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संस्थागत सुधार Institutional reforms in India like MNREGA, NRHM, JNNURM etc., Public private partnership

स्वतंत्रता के बाद, भारत ने एक नियोजित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया, जिसका उद्देश्य तीव्र आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक मजबूत योजना मशीनरी और एक सुदृढ़ वित्तीय क्षेत्र का विकास किया गया। हालांकि, समय के साथ इन संस्थानों और प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।

1. योजना मशीनरी (Planning Machinery)

भारत में योजना बनाने की प्रक्रिया विभिन्न संस्थानों के माध्यम से संचालित होती थी, जिनमें योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद प्रमुख थे।

1.1. योजना आयोग (Planning Commission) – (1950-2014)

  • गठन: 15 मार्च, 1950 को भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा गठित एक गैर-संवैधानिक और गैर-सांविधिक निकाय।
  • अध्यक्ष: प्रधान मंत्री (पदेन अध्यक्ष)।
  • कार्य:
    • पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण करना।
    • संसाधनों का आकलन करना और उनके प्रभावी उपयोग के लिए सिफारिशें करना।
    • विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी और मूल्यांकन करना।
  • समाप्ति: 1 जनवरी, 2015 को इसे समाप्त कर दिया गया।

1.2. राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council – NDC) – (1952-2014)

  • गठन: 6 अगस्त, 1952 को गठित एक गैर-संवैधानिक और गैर-सांविधिक निकाय।
  • अध्यक्ष: प्रधान मंत्री।
  • सदस्य: केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासक, और योजना आयोग के सदस्य।
  • कार्य:
    • योजना आयोग द्वारा तैयार की गई पंचवर्षीय योजनाओं और नीतियों को अंतिम अनुमोदन प्रदान करना।
    • योजनाओं के कार्यान्वयन में राज्यों और केंद्र के बीच समन्वय स्थापित करना।
  • समाप्ति: योजना आयोग के साथ ही इसे भी समाप्त कर दिया गया।

1.3. नीति आयोग (NITI Aayog) – (2015 से वर्तमान)

  • गठन: 1 जनवरी, 2015 को योजना आयोग के स्थान पर गठित। यह एक गैर-संवैधानिक और गैर-सांविधिक निकाय है।
  • अध्यक्ष: प्रधान मंत्री (पदेन अध्यक्ष)।
  • उद्देश्य:
    • ‘बॉटम-अप’ दृष्टिकोण के साथ सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना।
    • सरकार के लिए एक थिंक टैंक के रूप में कार्य करना।
    • नीति निर्माण में राज्यों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना।
    • दीर्घकालिक रणनीतिक योजनाएँ बनाना।
  • कार्य: राज्यों के साथ निरंतर संरचनात्मक संवाद के माध्यम से नीति निर्माण और कार्यान्वयन में सहायता करना।

2. योजना प्रक्रिया (Planning Process)

भारत में योजना प्रक्रिया पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से संचालित होती थी, जिसे अब नीति आयोग द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है।

2.1. पंचवर्षीय योजनाएँ (Five-Year Plans) – (1951-2017)

  • भारत ने सोवियत संघ से प्रेरित होकर पंचवर्षीय योजनाओं की अवधारणा अपनाई।
  • कुल 12 पंचवर्षीय योजनाएँ लागू की गईं (अंतिम 12वीं योजना 2012-2017)।
  • प्रत्येक योजना का एक विशिष्ट लक्ष्य होता था (जैसे कृषि विकास, औद्योगीकरण, गरीबी उन्मूलन)।

2.2. नीति आयोग के तहत योजना प्रक्रिया

  • नीति आयोग अब पारंपरिक पंचवर्षीय योजनाओं के बजाय दीर्घकालिक रणनीतिक योजनाएँ (जैसे 15-वर्षीय विजन डॉक्यूमेंट), 7-वर्षीय रणनीति और 3-वर्षीय कार्य एजेंडा तैयार करता है।
  • यह राज्यों के साथ अधिक परामर्श और भागीदारी पर जोर देता है।

3. वित्तीय क्षेत्र (Financial Sector)

भारत का वित्तीय क्षेत्र देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसमें केंद्रीय बैंक और विभिन्न वित्तीय संस्थान शामिल हैं।

3.1. भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India – RBI)

  • स्थापना: 1 अप्रैल, 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत स्थापित। 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया।
  • कार्य:
    • मौद्रिक नीति का निर्माण और कार्यान्वयन: मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
    • बैंकों का बैंक और सरकार का बैंकर।
    • विदेशी मुद्रा भंडार का संरक्षक।
    • मुद्रा जारी करना और उसका प्रबंधन करना।
    • वित्तीय प्रणाली का नियामक और पर्यवेक्षक।
  • मुख्यालय: मुंबई।

3.2. राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development – NABARD)

  • स्थापना: 12 जुलाई, 1982 को शिवरामन समिति की सिफारिशों पर स्थापित।
  • उद्देश्य: कृषि और ग्रामीण विकास के लिए ऋण प्रवाह को बढ़ावा देना।
  • कार्य:
    • ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण देने वाली संस्थाओं को पुनर्वित्त (Refinance) प्रदान करना।
    • ग्रामीण बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ऋण प्रदान करना।
    • ग्रामीण विकास से संबंधित अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना।
    • ग्रामीण वित्तीय संस्थानों का पर्यवेक्षण करना।
  • मुख्यालय: मुंबई।

