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मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)

मौलिक अधिकार (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) भारत के संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12 से 35) में निहित हैं। ये वे बुनियादी अधिकार हैं जो प्रत्येक नागरिक को राज्य के हस्तक्षेप के बिना गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं। ये अधिकार न्यायोचित (Justiciable) हैं, जिसका अर्थ है कि उनके उल्लंघन के मामले में व्यक्ति न्याय के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय जा सकता है। मौलिक अधिकार भारतीय लोकतंत्र की नींव हैं और इन्हें ‘भारत का मैग्ना कार्टा’ भी कहा जाता है।

1. मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ (Features of Fundamental Rights)

मौलिक अधिकार भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता हैं।

  • न्यायोचित: इनका उल्लंघन होने पर न्यायालयों द्वारा लागू किया जा सकता है।
  • राज्य के खिलाफ उपलब्ध: ये अधिकार मुख्य रूप से राज्य की मनमानी कार्रवाई के खिलाफ नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • पूर्ण नहीं, बल्कि प्रतिबंध योग्य: ये अधिकार पूर्ण नहीं हैं और उन पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं (जैसे सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य, राज्य की सुरक्षा)।
  • स्थायी नहीं: संसद इन्हें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधित या निरस्त कर सकती है, बशर्ते कि यह संविधान के ‘मूल ढांचे’ (Basic Structure) का उल्लंघन न करे (केशवानंद भारती मामला, 1973)।
  • आपातकाल के दौरान निलंबन: राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) के दौरान इन्हें निलंबित किया जा सकता है, सिवाय अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) के।
  • कुछ अधिकार केवल नागरिकों के लिए उपलब्ध हैं, जबकि कुछ अधिकार सभी व्यक्तियों (नागरिकों और विदेशियों) के लिए उपलब्ध हैं।

2. मौलिक अधिकारों की श्रेणियाँ (Categories of Fundamental Rights)

भारतीय संविधान में वर्तमान में छह श्रेणियों के मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।

  • समानता का अधिकार (Right to Equality) – अनुच्छेद 14-18:
    • अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता और कानूनों का समान संरक्षण।
    • अनुच्छेद 15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध।
    • अनुच्छेद 16: सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता।
    • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन।
    • अनुच्छेद 18: उपाधियों का अंत।
  • स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) – अनुच्छेद 19-22:
    • अनुच्छेद 19: छह स्वतंत्रताओं का संरक्षण (भाषण और अभिव्यक्ति, सभा, संघ, संचरण, निवास, पेशा)।
    • अनुच्छेद 20: अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण।
    • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण। (इसमें ‘गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार’, ‘निजता का अधिकार’ आदि शामिल हैं)।
    • अनुच्छेद 21A: शिक्षा का अधिकार (राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा)। इसे 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया।
    • अनुच्छेद 22: कुछ मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत से संरक्षण।
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation) – अनुच्छेद 23-24:
    • अनुच्छेद 23: मानव दुर्व्यापार और बेगार (जबरन श्रम) का निषेध।
    • अनुच्छेद 24: कारखानों आदि में बच्चों के नियोजन का निषेध (14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक रोजगार में नहीं लगाया जा सकता)।
  • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion) – अनुच्छेद 25-28:
    • अनुच्छेद 25: अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता।
    • अनुच्छेद 26: धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता।
    • अनुच्छेद 27: किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिए करों के भुगतान से स्वतंत्रता।
    • अनुच्छेद 28: कुछ शैक्षिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में भाग लेने से स्वतंत्रता।
  • संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (Cultural and Educational Rights) – अनुच्छेद 29-30:
    • अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण (भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार)।
    • अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार।
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) – अनुच्छेद 32:
    • अनुच्छेद 32: मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अधिकार। इसे डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने ‘संविधान की आत्मा और हृदय’ कहा था।
    • सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए पांच प्रकार की रिट जारी कर सकता है: बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), प्रतिषेध (Prohibition), उत्प्रेषण (Certiorari) और अधिकार पृच्छा (Quo-Warranto)।

3. मौलिक अधिकारों का निलंबन (Suspension of Fundamental Rights)

कुछ विशेष परिस्थितियों में मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है।

  • राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352):
    • जब राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जाती है, तो अनुच्छेद 19 द्वारा गारंटीकृत छह स्वतंत्रताएँ स्वचालित रूप से निलंबित हो जाती हैं।
    • राष्ट्रपति एक अलग आदेश द्वारा अन्य मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर) के प्रवर्तन को निलंबित कर सकते हैं।
    • 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 के बाद, अनुच्छेद 20 और 21 को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है।
  • सैन्य कानून (Martial Law) और सशस्त्र बल:
    • अनुच्छेद 33 संसद को सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों, पुलिस बलों आदि के सदस्यों के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने या निरस्त करने का अधिकार देता है।
    • अनुच्छेद 34 संसद को किसी भी क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू होने पर मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार देता है।

4. मौलिक अधिकारों से संबंधित महत्वपूर्ण वाद (Important Cases Related to Fundamental Rights)

सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न वादों के माध्यम से मौलिक अधिकारों की व्याख्या की है।

  • गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967): सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती है।
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पिछले फैसले को पलट दिया और फैसला सुनाया कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, जिसमें मौलिक अधिकार भी शामिल हैं, लेकिन वह ‘संविधान के मूल ढांचे’ (Basic Structure of the Constitution) को नहीं बदल सकती है।
  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978): अनुच्छेद 21 की व्यापक व्याख्या की गई, जिसमें ‘जीवन का अधिकार’ को केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं रखा गया, बल्कि इसमें ‘गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार’ भी शामिल किया गया।
  • आर.सी. कूपर बनाम भारत संघ (1970): संपत्ति के अधिकार से संबंधित।
  • एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (1986): ‘प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार’ अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।

5. निष्कर्ष (Conclusion)

मौलिक अधिकार भारतीय संविधान की आत्मा हैं और ये नागरिकों को राज्य की मनमानी कार्रवाई के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं। समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार, और संवैधानिक उपचारों का अधिकार जैसे ये अधिकार भारत में लोकतंत्र और न्याय के स्तंभ हैं। यद्यपि ये पूर्ण नहीं हैं और उन पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न वादों के माध्यम से इनकी व्याख्या और सुरक्षा की है, विशेषकर ‘संविधान के मूल ढांचे’ के सिद्धांत के माध्यम से। मौलिक अधिकार भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए गरिमापूर्ण और स्वतंत्र जीवन सुनिश्चित करते हैं और देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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