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शासन: संस्थान और प्रक्रिया

शासन: संस्थान और प्रक्रिया (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

शासन (Governance) एक व्यापक अवधारणा है जो किसी देश में निर्णय लेने और उन्हें लागू करने की प्रक्रियाओं, संस्थानों और संरचनाओं को संदर्भित करती है। यह केवल सरकार के कार्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें नागरिक समाज, निजी क्षेत्र और अंतर्राष्ट्रीय संगठन जैसे गैर-राज्य अभिकर्ता भी शामिल होते हैं। भारत में, शासन एक जटिल प्रक्रिया है जो संवैधानिक प्रावधानों, विधायी प्रक्रियाओं, कार्यकारी कार्यों और न्यायिक निरीक्षण के माध्यम से संचालित होती है।

1. शासन की अवधारणा (Concept of Governance)

शासन सरकार से अधिक व्यापक है और इसमें समाज के विभिन्न हितधारक शामिल होते हैं।

1.1. परिभाषा

  • शासन का अर्थ है ‘शासन करने का तरीका’ या ‘शासन की प्रक्रिया’। इसमें वे सभी प्रक्रियाएँ शामिल हैं जिनके द्वारा समाज के विभिन्न समूह अपने साझा हितों को व्यक्त करते हैं, अपने अधिकारों का प्रयोग करते हैं, अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं और अपने मतभेदों को सुलझाते हैं।
  • यह निर्णय लेने की प्रक्रिया और उन निर्णयों को लागू करने की प्रक्रिया है।

1.2. सरकार बनाम शासन

  • सरकार: शासन का एक हिस्सा है, जो राज्य के औपचारिक संस्थानों (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) से संबंधित है।
  • शासन: सरकार से व्यापक है। इसमें सरकार के साथ-साथ नागरिक समाज, निजी क्षेत्र, मीडिया और अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी शामिल होते हैं।

1.3. सुशासन (Good Governance)

  • सुशासन की अवधारणा में कुछ प्रमुख सिद्धांत शामिल हैं:
    • पारदर्शिता (Transparency): निर्णय लेने की प्रक्रिया में खुलापन।
    • जवाबदेही (Accountability): निर्णय लेने वालों का अपने कार्यों के लिए जवाबदेह होना।
    • भागीदारी (Participation): निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी।
    • कानून का शासन (Rule of Law): सभी के लिए समान और निष्पक्ष कानूनों का पालन।
    • निष्पक्षता और समावेशिता (Equity and Inclusiveness): समाज के सभी वर्गों के हितों का ध्यान रखना।
    • प्रभावी और कुशल (Effective and Efficient): संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करना।

2. शासन के प्रमुख संस्थान (Key Institutions of Governance)

भारत में शासन विभिन्न संवैधानिक और वैधानिक संस्थानों के माध्यम से संचालित होता है।

2.1. संवैधानिक संस्थान

  • संसद (Parliament): कानून बनाने और सरकार पर नियंत्रण रखने वाली सर्वोच्च विधायी संस्था।
  • राष्ट्रपति (President): राज्य का नाममात्र का प्रमुख और कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख।
  • प्रधान मंत्री और मंत्रिपरिषद: वास्तविक कार्यकारी शक्तियाँ रखते हैं और नीतियों को लागू करते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय: न्याय प्रदान करते हैं, कानूनों की व्याख्या करते हैं और संविधान की रक्षा करते हैं।
  • चुनाव आयोग (Election Commission): स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करता है (अनुच्छेद 324)।
  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG): सार्वजनिक वित्त का लेखा-जोखा और ऑडिट करता है (अनुच्छेद 148)।
  • संघ लोक सेवा आयोग (UPSC): सिविल सेवाओं के लिए भर्ती करता है (अनुच्छेद 315)।
  • वित्त आयोग (Finance Commission): केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के वितरण की सिफारिश करता है (अनुच्छेद 280)।

2.2. वैधानिक और अन्य संस्थान

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC): मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए (मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993)।
  • केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC): भ्रष्टाचार को रोकने के लिए।
  • केंद्रीय सूचना आयोग (CIC): सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
  • नीति आयोग (NITI Aayog): सरकार के थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है और नीति निर्माण में सहायता करता है।
  • स्थानीय स्वशासन (पंचायती राज और नगरपालिकाएँ): विकेंद्रीकृत शासन सुनिश्चित करता है (73वां और 74वां संशोधन)।

3. शासन की प्रमुख प्रक्रियाएँ (Key Processes of Governance)

शासन में विभिन्न प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं जो नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन को नियंत्रित करती हैं।

3.1. नीति निर्माण (Policy Making)

  • इसमें समस्याओं की पहचान करना, विकल्पों का विश्लेषण करना, निर्णय लेना और नीतियों को तैयार करना शामिल है।
  • इसमें कार्यपालिका, विधायिका, विशेषज्ञ समूह, नागरिक समाज और मीडिया जैसे विभिन्न हितधारक शामिल होते हैं।

