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अनुसूचित जाति/जनजाति अधिकार (Scheduled Caste/Scheduled Tribe Rights)

अनुसूचित जाति/जनजाति अधिकार (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) भारत के संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त सामाजिक रूप से वंचित समूह हैं। इन समुदायों को ऐतिहासिक रूप से भेदभाव, अस्पृश्यता और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का सामना करना पड़ा है। भारतीय संविधान और विभिन्न कानूनों के माध्यम से, इन समुदायों के अधिकारों की रक्षा और उनके उत्थान के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, ताकि उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके।

1. पृष्ठभूमि और संवैधानिक आधार (Background and Constitutional Basis)

भारतीय संविधान सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसके तहत SC/ST के लिए विशेष सुरक्षा उपाय किए गए।

  • ऐतिहासिक अन्याय: सदियों से अस्पृश्यता और सामाजिक बहिष्कार के कारण SC समुदायों को, जबकि भौगोलिक अलगाव और शोषण के कारण ST समुदायों को हाशिए पर धकेला गया।
  • संवैधानिक प्रतिबद्धता: भारतीय संविधान की प्रस्तावना ‘सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय’ का वादा करती है और ‘स्थिति तथा अवसर की समानता’ सुनिश्चित करती है।
  • सकारात्मक कार्रवाई: संविधान में SC/ST के लिए ‘सकारात्मक कार्रवाई’ (Positive Affirmation) या ‘सुरक्षात्मक भेदभाव’ (Protective Discrimination) के प्रावधान किए गए हैं, ताकि ऐतिहासिक असमानताओं को दूर किया जा सके।

2. अनुसूचित जाति (Scheduled Castes – SC) के अधिकार

SC समुदायों के लिए संविधान और कानूनों में विशेष प्रावधान किए गए हैं।

2.1. संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 15(4) और 15(5): राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों या SC/ST की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है (जैसे शिक्षा में आरक्षण)।
  • अनुच्छेद 16(4) और 16(4A): सार्वजनिक रोजगार में पदों के आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान। पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान (16(4A))।
  • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन और किसी भी रूप में इसके आचरण का निषेध। इसे लागू करने के लिए कानून बनाए गए हैं।
  • अनुच्छेद 46: राज्य को SC/ST के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने और उन्हें सामाजिक अन्याय व सभी प्रकार के शोषण से बचाने का निर्देश।
  • अनुच्छेद 330 और 332: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में SC के लिए सीटों का आरक्षण।
  • अनुच्छेद 335: सेवाओं और पदों के लिए SC/ST के दावों पर विचार, प्रशासन की दक्षता बनाए रखते हुए।
  • अनुच्छेद 338: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes – NCSC) का प्रावधान। यह आयोग SC के हितों की रक्षा, सुरक्षा और कल्याण के लिए कार्य करता है।
  • अनुच्छेद 341: राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में उन जातियों, नस्लों या जनजातियों को SC के रूप में निर्दिष्ट कर सकते हैं।

2.2. प्रमुख कानून

  • सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 (Protection of Civil Rights Act, 1955):
    • मूल रूप से ‘अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955’ के रूप में पारित।
    • अस्पृश्यता के आचरण को दंडनीय अपराध घोषित करता है।
    • सार्वजनिक स्थानों और सेवाओं तक SC की पहुंच सुनिश्चित करता है।
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST (Prevention of Atrocities) Act, 1989):
    • SC/ST के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकने और ऐसे अपराधों के लिए कठोर दंड का प्रावधान करने के लिए बनाया गया था।
    • पीड़ितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करता है।

3. अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes – ST) के अधिकार

ST समुदायों के लिए संविधान और कानूनों में विशेष प्रावधान किए गए हैं, जो उनकी विशिष्ट संस्कृति और जीवन शैली को ध्यान में रखते हैं।

3.1. संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 15(4) और 15(5): शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 16(4) और 16(4A): सार्वजनिक रोजगार में पदों के आरक्षण और पदोन्नति में आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 46: राज्य को SC/ST के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने और उन्हें सामाजिक अन्याय व सभी प्रकार के शोषण से बचाने का निर्देश।
  • अनुच्छेद 244: अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान।
  • पांचवीं अनुसूची: असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को छोड़कर किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित प्रावधान।
  • छठी अनुसूची: असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान।
  • अनुच्छेद 330 और 332: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में ST के लिए सीटों का आरक्षण।
  • अनुच्छेद 338A: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes – NCST) का प्रावधान। यह आयोग ST के हितों की रक्षा, सुरक्षा और कल्याण के लिए कार्य करता है।
  • अनुच्छेद 342: राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में उन जनजातियों या जनजातीय समुदायों को ST के रूप में निर्दिष्ट कर सकते हैं।
  • अनुच्छेद 275(1): जनजातीय कल्याण के लिए केंद्र से राज्यों को अनुदान।

3.2. प्रमुख कानून

  • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA Act, 1996):
    • यह अधिनियम संविधान के भाग IX (पंचायतों) के प्रावधानों को पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों तक विस्तारित करता है।
    • इसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों को स्वशासन का अधिकार प्रदान करना और उनके पारंपरिक अधिकारों की रक्षा करना है।
    • ग्राम सभा को विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है, विशेषकर भूमि अधिग्रहण, लघु वन उपज और खनिज संसाधनों पर।
  • वन अधिकार अधिनियम, 2006 (Forest Rights Act, 2006):
    • वन में रहने वाले अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन अधिकारों को मान्यता देता है।
    • उन्हें वन भूमि पर व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार प्रदान करता है।
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: SC के समान, यह ST के खिलाफ अत्याचारों को भी कवर करता है।