3.3. भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (Industrial Development Bank of India – IDBI)

  • स्थापना: 1964 में भारतीय औद्योगिक विकास बैंक अधिनियम, 1964 के तहत स्थापित।
  • उद्देश्य: औद्योगिक विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • कार्य:
    • दीर्घकालिक औद्योगिक वित्त प्रदान करना।
    • अन्य वित्तीय संस्थानों को पुनर्वित्त प्रदान करना।
    • औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना।
  • वर्तमान स्थिति: 2005 में इसे एक वाणिज्यिक बैंक में बदल दिया गया और IDBI बैंक लिमिटेड बन गया। 2019 में, LIC इसका बहुसंख्यक शेयरधारक बन गया।

4. संस्थागत सुधार (Institutional Reforms)

भारत में शासन और विकास को बेहतर बनाने के लिए समय-समय पर कई संस्थागत सुधार किए गए हैं, विशेषकर सामाजिक कल्याण और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में।

4.1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)

  • अधिनियम: 2005 में पारित किया गया।
  • उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों के गारंटीशुदा मजदूरी रोजगार का कानूनी अधिकार प्रदान करना, जिसका उद्देश्य ग्रामीण आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है।
  • विशेषताएँ:
    • काम का अधिकार (Right to Work) पर आधारित।
    • महिलाओं की भागीदारी को प्राथमिकता (कम से कम 33% महिलाएँ)।
    • ग्राम पंचायतें कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए सामाजिक ऑडिट का प्रावधान।
  • प्रभाव: ग्रामीण गरीबी को कम करने, ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में सहायक।

4.2. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM)

  • शुरुआत: 2005 में शुरू किया गया। (अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन – NHM का हिस्सा है, जिसमें शहरी घटक भी शामिल है)।
  • उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों, महिलाओं और बच्चों के लिए सुलभ, सस्ती, जवाबदेह और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना।
  • विशेषताएँ:
    • सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (जैसे आशा – ASHA) की तैनाती।
    • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) को मजबूत करना।
    • मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने पर विशेष ध्यान।
    • स्वास्थ्य सेवाओं के लिए स्थानीय योजना और प्रबंधन को बढ़ावा देना।
  • प्रभाव: ग्रामीण स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार, विशेषकर मातृ और शिशु स्वास्थ्य में।

4.3. जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JNNURM)

  • शुरुआत: 2005 में शुरू किया गया। 2014 में इसे समाप्त कर दिया गया और इसके स्थान पर अमृत (AMRUT) और स्मार्ट सिटी मिशन जैसे कार्यक्रम लाए गए।
  • उद्देश्य: भारतीय शहरों में बुनियादी ढांचे में सुधार करना और शहरी शासन में सुधार करना।
  • विशेषताएँ:
    • शहरी बुनियादी ढांचे (पानी की आपूर्ति, सीवरेज, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, शहरी परिवहन) में निवेश।
    • शहरी गरीबों के लिए बुनियादी सेवाएँ प्रदान करना।
    • शहरी शासन सुधारों को बढ़ावा देना।
  • प्रभाव: शहरी बुनियादी ढांचे में कुछ सुधार हुए, लेकिन कार्यान्वयन में चुनौतियाँ भी थीं।

4.4. सार्वजनिक निजी भागीदारी (Public-Private Partnership – PPP)

  • अवधारणा: PPP एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ सार्वजनिक क्षेत्र (सरकार) और निजी क्षेत्र किसी परियोजना या सेवा के वितरण के लिए सहयोग करते हैं।
  • उद्देश्य:
    • बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए निजी निवेश और विशेषज्ञता को आकर्षित करना।
    • सार्वजनिक सेवाओं की दक्षता और गुणवत्ता में सुधार करना।
    • सरकारी संसाधनों पर बोझ कम करना।
  • क्षेत्र: सड़क, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली, रेलवे, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
  • फायदे:
    • निजी क्षेत्र की दक्षता और नवाचार का लाभ।
    • परियोजनाओं का त्वरित कार्यान्वयन।
    • बेहतर सेवा वितरण।
  • चुनौतियाँ:
    • जोखिम का अनुचित बंटवारा।
    • पारदर्शिता का अभाव।
    • निजी क्षेत्र का लाभ-उन्मुख दृष्टिकोण।
    • नियामक ढाँचे की कमी।

5. निष्कर्ष (Conclusion)

भारत में योजना मशीनरी और वित्तीय क्षेत्र ने देश के आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से विकास को दिशा दी, जिन्हें अब नीति आयोग द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, जो सहकारी संघवाद और थिंक टैंक की भूमिका पर जोर देता है। भारतीय रिजर्व बैंक देश की मौद्रिक स्थिरता सुनिश्चित करता है, जबकि NABARD और IDBI जैसे संस्थानों ने कृषि और औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया है। इसके अतिरिक्त, MGNREGA, NRHM, JNNURM जैसे संस्थागत सुधारों और सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) ने सामाजिक कल्याण, ग्रामीण विकास और शहरी बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, हालांकि इनके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ भी रही हैं। ये सभी संस्थान और पहलें भारत की आर्थिक यात्रा के अभिन्न अंग रहे हैं और देश के भविष्य के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे।

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