सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) भारतीय न्यायिक प्रणाली के शीर्ष पर स्थित है और भारत का सर्वोच्च न्यायिक निकाय है। यह भारतीय संविधान का संरक्षक, मौलिक अधिकारों का गारंटर और देश में कानून का अंतिम व्याख्याकार है। इसकी स्थापना 26 जनवरी, 1950 को हुई थी, जिस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था।
1. संवैधानिक प्रावधान और संरचना (Constitutional Provisions and Composition)
सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और संरचना भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है।
1.1. संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान का भाग V (अनुच्छेद 124 से 147) सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित है।
1.2. संरचना
- गठन: इसमें एक मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India – CJI) और संसद द्वारा निर्धारित अन्य न्यायाधीश होते हैं।
- मूल रूप से, सर्वोच्च न्यायालय में एक CJI और 7 अन्य न्यायाधीश थे। संसद ने समय-समय पर न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई है। वर्तमान में, CJI सहित कुल 34 न्यायाधीश हैं।
1.3. न्यायाधीशों की नियुक्ति
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- CJI की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के उन न्यायाधीशों से परामर्श करने के बाद की जाती है जिन्हें वह आवश्यक समझता है।
- अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा CJI और सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के उन न्यायाधीशों से परामर्श करने के बाद की जाती है जिन्हें वह आवश्यक समझता है।
- कॉलेजियम प्रणाली: न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण में कॉलेजियम प्रणाली (CJI और सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक समूह) महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
1.4. न्यायाधीशों की योग्यताएँ
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
- उसे कम से कम 5 वर्षों के लिए किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना चाहिए; या
- उसे कम से कम 10 वर्षों के लिए किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता होना चाहिए; या
- वह राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित न्यायविद् होना चाहिए।
1.5. कार्यकाल और हटाना
- कार्यकाल: न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक पद धारण करते हैं।
- हटाना: न्यायाधीशों को केवल राष्ट्रपति के आदेश पर हटाया जा सकता है, जो संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव (साबित कदाचार या अक्षमता के आधार पर) के बाद ही पारित किया जा सकता है। यह प्रक्रिया बहुत कठोर है।
2. सर्वोच्च न्यायालय की स्वतंत्रता (Independence of the Supreme Court)
संविधान सर्वोच्च न्यायालय की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान करता है।
- नियुक्ति का तरीका: न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका का सीमित हस्तक्षेप (कॉलेजियम प्रणाली)।
- कार्यकाल की सुरक्षा: न्यायाधीशों को उनके कार्यकाल की सुरक्षा प्राप्त है।
- वेतन और भत्ते: न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर्धारित होते हैं और उनकी नियुक्ति के बाद उन्हें कम नहीं किया जा सकता है। ये भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) पर भारित होते हैं, इसलिए इन पर संसद में मतदान नहीं होता।
- संसद में आचरण पर चर्चा नहीं: न्यायाधीशों के आचरण पर संसद में चर्चा नहीं की जा सकती, सिवाय महाभियोग प्रस्ताव के।
- सेवानिवृत्ति के बाद वकालत पर प्रतिबंध: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद भारत में किसी भी न्यायालय या प्राधिकरण के समक्ष वकालत नहीं कर सकते।
- शक्तियों का पृथक्करण: न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से अलग रखा गया है (अनुच्छेद 50)।
- अपनी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति: सर्वोच्च न्यायालय के पास अपनी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति है (अनुच्छेद 129)।
3. सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार और शक्तियाँ (Jurisdiction and Powers of the Supreme Court)
सर्वोच्च न्यायालय भारत का सर्वोच्च न्यायिक निकाय है और इसके पास व्यापक शक्तियाँ हैं।
3.1. मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction – अनुच्छेद 131)
- केंद्र और एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद।
- केंद्र और किसी राज्य या राज्यों तथा एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच विवाद।
- दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवाद।
- ये ऐसे मामले हैं जिनकी सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय में ही की जा सकती है।
3.2. रिट क्षेत्राधिकार (Writ Jurisdiction – अनुच्छेद 32)
- मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सर्वोच्च न्यायालय पांच प्रकार की रिट जारी कर सकता है:
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus): अवैध हिरासत से मुक्ति के लिए।
- परमादेश (Mandamus): सार्वजनिक अधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश।
- प्रतिषेध (Prohibition): निचली अदालत को अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाने से रोकना।
- उत्प्रेषण (Certiorari): निचली अदालत के आदेश को रद्द करना या मामले को अपने पास मंगाना।
- अधिकार पृच्छा (Quo-Warranto): किसी व्यक्ति द्वारा धारण किए गए सार्वजनिक पद की वैधता की जांच करना।
- यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उच्च न्यायालयों के पास भी रिट जारी करने की शक्ति है (अनुच्छेद 226), और उनका क्षेत्राधिकार मौलिक अधिकारों के साथ-साथ अन्य कानूनी अधिकारों तक भी फैला हुआ है।
3.3. अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction – अनुच्छेद 132-136)
- सर्वोच्च न्यायालय भारत में अपील का सर्वोच्च न्यायालय है। यह उच्च न्यायालयों के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनता है।