4. आरक्षण नीति (Reservation Policy)

आरक्षण नीति SC/ST के लिए सामाजिक और शैक्षिक समानता प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।

  • शिक्षा में आरक्षण:
    • सरकारी और निजी (गैर-सहायता प्राप्त) शैक्षिक संस्थानों में SC/ST के लिए सीटों का आरक्षण (अनुच्छेद 15(4), 15(5))।
  • रोजगार में आरक्षण:
    • केंद्रीय और राज्य सरकार की सेवाओं में SC/ST के लिए पदों का आरक्षण (अनुच्छेद 16(4))।
    • पदोन्नति में आरक्षण (अनुच्छेद 16(4A))।
  • विधायिका में आरक्षण:
    • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में SC/ST के लिए सीटों का आरक्षण (अनुच्छेद 330, 332)।
    • यह आरक्षण शुरू में 10 वर्षों के लिए था, लेकिन इसे 104वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2020 द्वारा 25 जनवरी, 2030 तक बढ़ा दिया गया है।
  • स्थानीय स्वशासन में आरक्षण:
    • पंचायतों और नगर पालिकाओं में SC/ST के लिए सीटों का आरक्षण (73वें और 74वें संविधान संशोधन)।

5. कल्याणकारी योजनाएँ और पहलें (Welfare Schemes and Initiatives)

भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा SC/ST के उत्थान के लिए विभिन्न योजनाएँ और कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

  • शैक्षिक योजनाएँ:
    • मैट्रिक-पूर्व और मैट्रिक-पश्चात छात्रवृत्ति योजनाएँ।
    • राष्ट्रीय ओवरसीज छात्रवृत्ति योजना।
    • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) – ST छात्रों के लिए।
  • आर्थिक सशक्तिकरण:
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम (NSFDC)।
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम (NSTFDC)।
    • स्टैंड-अप इंडिया योजना।
    • प्रधानमंत्री जन धन योजना।
  • सामाजिक सुरक्षा:
    • स्वच्छता संबंधी कार्य में लगे व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए योजनाएँ।
    • हाशिए पर पड़े व्यक्तियों के लिए आश्रय गृह।
  • भूमि अधिकार: वन अधिकार अधिनियम, 2006 का कार्यान्वयन।

6. चुनौतियाँ (Challenges)

संवैधानिक प्रावधानों और कानूनों के बावजूद, SC/ST समुदायों को अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

  • कार्यान्वयन में कमी: कानूनों और योजनाओं का जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन न होना।
  • सामाजिक भेदभाव: अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव के विभिन्न रूप अभी भी समाज में मौजूद हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
  • हिंसा और अत्याचार: SC/ST के खिलाफ हिंसा और अत्याचार के मामले अभी भी सामने आते हैं।
  • भूमि का अलगाव: आदिवासियों की भूमि का अलगाव और उनके पारंपरिक अधिकारों का हनन।
  • आर्थिक असमानता: गरीबी, बेरोजगारी और संसाधनों तक पहुंच की कमी।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य तक पहुंच: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व की गुणवत्ता: आरक्षण के बावजूद, राजनीतिक प्रतिनिधित्व की गुणवत्ता और प्रभावशीलता में कमी।
  • जागरूकता का अभाव: SC/ST समुदायों में अपने अधिकारों और कानूनी सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता की कमी।

7. आगे की राह (Way Forward)

SC/ST समुदायों के अधिकारों को सुनिश्चित करने और उनके उत्थान के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

  • कानूनों का कड़ाई से कार्यान्वयन: सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम और SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम जैसे कानूनों का कड़ाई से कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  • सामाजिक जागरूकता: अस्पृश्यता और भेदभाव के खिलाफ सामाजिक जागरूकता अभियान चलाना और मानसिकता में बदलाव लाना।
  • आर्थिक सशक्तिकरण: शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के अवसर प्रदान करके आर्थिक असमानता को कम करना।
  • भूमि और वन अधिकारों की सुरक्षा: आदिवासी समुदायों के भूमि और वन अधिकारों की प्रभावी ढंग से रक्षा करना।
  • न्यायिक प्रक्रिया में तेजी: SC/ST से संबंधित मामलों के त्वरित निपटान के लिए विशेष न्यायालयों का गठन।
  • संस्थागत क्षमता निर्माण: NCSC और NCST जैसे आयोगों को मजबूत करना।
  • ग्राम सभाओं को सशक्त बनाना: PESA अधिनियम के तहत ग्राम सभाओं को अधिक शक्तियाँ प्रदान करना।

8. निष्कर्ष (Conclusion)

भारतीय संविधान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अधिकारों की रक्षा और उनके उत्थान के लिए एक मजबूत ढाँचा प्रदान करता है। मौलिक अधिकारों, नीति निदेशक तत्वों और विशेष कानूनों (जैसे सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम, PESA, वन अधिकार अधिनियम) के माध्यम से, भारत ने इन समुदायों को सामाजिक न्याय, समानता और सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास किया है। यद्यपि आरक्षण नीतियों और कल्याणकारी योजनाओं ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, सामाजिक भेदभाव, हिंसा और कार्यान्वयन में चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। इन चुनौतियों का सामना करने और संवैधानिक आदर्शों को पूरी तरह से साकार करने के लिए निरंतर प्रयासों, सामाजिक जागरूकता और प्रभावी शासन की आवश्यकता है, ताकि SC/ST समुदायों को गरिमापूर्ण जीवन और समान अवसर प्राप्त हो सकें।

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