महिला और वृद्ध सुरक्षा (Women and Elderly Security) भारत में एक महत्वपूर्ण सामाजिक और नीतिगत चिंता का विषय है। संविधान ने सभी नागरिकों के लिए समानता और गरिमा सुनिश्चित की है, फिर भी महिलाएँ और वृद्ध व्यक्ति विभिन्न प्रकार की हिंसा, भेदभाव और शोषण के प्रति संवेदनशील बने हुए हैं। सरकार ने इन कमजोर वर्गों की सुरक्षा, कल्याण और सशक्तिकरण के लिए कई कानूनी, संस्थागत और नीतिगत उपाय किए हैं।
1. महिला सुरक्षा (Women’s Security)
महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना एक सुरक्षित, न्यायपूर्ण और समतावादी समाज के लिए अनिवार्य है।
1.1. महिलाओं के खिलाफ अपराध के प्रकार
- घरेलू हिंसा: शारीरिक, भावनात्मक, मौखिक, यौन या आर्थिक हिंसा।
- यौन उत्पीड़न: कार्यस्थल पर, सार्वजनिक स्थानों पर, या ऑनलाइन।
- बलात्कार और यौन हमला।
- दहेज हत्याएँ और दहेज उत्पीड़न।
- मानव तस्करी।
- एसिड अटैक।
- साइबर अपराध: साइबर स्टॉकिंग, ऑनलाइन उत्पीड़न।
1.2. संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता।
- अनुच्छेद 15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध। अनुच्छेद 15(3) राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण (गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार शामिल है)।
- अनुच्छेद 39(a) और 39(d): समान कार्य के लिए समान वेतन और आजीविका के पर्याप्त साधन।
- अनुच्छेद 42: काम की न्यायसंगत और मानवीय परिस्थितियाँ तथा मातृत्व राहत।
1.3. प्रमुख कानून
- घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005: महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाता है और उन्हें राहत प्रदान करता है।
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012: बच्चों को यौन शोषण से बचाता है।
- दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961: दहेज प्रथा को प्रतिबंधित करता है।
- आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 (निर्भया अधिनियम): बलात्कार और यौन उत्पीड़न के लिए कठोर दंड का प्रावधान करता है, और यौन उत्पीड़न की नई श्रेणियों को शामिल करता है।
- कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act): कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है।
- मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक: तस्करी को रोकने और पीड़ितों के पुनर्वास के लिए।
1.4. सरकारी पहलें और योजनाएँ
- राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW): महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनके मुद्दों को उठाना।
- वन स्टॉप सेंटर (OSC): हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एकीकृत सहायता (चिकित्सा, कानूनी, पुलिस, मनोवैज्ञानिक) प्रदान करना।
- महिला हेल्पलाइन (181): आपातकालीन सहायता प्रदान करना।
- निर्भया फंड: महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित योजनाओं को लागू करने के लिए।
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ: लिंगानुपात में सुधार और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना।
- महिला पुलिस स्वयंसेवक (Mahila Police Volunteers – MPV) योजना: पुलिस और समुदाय के बीच संपर्क स्थापित करना।
- सेफ सिटी परियोजना: शहरों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाना।
1.5. चुनौतियाँ
- पितृसत्तात्मक मानसिकता और सामाजिक रूढ़ियाँ: जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देती हैं।
- अपराधों की कम रिपोर्टिंग: सामाजिक कलंक और न्याय की लंबी प्रक्रिया के कारण।
- कानूनी प्रावधानों का कमजोर कार्यान्वयन: पुलिस और न्यायिक प्रणाली में संवेदनशीलता की कमी।
- डिजिटल हिंसा: ऑनलाइन उत्पीड़न और साइबरबुलिंग का बढ़ता खतरा।
2. वृद्ध सुरक्षा (Elderly Security)
भारत में वृद्ध आबादी तेजी से बढ़ रही है, और उनकी सुरक्षा, कल्याण और गरिमा सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण सामाजिक जिम्मेदारी है।
2.1. वृद्धों के समक्ष चुनौतियाँ