- संवैधानिक मामलों में अपील (अनुच्छेद 132): यदि उच्च न्यायालय प्रमाणित करता है कि मामले में संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून का एक महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है।
- दीवानी मामलों में अपील (अनुच्छेद 133): यदि उच्च न्यायालय प्रमाणित करता है कि मामले में कानून का एक महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है।
- आपराधिक मामलों में अपील (अनुच्छेद 134): यदि उच्च न्यायालय ने किसी व्यक्ति को बरी करने के आदेश को पलट दिया है और उसे मौत की सजा दी है, या किसी मामले को अपने पास मंगाकर किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया है और उसे मौत की सजा दी है।
- विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition – SLP – अनुच्छेद 136): सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण (सैन्य न्यायालयों को छोड़कर) द्वारा दिए गए किसी भी निर्णय, डिक्री, निर्धारण, सजा या आदेश के खिलाफ अपील करने की विशेष अनुमति देने की विवेकाधीन शक्ति।
3.4. सलाहकार क्षेत्राधिकार (Advisory Jurisdiction – अनुच्छेद 143)
- राष्ट्रपति सार्वजनिक महत्व के किसी भी कानूनी या तथ्यात्मक प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाह मांग सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय सलाह देने के लिए बाध्य नहीं है, और राष्ट्रपति भी सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।
3.5. अभिलेख न्यायालय (Court of Record – अनुच्छेद 129)
- सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णय और कार्यवाही रिकॉर्ड के रूप में रखी जाती हैं और सभी अधीनस्थ न्यायालयों के लिए बाध्यकारी होती हैं।
- इसके पास अपनी अवमानना (Contempt of Court) के लिए दंडित करने की शक्ति है।
3.6. न्यायिक समीक्षा (Judicial Review – अनुच्छेद 13, 32, 131, 132, 136, 226)
- सर्वोच्च न्यायालय के पास विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों और कार्यपालिका द्वारा किए गए कार्यों की संवैधानिकता की समीक्षा करने की शक्ति है।
- यदि कोई कानून या कार्यकारी कार्य संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो उसे असंवैधानिक (Ultra Vires) घोषित किया जा सकता है।
- यह संविधान के ‘मूल ढांचे’ (Basic Structure) के सिद्धांत का संरक्षक है (केशवानंद भारती वाद, 1973)।
3.7. संविधान का संरक्षक
- सर्वोच्च न्यायालय संविधान का अंतिम व्याख्याकार और संरक्षक है।
4. न्यायिक सक्रियता और जनहित याचिका (Judicial Activism and Public Interest Litigation – PIL)
न्यायिक सक्रियता और PIL ने भारतीय न्यायपालिका की भूमिका को और अधिक गतिशील बनाया है।
- न्यायिक सक्रियता:
- जब न्यायपालिका अपनी पारंपरिक भूमिका से आगे बढ़कर विधायिका और कार्यपालिका के क्षेत्रों में हस्तक्षेप करती है, ताकि न्याय सुनिश्चित किया जा सके, विशेषकर जब वे अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहते हैं।
- यह अक्सर सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों में देखी जाती है।
- जनहित याचिका (PIL):
- PIL एक ऐसा तंत्र है जहाँ कोई भी व्यक्ति या संगठन सार्वजनिक हित के मामले में न्याय के लिए न्यायालय में जा सकता है, भले ही वह सीधे प्रभावित न हो।
- भारत में न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती और न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर को PIL का जनक माना जाता है।
- PIL ने न्याय तक पहुंच को आसान बनाया है, खासकर वंचित वर्गों के लिए, और सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया है।
5. सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to the Supreme Court)
भारतीय न्यायपालिका को अपने प्रभावी कामकाज में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- मामलों का भारी बोझ: न्यायालयों में लाखों मामले लंबित हैं, जिससे न्याय मिलने में देरी होती है (न्यायिक देरी)।
- न्यायाधीशों की कमी: न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या और वास्तविक संख्या के बीच बड़ा अंतर है।
- बुनियादी ढांचे का अभाव: न्यायालयों में पर्याप्त बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी और सहायक कर्मचारियों की कमी।
- भ्रष्टाचार के आरोप: न्यायपालिका के कुछ स्तरों पर भ्रष्टाचार के आरोप।
- न्यायिक सक्रियता की सीमाएँ: न्यायिक सक्रियता कभी-कभी शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन कर सकती है और ‘न्यायिक अतिक्रमण’ (Judicial Overreach) का कारण बन सकती है।
- कार्यपालिका से हस्तक्षेप: न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण में कार्यपालिका के हस्तक्षेप के आरोप (हालांकि कॉलेजियम प्रणाली इसे कम करने का प्रयास करती है)।
- न्यायिक जवाबदेही: न्यायपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावी तंत्र की कमी।
- भाषा बाधा: सर्वोच्च न्यायालय में कार्यवाही मुख्य रूप से अंग्रेजी में होती है, जिससे आम जनता के लिए पहुंच मुश्किल हो सकती है।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
सर्वोच्च न्यायालय भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण संरक्षक है, जो संविधान की रक्षा करती है और नागरिकों को न्याय प्रदान करती है। एक एकीकृत और स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली के साथ, सर्वोच्च न्यायालय शीर्ष पर है, जिसके पास व्यापक मूल, अपीलीय, रिट और सलाहकार क्षेत्राधिकार हैं। न्यायिक समीक्षा और जनहित याचिका ने न्यायपालिका की भूमिका को और अधिक गतिशील बनाया है, जिससे यह सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में सक्रिय रही है। हालांकि, मामलों का भारी बोझ, न्यायाधीशों की कमी और बुनियादी ढांचे का अभाव जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। इन चुनौतियों का सामना करने और न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ, कुशल और जवाबदेह बनाने के लिए निरंतर सुधारों की आवश्यकता है, ताकि यह भारत के लोकतांत्रिक आदर्शों को प्रभावी ढंग से बनाए रख सके।