भारत की परमाणु नीति एक जटिल और बहुआयामी दृष्टिकोण है जो देश की सुरक्षा आवश्यकताओं, रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक परमाणु अप्रसार प्रतिबद्धताओं को संतुलित करती है। यह नीति ‘नो फर्स्ट यूज़’ (No First Use – NFU) और ‘विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध’ (Credible Minimum Deterrence – CMD) के सिद्धांतों पर आधारित है।
1. परमाणु नीति का इतिहास और विकास (History and Evolution of Nuclear Policy)
भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए शुरू हुआ था, लेकिन क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं और वैश्विक परमाणु व्यवस्था के कारण इसका रणनीतिक विकास हुआ।
- प्रारंभिक चरण (1940-1960 के दशक):
- भारत का परमाणु कार्यक्रम होमी जे. भाभा के नेतृत्व में 1940 के दशक में शांतिपूर्ण उद्देश्यों, विशेषकर ऊर्जा उत्पादन, के लिए शुरू हुआ था।
- प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग की वकालत की।
- परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का विरोध:
- भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (NPT), 1968 पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, क्योंकि इसे भेदभावपूर्ण माना गया था। NPT केवल उन देशों को परमाणु हथियार रखने की अनुमति देता है जिन्होंने 1967 से पहले परमाणु परीक्षण किया था।
- भारत ने हमेशा एक सार्वभौमिक, गैर-भेदभावपूर्ण और सत्यापन योग्य अप्रसार संधि की वकालत की है।
- पहला परमाणु परीक्षण (1974):
- बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य और चीन के परमाणु हथियार संपन्न होने के बाद, भारत ने 18 मई, 1974 को पोखरण, राजस्थान में अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया।
- इसका कोडनेम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ था। भारत ने इसे ‘शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट’ बताया और परमाणु हथियार बनाने की अपनी मंशा से इनकार किया।
- दूसरा परमाणु परीक्षण (1998):
- क्षेत्रीय सुरक्षा वातावरण में बदलाव, विशेषकर पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के मद्देनजर, भारत ने 11 और 13 मई, 1998 को पोखरण में पांच परमाणु परीक्षण किए।
- इनका कोडनेम ‘ऑपरेशन शक्ति’ था। इन परीक्षणों के बाद भारत ने स्वयं को एक परमाणु हथियार संपन्न राज्य (Nuclear Weapons State – NWS) घोषित किया।
- इन परीक्षणों के बाद भारत पर कई देशों द्वारा प्रतिबंध लगाए गए।
- परमाणु सिद्धांत की घोषणा (2003):
- परीक्षणों के बाद, भारत ने अपनी परमाणु नीति को औपचारिक रूप दिया और जनवरी 2003 में अपने परमाणु सिद्धांत की घोषणा की, जिसमें ‘नो फर्स्ट यूज़’ और ‘विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध’ के सिद्धांतों को शामिल किया गया।
2. भारत की परमाणु नीति के प्रमुख सिद्धांत (Key Principles of India’s Nuclear Policy)
भारत की परमाणु नीति कुछ विशिष्ट सिद्धांतों पर आधारित है जो इसकी रणनीतिक स्वायत्तता को दर्शाते हैं।
- नो फर्स्ट यूज़ (No First Use – NFU):
- भारत की परमाणु नीति का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि वह पहले परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं करेगा।
- यह सिद्धांत केवल उन देशों के खिलाफ लागू होता है जिनके पास परमाणु हथियार हैं।
- विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध (Credible Minimum Deterrence – CMD):
- भारत का उद्देश्य एक न्यूनतम लेकिन विश्वसनीय परमाणु प्रतिरोध क्षमता बनाए रखना है।
- इसका अर्थ है कि भारत के पास इतनी परमाणु क्षमता होनी चाहिए कि वह किसी भी परमाणु हमले का जवाब दे सके और हमलावर को भारी नुकसान पहुँचा सके, जिससे उसे हमला करने से रोका जा सके।
- गैर-परमाणु राज्यों के खिलाफ उपयोग नहीं: भारत ने स्पष्ट किया है कि वह गैर-परमाणु हथियार संपन्न राज्यों के खिलाफ परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं करेगा।
- नागरिक नेतृत्व पर नियंत्रण: परमाणु हथियारों पर नागरिक राजनीतिक नेतृत्व का पूर्ण नियंत्रण होता है (परमाणु कमान प्राधिकरण – Nuclear Command Authority – NCA)।
- एकतरफा स्थगन: भारत ने परमाणु परीक्षणों पर एकतरफा स्थगन की घोषणा की है।
- वैश्विक अप्रसार के प्रति प्रतिबद्धता: भारत एक भेदभाव रहित और सत्यापन योग्य वैश्विक परमाणु अप्रसार के प्रति प्रतिबद्ध है।
3. भारत के प्रमुख परमाणु संस्थान और संगठन (Major Nuclear Institutions and Organizations in India)
भारत का परमाणु कार्यक्रम विभिन्न संस्थानों और संगठनों के एक मजबूत नेटवर्क द्वारा समर्थित है।
- परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy – DAE):
- प्रधान मंत्री के सीधे नियंत्रण में आता है।
- भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के अनुसंधान, विकास और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार सर्वोच्च निकाय।
- भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre – BARC):
- भारत का प्रमुख परमाणु अनुसंधान केंद्र, जो मुंबई में स्थित है।
- परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग, परमाणु हथियार डिजाइन और संबंधित प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास में शामिल।
- भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (Nuclear Power Corporation of India Limited – NPCIL):
- भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के डिजाइन, निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिए जिम्मेदार सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम।
- परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board – AERB):
- परमाणु ऊर्जा के सुरक्षित उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए नियामक निकाय।
- परमाणु सुविधाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नियम और मानक निर्धारित करता है।
- यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Uranium Corporation of India Limited – UCIL):
- भारत में यूरेनियम खनन और मिलिंग के लिए जिम्मेदार।
- भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम लिमिटेड (Bharatiya Nabhikiya Vidyut Nigam Limited – BHAVINI):
- फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों के निर्माण और संचालन के लिए जिम्मेदार।
4. परमाणु ऊर्जा में भारत का अंतरराष्ट्रीय सहयोग (India’s International Cooperation in Nuclear Energy)
भारत ने हाल के वर्षों में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए विभिन्न देशों के साथ सहयोग बढ़ाया है।
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौता (123 समझौता):
- 2008 में हस्ताक्षरित, यह समझौता भारत को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सुरक्षा उपायों के तहत नागरिक परमाणु सहयोग प्राप्त करने की अनुमति देता है।
- इसने भारत को वैश्विक परमाणु अप्रसार व्यवस्था में एक अनूठी स्थिति प्रदान की।
- परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) से छूट:
- भारत-अमेरिका समझौते के परिणामस्वरूप, NSG ने भारत को परमाणु व्यापार से संबंधित छूट दी, जिससे भारत परमाणु सामग्री और प्रौद्योगिकियों का आयात कर सकता है।
- हालांकि, भारत अभी भी NSG का औपचारिक सदस्य नहीं है।
- अन्य देशों के साथ सहयोग:
- भारत ने रूस, फ्रांस, कनाडा, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ नागरिक परमाणु सहयोग समझौते किए हैं।
- ये समझौते परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण, यूरेनियम की आपूर्ति और परमाणु अनुसंधान में सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ संबंध:
- भारत IAEA का सदस्य है और अपने नागरिक परमाणु प्रतिष्ठानों को IAEA सुरक्षा उपायों के अधीन रखता है।
- यह वैश्विक परमाणु सुरक्षा और अप्रसार प्रयासों में योगदान देता है।
5. भारत की परमाणु नीति के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to India’s Nuclear Policy)
भारत की परमाणु नीति को कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- क्षेत्रीय सुरक्षा वातावरण: पाकिस्तान और चीन के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियाँ।
- NFU सिद्धांत की बहस: कुछ विश्लेषकों द्वारा NFU सिद्धांत की व्यवहार्यता पर सवाल उठाए जाते हैं, खासकर पाकिस्तान की ‘फर्स्ट यूज़’ नीति के मद्देनजर।
- परमाणु आधुनिकीकरण: विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध बनाए रखने के लिए परमाणु हथियारों और डिलीवरी प्रणालियों का निरंतर आधुनिकीकरण।
- अप्रसार व्यवस्था: भारत को अभी भी परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) की सदस्यता प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- परमाणु सुरक्षा: परमाणु हथियारों और सामग्री की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय दबाव: वैश्विक परमाणु अप्रसार व्यवस्था के तहत भारत पर हस्ताक्षर करने का दबाव।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
भारत की परमाणु नीति सुरक्षा, रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक अप्रसार के प्रति प्रतिबद्धता का एक सावधानीपूर्वक संतुलन है। ‘नो फर्स्ट यूज़’ और ‘विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध’ के सिद्धांतों पर आधारित यह नीति भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित करती है। होमी जे. भाभा के नेतृत्व में शांतिपूर्ण उद्देश्यों से शुरू हुआ यह कार्यक्रम, क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं के कारण रणनीतिक रूप से विकसित हुआ। भारत के प्रमुख परमाणु संस्थान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग देश के परमाणु कार्यक्रम को मजबूत करते हैं। यद्यपि इसे क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों और अंतर्राष्ट्रीय अप्रसार व्यवस्था से संबंधित बाधाओं का सामना करना पड़ता है, भारत अपनी परमाणु क्षमताओं को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने और वैश्विक शांति व स्थिरता में योगदान करने के लिए एक साधन के रूप में देखता है। भारत की परमाणु नीति देश की रणनीतिक सोच और आत्म-निर्भरता का एक महत्वपूर्ण प्रतिबिंब है।