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संसदीय समितियाँ -संयुक्त समिति (Joint Committee)

संयुक्त समिति (Joint Committee) भारतीय संसद में एक ऐसी समिति होती है जिसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्य शामिल होते हैं। ये समितियाँ संसद के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, खासकर जब किसी विधेयक पर दोनों सदनों के बीच आम सहमति बनाने या किसी विशेष मुद्दे की विस्तृत जांच करने की आवश्यकता होती है। संयुक्त समितियाँ स्थायी (जैसे नियम समिति की संयुक्त बैठक) या तदर्थ (जैसे संयुक्त संसदीय समिति) हो सकती हैं।

1. संयुक्त समिति की अवधारणा (Concept of Joint Committee)

संयुक्त समिति दोनों सदनों के सदस्यों को एक साथ लाकर संसद के कार्यों को सुव्यवस्थित करती है।

  • परिभाषा: एक संसदीय समिति जिसमें संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सदस्य शामिल होते हैं।
  • उद्देश्य:
    • किसी विधेयक पर दोनों सदनों के बीच आम सहमति बनाना।
    • किसी विशेष मुद्दे या घोटाले की विस्तृत और गहन जांच करना।
    • दोनों सदनों के बीच समन्वय और सहयोग को बढ़ावा देना।
  • संरचना: आमतौर पर, संयुक्त समिति में लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा के सदस्यों की संख्या से दोगुनी होती है (जैसे 2:1 का अनुपात)।

2. संयुक्त समिति के प्रकार (Types of Joint Committees)

संयुक्त समितियाँ स्थायी या तदर्थ प्रकृति की हो सकती हैं।

2.1. स्थायी संयुक्त समितियाँ (Standing Joint Committees)

  • ये समितियाँ स्थायी प्रकृति की होती हैं और निरंतर आधार पर कार्य करती हैं।
  • इनका गठन संसद के अधिनियम या प्रक्रिया के नियमों के तहत किया जाता है।
  • उदाहरण:
    • कल्याणकारी समितियों की संयुक्त समिति (Joint Committee on Offices of Profit): संसद के सदस्यों को अयोग्य ठहराने वाले लाभ के पद के मुद्दों की जांच करती है।
    • सांविधिक संकल्पों और आदेशों पर संयुक्त समिति (Joint Committee on Statutory Resolutions and Orders): सांविधिक संकल्पों और आदेशों की जांच करती है।

2.2. तदर्थ संयुक्त समितियाँ (Ad Hoc Joint Committees)

  • ये समितियाँ अस्थायी प्रकृति की होती हैं और एक विशिष्ट कार्य के लिए गठित की जाती हैं।
  • कार्य पूरा होने के बाद या रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद इनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
  • प्रमुख उदाहरण: संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee – JPC)
    • गठन: किसी विशेष मुद्दे, घोटाले या विधेयक की विस्तृत जांच के लिए संसद द्वारा एक प्रस्ताव पारित करके गठित की जाती है।
    • उद्देश्य:
      • सरकार के किसी विशेष कार्य या नीति की जांच करना।
      • किसी घोटाले या अनियमितता की जांच करना।
      • किसी महत्वपूर्ण विधेयक पर विस्तृत विचार-विमर्श करना।
    • शक्तियाँ: JPC के पास सिविल कोर्ट की शक्तियाँ होती हैं, जैसे गवाहों को बुलाना, दस्तावेजों की मांग करना।
    • प्रकृति: इसकी सिफारिशें सलाहकारी प्रकृति की होती हैं, लेकिन उनका राजनीतिक और नैतिक महत्व होता है।
    • उदाहरण:
      • बोफोर्स घोटाला JPC (1987): राजीव गांधी सरकार के दौरान।
      • हर्षद मेहता शेयर बाजार घोटाला JPC (1992): नरसिम्हा राव सरकार के दौरान।
      • केतन पारेख शेयर बाजार घोटाला JPC (2001): वाजपेयी सरकार के दौरान।
      • 2G स्पेक्ट्रम आवंटन JPC (2011): मनमोहन सिंह सरकार के दौरान।
      • भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन विधेयक पर JPC (2015)।
  • विधेयकों पर संयुक्त प्रवर समिति (Joint Select Committee on Bills):
    • किसी विशेष विधेयक पर विस्तृत विचार-विमर्श और संशोधन प्रस्तावित करने के लिए गठित की जाती है।
    • यह विधेयक को संसद में वापस भेजने से पहले उसकी गहन जांच करती है।

3. संयुक्त समिति के कार्य और महत्व (Functions and Significance of Joint Committee)

संयुक्त समितियाँ संसद के कामकाज को अधिक प्रभावी बनाती हैं।

  • विस्तृत जांच और विशेषज्ञता: ये समितियाँ जटिल मुद्दों, विधेयकों और घोटालों की विस्तृत और गहन जांच करती हैं, जिसमें विशेषज्ञता का उपयोग किया जाता है।
  • दोनों सदनों का प्रतिनिधित्व: यह सुनिश्चित करता है कि दोनों सदनों के दृष्टिकोण और विशेषज्ञता को शामिल किया जाए।
  • समन्वय और सामंजस्य: यह लोकसभा और राज्यसभा के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है, जिससे विधेयकों पर गतिरोध कम होता है।
  • कार्यपालिका पर नियंत्रण: ये समितियाँ सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं और कार्यपालिका पर विधायी नियंत्रण रखती हैं।
  • जनता की भागीदारी: समितियाँ हितधारकों, विशेषज्ञों और जनता से परामर्श कर सकती हैं, जिससे नीति निर्माण में जन भागीदारी बढ़ती है।
  • संसद के समय की बचत: ये समितियाँ संसद के सत्रों के बाहर भी काम कर सकती हैं, जिससे संसद के कीमती समय की बचत होती है।

4. संयुक्त समिति के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to Joint Committee)

संयुक्त समितियों को अपने प्रभावी कामकाज में कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

  • सलाहकारी प्रकृति: समितियों की सिफारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होती हैं, जिससे उनके प्रभाव पर सीमा लगती है।
  • राजनीतिकरण: कभी-कभी समितियों का कामकाज दलीय राजनीति से प्रभावित होता है, जिससे सर्वसम्मति से निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है।
  • संसाधनों की कमी: समितियों के पास पर्याप्त मानव संसाधन और विशेषज्ञ सहायता की कमी हो सकती है।
  • मीडिया कवरेज का अभाव: समितियों के काम को अक्सर मुख्यधारा के मीडिया में पर्याप्त कवरेज नहीं मिलता है, जिससे जनता में जागरूकता कम होती है।
  • सरकार की प्रतिक्रिया में देरी: समितियों की रिपोर्टों पर सरकार की प्रतिक्रिया में देरी हो सकती है।

5. निष्कर्ष (Conclusion)

संयुक्त समितियाँ भारतीय संसद के कामकाज का एक अनिवार्य हिस्सा हैं, जो विधायी और जांच कार्यों को अधिक दक्षता और गहराई से करने में मदद करती हैं। संयुक्त संसदीय समितियाँ (JPCs) और विधेयकों पर संयुक्त प्रवर समितियाँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे जटिल मुद्दों की विस्तृत जांच करती हैं और दोनों सदनों के सदस्यों को एक साथ लाती हैं। यद्यपि उनकी सिफारिशें सलाहकारी प्रकृति की होती हैं और उन्हें राजनीतिकरण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, संयुक्त समितियाँ सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने, विधायी प्रक्रिया को मजबूत करने और भारतीय लोकतंत्र में विशेषज्ञता लाने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण बनी रहेंगी।

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