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सूचना का अधिकार (Right to Information)

सूचना का अधिकार (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

सूचना का अधिकार (Right to Information – RTI) भारत में एक महत्वपूर्ण कानून है, जिसे 15 जून, 2005 को संसद द्वारा पारित किया गया था और 12 अक्टूबर, 2005 को पूरी तरह से लागू हुआ। यह नागरिकों को सरकारी अधिकारियों और सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सूचना प्राप्त करने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है।

1. सूचना के अधिकार की अवधारणा और पृष्ठभूमि (Concept and Background of Right to Information)

सूचना का अधिकार लोकतंत्र में नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

1.1. अवधारणा

  • सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जो अनुच्छेद 19(1)(a) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत निहित है। सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न वादों में इसे मान्यता दी है।
  • यह नागरिकों को सरकार से जानकारी मांगने का अधिकार देता है, जिससे सरकारी कामकाज में पारदर्शिता आती है।

1.2. पृष्ठभूमि

  • प्रारंभिक आंदोलन: भारत में सूचना के अधिकार के लिए आंदोलन 1990 के दशक में राजस्थान के मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) द्वारा शुरू किया गया था, जिसका नेतृत्व अरुणा रॉय ने किया था।
  • राज्य स्तरीय कानून: राजस्थान, तमिलनाडु, गोवा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार से पहले ही अपने स्वयं के RTI कानून पारित कर दिए थे।
  • केंद्रीय कानून की आवश्यकता: एक मजबूत और व्यापक केंद्रीय कानून की आवश्यकता महसूस की गई ताकि पूरे देश में एक समान मानक लागू हो सके।

2. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रमुख प्रावधान (Key Provisions of the RTI Act, 2005)

यह अधिनियम नागरिकों को सूचना प्राप्त करने के लिए एक विस्तृत ढाँचा प्रदान करता है।

  • सूचना का अधिकार: प्रत्येक नागरिक को सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा धारित या उनके नियंत्रण में किसी भी जानकारी तक पहुँचने का अधिकार है।
  • सार्वजनिक प्राधिकरण: अधिनियम उन सभी प्राधिकरणों या निकायों पर लागू होता है जो संविधान, संसद के किसी कानून, राज्य विधानमंडल के किसी कानून या उपयुक्त सरकार द्वारा जारी अधिसूचना द्वारा स्थापित या गठित किए गए हैं, और जो सरकार द्वारा वित्तपोषित या नियंत्रित हैं।
  • केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission – CIC) और राज्य सूचना आयोग (State Information Commission – SIC):
    • अधिनियम के तहत केंद्र और राज्य स्तर पर CIC और SIC की स्थापना का प्रावधान है।
    • ये आयोग सूचना के अधिकार से संबंधित शिकायतों और अपीलों की सुनवाई करते हैं।
  • लोक सूचना अधिकारी (Public Information Officer – PIO):
    • प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण को एक PIO (केंद्रीय PIO और राज्य PIO) नियुक्त करना अनिवार्य है।
    • PIO नागरिकों द्वारा दायर RTI आवेदनों को संसाधित करने और जानकारी प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होता है।
  • सूचना प्रदान करने की समय-सीमा:
    • सामान्यतः, PIO को 30 दिनों के भीतर जानकारी प्रदान करनी होती है।
    • यदि जानकारी किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित है, तो इसे 48 घंटों के भीतर प्रदान किया जाना चाहिए।
  • शुल्क: जानकारी प्राप्त करने के लिए एक मामूली शुल्क लिया जाता है। गरीबी रेखा से नीचे के व्यक्तियों को शुल्क से छूट दी गई है।
  • स्वैच्छिक प्रकटीकरण (Suo Motu Disclosure): अधिनियम सार्वजनिक प्राधिकरणों को अपनी कुछ जानकारी को स्वेच्छा से सार्वजनिक करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है, ताकि नागरिकों को RTI आवेदन दाखिल करने की आवश्यकता न पड़े।

3. सूचना के अधिकार से छूट (Exemptions from Right to Information)

कुछ विशेष प्रकार की जानकारी को अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया है।

