मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties) भारतीय संविधान के भाग IV-A (अनुच्छेद 51A) में निहित हैं। ये नागरिकों के लिए कुछ नैतिक और नागरिक जिम्मेदारियाँ हैं, जिनका पालन करके वे राष्ट्र के विकास और कल्याण में योगदान कर सकते हैं। मौलिक अधिकार जहां नागरिकों को राज्य के खिलाफ अधिकार प्रदान करते हैं, वहीं मौलिक कर्तव्य नागरिकों से राष्ट्र के प्रति उनकी जिम्मेदारियों की अपेक्षा करते हैं।
1. पृष्ठभूमि और शामिल करने का कारण (Background and Reason for Inclusion)
मूल संविधान में मौलिक कर्तव्य शामिल नहीं थे। इन्हें बाद में एक संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया।
- मूल संविधान में अनुपस्थिति: भारतीय संविधान के मूल संस्करण में मौलिक कर्तव्य शामिल नहीं थे। संविधान निर्माताओं का मानना था कि चूंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, नागरिक अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए अपने कर्तव्यों का भी पालन करेंगे।
- प्रेरणा: मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) के संविधान से प्रेरित है।
- आंतरिक आपातकाल (1975-77): 1975-77 के आंतरिक आपातकाल के दौरान, सरकार ने महसूस किया कि नागरिकों को अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों के प्रति भी जागरूक होना चाहिए।
- स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशें:
- 1976 में, कांग्रेस पार्टी ने सरदार स्वर्ण सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसका उद्देश्य संविधान में मौलिक कर्तव्यों को शामिल करने की आवश्यकता पर सिफारिशें देना था।
- समिति ने सिफारिश की कि संविधान में मौलिक कर्तव्यों का एक अलग अध्याय शामिल किया जाना चाहिए।
- 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976:
- स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों के आधार पर, 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान में एक नया भाग IV-A और एक नया अनुच्छेद 51A जोड़ा गया।
- इस अधिनियम ने 10 मौलिक कर्तव्यों को शामिल किया।
- 86वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2002:
- इस अधिनियम द्वारा एक और मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया, जिससे मौलिक कर्तव्यों की कुल संख्या 11 हो गई।
2. मौलिक कर्तव्यों की सूची (List of Fundamental Duties) – अनुच्छेद 51A
संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं।
- संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करना।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखना और उनका पालन करना।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना और उसे अक्षुण्ण रखना।
- देश की रक्षा करना और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करना।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान बंधुत्व की भावना का निर्माण करना जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो; स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध प्रथाओं का त्याग करना।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझना और उसका परिरक्षण करना।
- प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव हैं, रक्षा करना और उसका संवर्धन करना तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखना।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखना और हिंसा से दूर रहना।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करना जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले।
- माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष की आयु के अपने बच्चे या प्रतिपाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करना। (यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया था)।
3. मौलिक कर्तव्यों की विशेषताएँ (Features of Fundamental Duties)
मौलिक कर्तव्य कुछ विशिष्ट विशेषताओं वाले हैं।
- गैर-न्यायोचित: मौलिक अधिकारों के विपरीत, मौलिक कर्तव्य गैर-न्यायोचित हैं। इसका अर्थ है कि उनके उल्लंघन के लिए न्यायालयों द्वारा सीधे लागू नहीं किया जा सकता है। हालांकि, संसद उन्हें लागू करने के लिए कानून बना सकती है।
- केवल नागरिकों के लिए: ये कर्तव्य केवल भारत के नागरिकों पर लागू होते हैं, विदेशियों पर नहीं।
- नैतिक और नागरिक कर्तव्य: ये दोनों नैतिक (जैसे राष्ट्रीय आंदोलन के आदर्शों का सम्मान) और नागरिक (जैसे सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा) कर्तव्य हैं।
- कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं, लेकिन महत्वपूर्ण: यद्यपि ये सीधे लागू नहीं किए जा सकते, न्यायालयों ने कुछ मामलों में इन्हें कानूनों की संवैधानिकता की व्याख्या करने के लिए उपयोग किया है।
- लोकतांत्रिक व्यवहार का मार्गदर्शन: ये नागरिकों को एक लोकतांत्रिक समाज में जिम्मेदार व्यवहार के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
4. मौलिक कर्तव्यों का महत्व (Significance of Fundamental Duties)
मौलिक कर्तव्य भारतीय लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका को परिभाषित करते हैं।
- नागरिकों को अनुस्मारक: ये नागरिकों को याद दिलाते हैं कि अधिकारों का आनंद लेने के साथ-साथ उनके कुछ कर्तव्य भी हैं।
- राष्ट्र-निर्माण में योगदान: ये नागरिकों को राष्ट्र-निर्माण और सामाजिक कल्याण में सक्रिय रूप से योगदान करने के लिए प्रेरित करते हैं।
- सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा: ये धर्म, भाषा और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव से परे, समान बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देते हैं।
- नैतिक मार्गदर्शन: ये नागरिकों के लिए नैतिक और नैतिक मार्गदर्शन के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं।
- कानूनों की संवैधानिकता का निर्धारण: न्यायालय कानूनों की संवैधानिकता का निर्धारण करते समय मौलिक कर्तव्यों को ध्यान में रख सकते हैं।
- अनुशासन और प्रतिबद्धता: ये नागरिकों में अनुशासन और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता की भावना को बढ़ावा देते हैं।
5. मौलिक कर्तव्यों से संबंधित महत्वपूर्ण समितियाँ और वाद (Important Committees and Cases Related to Fundamental Duties)
कुछ समितियाँ और न्यायिक निर्णय मौलिक कर्तव्यों से संबंधित हैं।
- स्वर्ण सिंह समिति (1976): मौलिक कर्तव्यों को शामिल करने की सिफारिश की।
- वर्मा समिति (1999): इस समिति ने मौलिक कर्तव्यों के कार्यान्वयन के लिए कानूनी प्रावधानों की पहचान की। इसने कुछ अधिनियमों की पहचान की जो मौलिक कर्तव्यों को लागू करते हैं (जैसे राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोकथाम अधिनियम, 1971; वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972)।
- मोहन कुमारन मंगलम समिति: मौलिक कर्तव्यों के संबंध में भी कुछ सिफारिशें की थीं।
- एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (1987): सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मौलिक कर्तव्यों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए निर्देश दिए।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
मौलिक कर्तव्य भारतीय संविधान में एक महत्वपूर्ण जोड़ हैं, जो नागरिकों को उनके अधिकारों के साथ-साथ राष्ट्र के प्रति उनकी जिम्मेदारियों की याद दिलाते हैं। सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा शामिल किए गए ये कर्तव्य नागरिकों को संविधान का पालन करने, राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करने, देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करने, और पर्यावरण की रक्षा करने जैसे कार्यों के लिए प्रेरित करते हैं। यद्यपि ये गैर-न्यायोचित हैं, ये नागरिकों के लिए नैतिक और नागरिक मार्गदर्शन के रूप में कार्य करते हैं और राष्ट्र-निर्माण में उनकी सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देते हैं। मौलिक कर्तव्य एक मजबूत, जिम्मेदार और एकजुट भारत के निर्माण के लिए आवश्यक हैं।