3.2. नीति कार्यान्वयन (Policy Implementation)

  • इसमें नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करना शामिल है। यह प्रशासनिक मशीनरी (सिविल सेवाएँ, पुलिस) द्वारा किया जाता है।
  • इसमें संसाधनों का आवंटन, कार्यक्रमों का संचालन और निगरानी शामिल है।

3.3. जवाबदेही और निरीक्षण (Accountability and Oversight)

  • संसदीय नियंत्रण: प्रश्नकाल, शून्यकाल, अविश्वास प्रस्ताव, समितियों के माध्यम से सरकार पर नियंत्रण।
  • न्यायिक समीक्षा: न्यायपालिका द्वारा कानूनों और कार्यकारी कार्यों की संवैधानिकता की समीक्षा।
  • नागरिक समाज की भागीदारी: आरटीआई, जनसुनवाई, विरोध प्रदर्शन और मीडिया के माध्यम से सरकार पर दबाव।
  • ऑडिट और मूल्यांकन: CAG और अन्य ऑडिट निकायों द्वारा सरकारी खर्च का निरीक्षण।

3.4. नागरिक-केंद्रित शासन (Citizen-Centric Governance)

  • सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005: नागरिकों को सरकारी जानकारी तक पहुँच प्रदान करता है, जिससे पारदर्शिता बढ़ती है।
  • सेवाओं के अधिकार अधिनियम (Right to Services Act): नागरिकों को समयबद्ध तरीके से सरकारी सेवाएँ प्राप्त करने का अधिकार देता है।
  • ई-गवर्नेंस (E-Governance): शासन में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग, जिससे दक्षता, पारदर्शिता और पहुंच में सुधार होता है।
  • जन शिकायत निवारण तंत्र: नागरिकों की शिकायतों को दूर करने के लिए तंत्र (जैसे लोकपाल, लोकायुक्त)।

4. शासन के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to Governance)

भारत में प्रभावी शासन सुनिश्चित करने में कई बाधाएँ मौजूद हैं।

  • भ्रष्टाचार: प्रशासन के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार एक गंभीर चुनौती है, जो सुशासन को बाधित करता है।
  • लालफीताशाही और नौकरशाही की जड़ता: प्रक्रियाओं में देरी, जटिलता और जवाबदेही की कमी।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में अस्पष्टता और जवाबदेही की कमी।
  • नागरिक भागीदारी का अभाव: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में आम नागरिकों की सीमित भागीदारी।
  • सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: गरीबी, निरक्षरता और असमानताएँ प्रभावी शासन के मार्ग में बाधा डालती हैं।
  • राजनीति का अपराधीकरण: राजनीति में अपराधियों का प्रवेश, जिससे कानून और व्यवस्था की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • क्षमताओं का अभाव: संस्थानों और कर्मियों में आवश्यक क्षमताओं और प्रशिक्षण की कमी।
  • प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र की कमी: नागरिकों की शिकायतों को समयबद्ध और प्रभावी ढंग से हल करने में चुनौतियाँ।

5. सुशासन को बढ़ावा देने के उपाय (Measures to Promote Good Governance)

भारत में सुशासन को बढ़ावा देने के लिए कई पहलें की गई हैं और आगे भी किए जाने की आवश्यकता है।

  • कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन: भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों और अन्य नियामक ढाँचों का कड़ाई से पालन।
  • ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देना: सरकारी सेवाओं के वितरण में प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग।
  • नागरिक चार्टर: सरकारी विभागों द्वारा सेवाओं के मानक और समय-सीमा निर्धारित करना।
  • सामाजिक ऑडिट: सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के कार्यान्वयन की जनता द्वारा निगरानी।
  • पुलिस और न्यायिक सुधार: न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ, तेज और निष्पक्ष बनाना।
  • क्षमता निर्माण: सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण और कौशल विकास।
  • नागरिक समाज को मजबूत करना: नागरिक समाज संगठनों को शासन में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • लोकपाल और लोकायुक्त: भ्रष्टाचार विरोधी निकायों को मजबूत करना।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

भारत में शासन एक गतिशील और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें संवैधानिक प्रावधानों, विभिन्न संस्थानों और प्रक्रियाओं का एक विस्तृत जाल शामिल है। सुशासन प्राप्त करना, जिसमें पारदर्शिता, जवाबदेही, भागीदारी और कानून का शासन शामिल है, भारत के लोकतांत्रिक आदर्शों को साकार करने के लिए आवश्यक है। यद्यपि भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं, सूचना का अधिकार, ई-गवर्नेंस और नागरिक-केंद्रित पहलें सुशासन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। एक मजबूत, समावेशी और न्यायपूर्ण भारत के निर्माण के लिए इन चुनौतियों का सामना करना और शासन की गुणवत्ता में निरंतर सुधार करना एक सतत प्रयास है।

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