राष्ट्रीय एकीकरण (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
राष्ट्रीय एकीकरण (National Integration) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी राष्ट्र के भीतर विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक समूह एक साझा पहचान और उद्देश्य के तहत एकजुट होते हैं, जबकि अपनी विविधता को बनाए रखते हैं। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, राष्ट्रीय एकीकरण एक सतत और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
1. राष्ट्रीय एकीकरण की अवधारणा (Concept of National Integration)
राष्ट्रीय एकीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है जो केवल राजनीतिक एकता से कहीं अधिक है।
1.1. परिभाषा
- राष्ट्रीय एकीकरण का अर्थ है एक राष्ट्र के भीतर विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक समूहों के बीच एकता और सामंजस्य की भावना विकसित करना। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोग अपनी उप-समूह पहचान को बनाए रखते हुए एक साझा राष्ट्रीय पहचान विकसित करते हैं।
- यह एकीकरण बलपूर्वक नहीं, बल्कि स्वैच्छिक स्वीकृति और सहिष्णुता के माध्यम से होता है।
1.2. बहुआयामी प्रक्रिया
- यह केवल राजनीतिक एकता नहीं है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक एकता भी है।
- विविधता में एकता: भारत के संदर्भ में, राष्ट्रीय एकीकरण का अर्थ ‘विविधता में एकता’ (Unity in Diversity) है, जहाँ विभिन्न संस्कृतियाँ, भाषाएँ और धर्म एक साथ सह-अस्तित्व में रहते हैं और एक साझा राष्ट्रीय पहचान बनाते हैं।
2. राष्ट्रीय एकीकरण के घटक (Components of National Integration)
राष्ट्रीय एकीकरण विभिन्न स्तरों पर कार्य करता है।
- भौगोलिक एकीकरण: देश की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना और सीमाओं की सुरक्षा करना।
- राजनीतिक एकीकरण: एक साझा राजनीतिक व्यवस्था, संवैधानिक मूल्यों (जैसे लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, न्याय) और कानूनों के प्रति निष्ठा।
- सामाजिक एकीकरण: जाति, धर्म, लिंग, वर्ग और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना।
- आर्थिक एकीकरण: क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना, सभी क्षेत्रों के लिए संतुलित विकास सुनिश्चित करना और एक एकीकृत राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का निर्माण करना।
- सांस्कृतिक एकीकरण: विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं के प्रति सम्मान और सहिष्णुता को बढ़ावा देना, जबकि एक साझा राष्ट्रीय संस्कृति का विकास करना।
- मनोवैज्ञानिक एकीकरण: लोगों में ‘हम भारतीय हैं’ की भावना विकसित करना।
3. राष्ट्रीय एकीकरण के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to National Integration)
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में कई बाधाएँ मौजूद हैं।
- क्षेत्रवाद: भाषाई, सांस्कृतिक या आर्थिक आधार पर क्षेत्रीय पहचान को राष्ट्रीय पहचान से ऊपर रखना, जिससे अलगाववाद की भावना बढ़ सकती है।
- जातिवाद: जातिगत भेदभाव, जातिगत पहचान पर आधारित राजनीतिक और सामाजिक विभाजन, और जातिगत संघर्ष।
- सांप्रदायिकता: धार्मिक पहचान को राजनीतिक पहचान से जोड़ना और धार्मिक समूहों के बीच अविश्वास, घृणा और शत्रुता।
- भाषाई विभाजन: भाषाई आधार पर संघर्ष, राज्यों के बीच सीमा और जल विवाद, और भाषा को लेकर तनाव।
- आर्थिक असमानताएँ: विभिन्न क्षेत्रों और सामाजिक समूहों के बीच विकास में असमानताएँ, जिससे वंचितों में असंतोष बढ़ता है।
- अशिक्षा और गरीबी: ये कारक लोगों को संकीर्ण पहचानों की ओर धकेल सकते हैं और उन्हें राष्ट्रीय मुख्यधारा से अलग कर सकते हैं।
- आतंकवाद और उग्रवाद: आंतरिक और सीमा पार से प्रेरित आतंकवादी और उग्रवादी समूह राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता के लिए खतरा पैदा करते हैं।
