों/नगर पालिकाओं को राज्य की संचित निधि से सहायता अनुदान के सिद्धांतों पर सिफारिशें करना।
  • पंचायतों/नगर पालिकाओं की वित्तीय स्थिति में सुधार: पंचायतों/नगर पालिकाओं की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक उपायों पर सिफारिशें करना।
  • कोई अन्य मामला: राज्यपाल द्वारा आयोग को संदर्भित कोई अन्य मामला।
  • रिपोर्ट प्रस्तुत करना: आयोग अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत करता है, जो इसे राज्य विधानमंडल के समक्ष रखता है।

5. राज्य वित्त आयोग के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to State Finance Commission)

संवैधानिक निकाय होने के बावजूद, SFCs को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

  • रिपोर्टों में देरी: कई राज्यों में SFCs का गठन अनियमित रहा है और उनकी रिपोर्टें अक्सर देरी से आती हैं।
  • सिफारिशों का गैर-कार्यान्वयन: SFCs की सिफारिशें राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी नहीं होती हैं, और कई बार उन्हें पूरी तरह से लागू नहीं किया जाता है।
  • वित्तीय स्वायत्तता का अभाव: SFCs को अक्सर राज्य सरकारों से पर्याप्त वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता नहीं मिलती है।
  • क्षमता और विशेषज्ञता की कमी: कुछ SFCs के पास पर्याप्त विशेषज्ञता और क्षमता की कमी होती है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप: SFCs के गठन और उनकी सिफारिशों में राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना।
  • डेटा की कमी: स्थानीय निकायों के वित्तीय डेटा की कमी SFCs के लिए प्रभावी सिफारिशें करना मुश्किल बना देती है।

6. राज्य वित्त आयोग का महत्व (Significance of State Finance Commission)

चुनौतियों के बावजूद, SFCs स्थानीय स्वशासन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

  • वित्तीय विकेंद्रीकरण को बढ़ावा: यह स्थानीय निकायों को वित्तीय रूप से सशक्त बनाने और जमीनी स्तर पर विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने में मदद करता है।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता: यह स्थानीय निकायों के वित्तीय प्रबंधन में अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता लाता है।
  • संतुलित विकास: यह स्थानीय निकायों को अपनी विकास योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने में सक्षम बनाता है।
  • संघवाद को मजबूत करना: यह केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों के बीच वित्तीय संघवाद को मजबूत करता है।
  • स्थानीय निकायों की क्षमता निर्माण: यह स्थानीय निकायों को अपनी वित्तीय स्थिति का बेहतर प्रबंधन करने में मदद करता है।

7. आगे की राह और सुधार (Way Forward and Reforms)

राज्य वित्त आयोगों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए निरंतर सुधारों की आवश्यकता है।

  • नियमित गठन और समय पर रिपोर्ट: SFCs का नियमित और समय पर गठन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • सिफारिशों का अनिवार्य कार्यान्वयन: SFCs की सिफारिशों को राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी बनाया जाना चाहिए।
  • वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता: SFCs को पर्याप्त वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए।
  • क्षमता निर्माण: SFCs के सदस्यों और कर्मचारियों की क्षमता और विशेषज्ञता को बढ़ाया जाना चाहिए।
  • डेटा संग्रह और विश्लेषण: स्थानीय निकायों के वित्तीय डेटा के संग्रह और विश्लेषण के लिए एक मजबूत प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।
  • केंद्र वित्त आयोग के साथ समन्वय: केंद्रीय वित्त आयोग और राज्य वित्त आयोगों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए।

8. निष्कर्ष (Conclusion)

राज्य वित्त आयोग भारतीय संविधान के तहत एक महत्वपूर्ण संवैधानिक निकाय है, जो स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के वित्तीय सशक्तिकरण और जमीनी स्तर पर विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है। 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियमों द्वारा स्थापित, SFCs राज्य और स्थानीय निकायों के बीच राजस्व बंटवारे और वित्तीय सहायता के लिए महत्वपूर्ण सिफारिशें करते हैं। यद्यपि उन्हें रिपोर्टों में देरी और सिफारिशों के गैर-कार्यान्वयन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, वे भारत में वित्तीय संघवाद को मजबूत करने और स्थानीय निकायों को विकास और सुशासन के लिए सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन आयोगों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए निरंतर प्रयासों और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

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