- आर्थिक असुरक्षा: पेंशन या नियमित आय का अभाव, जिससे वे दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं।
- स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: बढ़ती उम्र के साथ स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी।
- दुर्व्यवहार और उपेक्षा: परिवार के सदस्यों या देखभाल करने वालों द्वारा शारीरिक, भावनात्मक या वित्तीय दुर्व्यवहार और उपेक्षा।
- सामाजिक अलगाव: अकेलेपन और सामाजिक अलगाव की भावना।
- सुरक्षा चिंताएँ: अपराधों (जैसे चोरी, धोखाधड़ी) के प्रति अधिक संवेदनशील।
2.2. संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 41 (राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत): राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के अधिकार, शिक्षा पाने के अधिकार और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
2.3. प्रमुख कानून
- माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007):
- यह अधिनियम बच्चों और रिश्तेदारों पर माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण करने का कानूनी दायित्व डालता है।
- वरिष्ठ नागरिकों को दुर्व्यवहार से बचाने और उनके लिए आश्रय गृहों की स्थापना का प्रावधान करता है।
- वरिष्ठ नागरिकों के लिए त्वरित और सस्ते न्यायाधिकरणों (Tribunals) की स्थापना का प्रावधान करता है।
2.4. सरकारी पहलें और योजनाएँ
- राष्ट्रीय वृद्धजन नीति, 1999 (National Policy for Older Persons, 1999): वृद्धों के कल्याण के लिए एक व्यापक नीतिगत ढाँचा।
- राष्ट्रीय वयोश्री योजना (Rashtriya Vayoshri Yojana – RVY): गरीबी रेखा से नीचे के वरिष्ठ नागरिकों को शारीरिक सहायता और सहायक उपकरण प्रदान करना।
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS): वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- वृद्ध आश्रमों का समर्थन: सरकार वृद्ध आश्रमों के निर्माण और रखरखाव के लिए सहायता प्रदान करती है।
- वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (Senior Citizen Savings Scheme – SCSS): वरिष्ठ नागरिकों के लिए वित्तीय सुरक्षा।
- एल्डरलाइन (Elderline) – 14567: वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन।
- सगमा (SAGMA – Senior Able Citizens for Re-Employment in Dignity) पोर्टल: वरिष्ठ नागरिकों को रोजगार के अवसर प्रदान करना।
2.5. चुनौतियाँ
- सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन: संयुक्त परिवार प्रणाली का टूटना और पश्चिमीकरण का प्रभाव।
- जागरूकता का अभाव: वरिष्ठ नागरिकों और उनके परिवारों में कानूनों और योजनाओं के बारे में जागरूकता की कमी।
- स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच: ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर वृद्धों के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं की कमी।
- आर्थिक असुरक्षा: असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले वृद्धों के लिए सामाजिक सुरक्षा का अभाव।
- दुर्व्यवहार की रिपोर्टिंग: दुर्व्यवहार के मामलों की कम रिपोर्टिंग।
3. निष्कर्ष (Conclusion)
महिला और वृद्ध सुरक्षा भारत के सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारतीय संविधान और विभिन्न कानूनों (जैसे घरेलू हिंसा अधिनियम, POSH अधिनियम, माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम) ने इन कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मजबूत ढाँचा प्रदान किया है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, वन स्टॉप सेंटर, राष्ट्रीय वयोश्री योजना और एल्डरलाइन जैसी सरकारी पहलें उनके कल्याण और सुरक्षा को बढ़ावा दे रही हैं। हालांकि, पितृसत्तात्मक मानसिकता, सामाजिक रूढ़ियाँ, दुर्व्यवहार की कम रिपोर्टिंग और कार्यान्वयन में चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। इन चुनौतियों का सामना करने और एक सुरक्षित, सम्मानजनक और समावेशी समाज का निर्माण करने के लिए निरंतर प्रयासों, सामाजिक जागरूकता और प्रभावी शासन की आवश्यकता है।