- बाहरी हस्तक्षेप: पड़ोसी देशों द्वारा अलगाववादी या आतंकवादी समूहों को समर्थन, जिससे आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ती हैं।
- राजनीति का अपराधीकरण और भ्रष्टाचार: ये कारक संस्थानों की विश्वसनीयता को कम करते हैं और जनता में अविश्वास पैदा करते हैं।
4. राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के उपाय (Measures to Promote National Integration)
भारत सरकार और नागरिक समाज ने राष्ट्रीय एकीकरण को मजबूत करने के लिए विभिन्न पहलें की हैं।
- संवैधानिक प्रावधान:
- प्रस्तावना: ‘हम भारत के लोग’ के माध्यम से एकता और बंधुत्व का आदर्श।
- मौलिक अधिकार: समानता (अनुच्छेद 14), भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15), स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19), धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-28)।
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत: सामाजिक न्याय और कल्याणकारी राज्य के माध्यम से असमानताओं को कम करना।
- मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A): भारत के सभी लोगों में समरसता और समान बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देना।
- धर्मनिरपेक्षता: राज्य का सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार और धार्मिक स्वतंत्रता का संरक्षण (भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है)।
- संघवाद: केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का संतुलन, जिससे क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समायोजित किया जा सके और राज्यों को स्वायत्तता मिल सके।
- भाषाई नीतियाँ: सभी भाषाओं को सम्मान देना, त्रि-भाषा सूत्र जैसी नीतियों को बढ़ावा देना, और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना।
- शिक्षा: राष्ट्रीय एकता, सहिष्णुता, विविधता में एकता और संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाली शिक्षा।
- आर्थिक विकास: संतुलित क्षेत्रीय विकास और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करना, जिससे वंचितों में असंतोष कम हो।
- राष्ट्रीय प्रतीक और त्योहार: राष्ट्रीय प्रतीकों (ध्वज, गान, प्रतीक) और त्योहारों (स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस) के माध्यम से एकता की भावना को बढ़ावा देना।
- युवा कार्यक्रम: राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS), राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC), एक भारत श्रेष्ठ भारत जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं में राष्ट्रीय भावना जगाना और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
- मीडिया की भूमिका: मीडिया को राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने और विभाजनकारी सामग्री से बचने में जिम्मेदार भूमिका निभानी चाहिए।
- नागरिक समाज की भागीदारी: नागरिक समाज संगठनों को सांप्रदायिक सद्भाव, अंतर-सांस्कृतिक संवाद और सामाजिक समावेशिता को बढ़ावा देना चाहिए।
- कानून और व्यवस्था: अलगाववादी, सांप्रदायिक और आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए कानून और व्यवस्था बनाए रखना।
5. निष्कर्ष (Conclusion)
राष्ट्रीय एकीकरण भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए एक सतत और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह केवल राजनीतिक एकता नहीं है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सामंजस्य भी है। क्षेत्रवाद, जातिवाद, सांप्रदायिकता, भाषाई विभाजन और आर्थिक असमानताएँ जैसी चुनौतियाँ इस प्रक्रिया के मार्ग में बाधा डालती हैं। हालांकि, भारतीय संविधान द्वारा प्रदान किए गए मजबूत संवैधानिक प्रावधानों, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और विभिन्न सरकारी तथा नागरिक समाज की पहलों के माध्यम से भारत ने अपनी विविधता में एकता को सफलतापूर्वक बनाए रखा है। एक मजबूत, एकजुट और समृद्ध भारत के निर्माण के लिए राष्ट्रीय एकीकरण के प्रयासों को निरंतर जारी रखना आवश्यक है।