  • जानकारी जिसका प्रकटीकरण भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों, या विदेशी राज्य के साथ संबंधों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।
  • जानकारी जिसका प्रकटीकरण किसी अपराध को उकसाएगा।
  • जानकारी जो किसी न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा प्रकाशित करने के लिए स्पष्ट रूप से निषिद्ध है।
  • जानकारी जिसका प्रकटीकरण किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।
  • जानकारी जो वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार रहस्य या बौद्धिक संपदा से संबंधित है।
  • कैबिनेट के कागजात, जिसमें मंत्रिपरिषद, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श के रिकॉर्ड शामिल हैं।
  • व्यक्तिगत जानकारी जिसका सार्वजनिक हित से कोई संबंध नहीं है।
  • कुछ खुफिया और सुरक्षा संगठन (जैसे IB, RAW, BSF) अधिनियम के दायरे से बाहर हैं।

4. सूचना के अधिकार का महत्व (Significance of Right to Information)

RTI अधिनियम ने भारत में शासन और लोकतंत्र पर गहरा प्रभाव डाला है।

  • पारदर्शिता और जवाबदेही में वृद्धि: यह सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाता है और सार्वजनिक अधिकारियों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह बनाता है।
  • भ्रष्टाचार को कम करना: जानकारी तक पहुंच प्रदान करके भ्रष्टाचार की संभावना को कम करता है।
  • नागरिक सशक्तिकरण: नागरिकों को अपने अधिकारों और सरकारी कार्यों के बारे में जानकारी प्रदान करके सशक्त करता है।
  • सुशासन को बढ़ावा: यह सुशासन के सिद्धांतों (पारदर्शिता, जवाबदेही, भागीदारी) को बढ़ावा देता है।
  • जन भागीदारी: नागरिकों को नीति निर्माण और कार्यान्वयन की निगरानी में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम बनाता है।
  • सरकार की दक्षता में सुधार: जानकारी के प्रकटीकरण के डर से सरकारी अधिकारी अधिक कुशल और सतर्क हो जाते हैं।
  • निर्णय लेने में सुधार: जानकारी तक पहुंच से नागरिक बेहतर निर्णय ले सकते हैं।

5. सूचना के अधिकार के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to Right to Information)

RTI अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन में कई बाधाएँ मौजूद हैं।

  • जागरूकता का अभाव: विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों और वंचित वर्गों में नागरिकों में RTI के बारे में जागरूकता की कमी।
  • PIOs का प्रतिरोध: कुछ PIOs द्वारा जानकारी प्रदान करने में प्रतिरोध या देरी।
  • डेटा का खराब प्रबंधन: सरकारी विभागों में जानकारी का खराब रिकॉर्ड-कीपिंग और डिजिटलीकरण का अभाव।
  • अपीलीय प्रक्रिया में देरी: CIC और SIC में अपीलों के निपटान में देरी, जिससे न्याय मिलने में विलंब होता है।
  • व्हिसल ब्लोअर्स की सुरक्षा: जानकारी मांगने वाले व्यक्तियों (व्हिसल ब्लोअर्स) को उत्पीड़न या धमकी का सामना करना पड़ सकता है।
  • अधिनियम का दुरुपयोग: कुछ व्यक्तियों द्वारा अधिनियम का दुरुपयोग (जैसे तुच्छ या परेशान करने वाले आवेदन)।
  • CIC/SIC की स्वतंत्रता: सूचना आयुक्तों की नियुक्ति और कार्यकाल में सरकार के हस्तक्षेप के आरोप।
  • 2019 का RTI संशोधन अधिनियम: इस संशोधन ने CIC और SIC के सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन को केंद्र सरकार के विवेक पर छोड़ दिया है, जिससे उनकी स्वतंत्रता प्रभावित होने की चिंता है।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारत में सुशासन, पारदर्शिता और नागरिक सशक्तिकरण के लिए एक मील का पत्थर है। यह नागरिकों को सरकारी जानकारी तक पहुँचने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है, जिससे भ्रष्टाचार कम होता है और सरकार अधिक जवाबदेह बनती है। हालांकि, जागरूकता की कमी, PIOs का प्रतिरोध और अपीलीय प्रक्रिया में देरी जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। 2019 के संशोधन अधिनियम ने आयोगों की स्वतंत्रता को लेकर चिंताएँ भी पैदा की हैं। इन चुनौतियों का सामना करके और अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करके ही सूचना के अधिकार की पूरी क्षमता का उपयोग किया जा सकता है, जिससे भारत का लोकतंत्र और शासन प्रणाली और अधिक मजबूत हो सके।

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