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अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), पिछड़ा वर्ग (OBC) और अल्पसंख्यक: संविधानिक प्रावधान

अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), पिछड़ा वर्ग (OBC) और अल्पसंख्यक: संविधानिक प्रावधान (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

भारत का संविधान समाज के वंचित और हाशिए पर पड़े वर्गों को सामाजिक न्याय, समानता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, संविधान में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), पिछड़ा वर्ग (OBC) और अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। ये प्रावधान सकारात्मक कार्रवाई और सुरक्षात्मक भेदभाव के माध्यम से इन समूहों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करते हैं।

1. अनुसूचित जाति (Scheduled Castes – SC)

अनुसूचित जाति उन समुदायों को संदर्भित करती है जिन्हें ऐतिहासिक रूप से अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा है।

1.1. संवैधानिक संदर्भ

  • अनुच्छेद 341: राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में उन जातियों, नस्लों या जनजातियों को अनुसूचित जाति के रूप में निर्दिष्ट कर सकते हैं।
  • अनुच्छेद 366(24): ‘अनुसूचित जाति’ का अर्थ ऐसी जातियाँ, नस्लें या जनजातियाँ हैं जिन्हें अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जाति माना जाता है।

1.2. प्रमुख संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 15(4) और 15(5): राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 16(4) और 16(4A): सार्वजनिक रोजगार में पदों के आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान। पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान (16(4A))।
  • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन।
  • अनुच्छेद 46: राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने का निर्देश।
  • अनुच्छेद 330 और 332: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों का आरक्षण।
  • अनुच्छेद 335: सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार।
  • अनुच्छेद 338: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes – NCSC) का प्रावधान। यह आयोग SC के हितों की रक्षा और सुरक्षा के लिए कार्य करता है।

2. अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes – ST)

अनुसूचित जनजाति उन समुदायों को संदर्भित करती है जो भौगोलिक रूप से अलग-थलग रहते हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति और परंपराएँ हैं, और जो अक्सर आर्थिक रूप से पिछड़े होते हैं।

2.1. संवैधानिक संदर्भ

  • अनुच्छेद 342: राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में उन जनजातियों या जनजातीय समुदायों को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट कर सकते हैं।
  • अनुच्छेद 366(25): ‘अनुसूचित जनजाति’ का अर्थ ऐसी जनजातियाँ या जनजातीय समुदाय हैं जिन्हें अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।

2.2. प्रमुख संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 15(4) और 15(5): शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 16(4) और 16(4A): सार्वजनिक रोजगार में पदों के आरक्षण और पदोन्नति में आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 46: राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने का निर्देश।
  • अनुच्छेद 244 और पांचवीं अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित प्रावधान।
  • अनुच्छेद 244A और छठी अनुसूची: असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान।
  • अनुच्छेद 330 और 332: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों का आरक्षण।
  • अनुच्छेद 338A: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes – NCST) का प्रावधान। यह आयोग ST के हितों की रक्षा और सुरक्षा के लिए कार्य करता है।
  • अनुच्छेद 275(1): जनजातीय कल्याण के लिए केंद्र से राज्यों को अनुदान।

3. अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes – OBC)

अन्य पिछड़ा वर्ग उन सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को संदर्भित करता है जो SC और ST के अंतर्गत नहीं आते हैं।

3.1. संवैधानिक संदर्भ

  • अनुच्छेद 340: राष्ट्रपति को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थितियों की जांच करने और उनके उत्थान के लिए सिफारिशें करने के लिए एक आयोग नियुक्त करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 366(26C): ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग’ को परिभाषित करता है।

3.2. प्रमुख संवैधानिक प्रावधान और आयोग

  • अनुच्छेद 15(4) और 15(5): राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है (शिक्षा में आरक्षण)।
  • अनुच्छेद 16(4): सार्वजनिक रोजगार में पदों के आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान।
  • काका कालेलकर आयोग (1953): OBC की पहचान के लिए पहला आयोग।
  • मंडल आयोग (1979): बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में गठित, जिसने OBC के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की। यह सिफारिश 1990 में लागू की गई।
  • 102वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2018: इसने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes – NCBC) को संवैधानिक दर्जा दिया (अनुच्छेद 338B)।
  • अनुच्छेद 342A: राष्ट्रपति को किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।

4. अल्पसंख्यक (Minorities)

भारत में अल्पसंख्यक उन समुदायों को संदर्भित करते हैं जो संख्या में कम हैं और जिनकी अपनी विशिष्ट धार्मिक या भाषाई पहचान है।

4.1. संवैधानिक संदर्भ

  • भारतीय संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • अल्पसंख्यक मुख्य रूप से धार्मिक (मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी) और भाषाई आधार पर पहचाने जाते हैं।

4.2. प्रमुख संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण। नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार।
  • अनुच्छेद 350A: भाषाई अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा।
  • अनुच्छेद 350B: भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी (Special Officer for Linguistic Minorities) का प्रावधान।
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992: इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities – NCM) का गठन किया गया।

5. सामान्य प्रावधान और चुनौतियाँ (Common Provisions and Challenges)

इन सभी वर्गों के लिए कुछ सामान्य संवैधानिक प्रावधान और चुनौतियाँ हैं।

5.1. सामान्य प्रावधान

  • अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता।
  • अनुच्छेद 15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध।
  • अनुच्छेद 16: सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता।
  • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण।
  • अनुच्छेद 32: संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

5.2. चुनौतियाँ

  • कार्यान्वयन में कमी: संवैधानिक प्रावधानों का प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन न होना।
  • सामाजिक भेदभाव: कानूनों के बावजूद समाज में अभी भी भेदभाव का मौजूद होना।
  • आर्थिक असमानता: इन वर्गों में आर्थिक असमानता और गरीबी का बना रहना।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व: पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ।
  • सांप्रदायिक/जातिगत तनाव: विभिन्न समूहों के बीच तनाव और संघर्ष।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

भारतीय संविधान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधानों के माध्यम से एक समतावादी और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण का प्रयास करता है। ये प्रावधान इन वंचित वर्गों को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में समान अवसर प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। यद्यपि इन प्रावधानों ने इन समुदायों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, अभी भी सामाजिक भेदभाव, आर्थिक असमानता और कार्यान्वयन में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन चुनौतियों का सामना करने और संवैधानिक आदर्शों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयासों, सामाजिक जागरूकता और प्रभावी शासन की आवश्यकता है।

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