राज्य नीति के निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy – DPSP) भारतीय संविधान के भाग IV (अनुच्छेद 36 से 51) में निहित हैं। ये वे सिद्धांत हैं जो देश में एक कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की स्थापना के लिए राज्य को दिशानिर्देश प्रदान करते हैं। मौलिक अधिकारों के विपरीत, DPSP गैर-न्यायोचित (Non-Justiciable) हैं, जिसका अर्थ है कि उनके उल्लंघन के लिए न्यायालयों द्वारा सीधे लागू नहीं किया जा सकता है। हालांकि, ये देश के शासन में मौलिक हैं और कानून बनाते समय राज्य का कर्तव्य है कि वह इन सिद्धांतों को लागू करे।
1. पृष्ठभूमि और विशेषताएँ (Background and Features)
DPSP भारतीय संविधान की एक अनूठी विशेषता है जो आयरलैंड के संविधान से प्रेरित है।
1.1. प्रेरणा
- DPSP की अवधारणा आयरलैंड के संविधान (Irish Constitution) से प्रेरित है, जिसने इसे स्पेनिश संविधान से लिया था।
1.2. उद्देश्य
- कल्याणकारी राज्य की स्थापना: DPSP का उद्देश्य भारत में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है, न कि केवल एक पुलिस राज्य का।
- सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र: ये देश में सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करने का प्रयास करते हैं।
- नीति निर्माताओं के लिए नैतिक दिशानिर्देश: ये केंद्र और राज्य सरकारों के लिए कानून और नीतियाँ बनाते समय एक नैतिक और संवैधानिक मार्गदर्शन के रूप में कार्य करते हैं।
1.3. विशेषताएँ
- गैर-न्यायोचित: इन्हें न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है।
- शासन में मौलिक: अनुच्छेद 37 स्पष्ट रूप से कहता है कि “इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंधों को किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं कराया जाएगा, किंतु फिर भी इनमें अधिकथित सिद्धांत देश के शासन में मौलिक हैं और विधि बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।”
- विधायी और कार्यकारी कार्यों के लिए मानदंड: ये विधायिका और कार्यपालिका के लिए एक प्रकार के ‘सकारात्मक निर्देश’ हैं।
- आदर्श: ये देश के लिए सामाजिक और आर्थिक आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
2. निदेशक तत्वों का वर्गीकरण (Classification of Directive Principles)
संविधान में DPSP को औपचारिक रूप से वर्गीकृत नहीं किया गया है, लेकिन उनकी सामग्री और दिशा के आधार पर उन्हें तीन व्यापक श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
2.1. समाजवादी सिद्धांत (Socialistic Principles)
- ये सामाजिक और आर्थिक न्याय प्रदान करने का लक्ष्य रखते हैं, और एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
- अनुच्छेद 38: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय द्वारा एक सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना। आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करना।
- अनुच्छेद 39: राज्य विशेष रूप से निम्नलिखित नीतियों को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा:
- पुरुषों और महिलाओं के लिए आजीविका के पर्याप्त साधनों का समान अधिकार।
- सामुदायिक संसाधनों का समान वितरण।
- धन और उत्पादन के साधनों के केंद्रीकरण को रोकना।
- पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन।
- श्रमिकों के स्वास्थ्य और शक्ति का संरक्षण।
- बच्चों को स्वस्थ विकास के अवसर।
- अनुच्छेद 39A: गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना (42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 41: कुछ मामलों में काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार (बेरोजगारी, बुढ़ापा, बीमारी आदि)।
- अनुच्छेद 42: काम की न्यायसंगत और मानवीय परिस्थितियाँ तथा मातृत्व राहत।
- अनुच्छेद 43: सभी श्रमिकों के लिए निर्वाह मजदूरी, सभ्य जीवन स्तर और सामाजिक व सांस्कृतिक अवसर।
- अनुच्छेद 43A: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी (42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 47: पोषण स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाना और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना।
2.2. गांधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles)
- ये गांधीवादी विचारधारा पर आधारित हैं और गांधीजी के सपनों को साकार करने का प्रयास करते हैं।
- अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायतों का संगठन और उन्हें स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने के लिए आवश्यक शक्तियाँ प्रदान करना।
- अनुच्छेद 43: ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
- अनुच्छेद 43B: सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कामकाज, लोकतांत्रिक नियंत्रण और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देना (97वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 46: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना।
- अनुच्छेद 47: नशीले पेय और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं के सेवन पर प्रतिबंध लगाना।
- अनुच्छेद 48: गायों, बछड़ों और अन्य दुधारू तथा भारवाही पशुओं के वध पर प्रतिबंध लगाना।
2.3. उदार-बौद्धिक सिद्धांत (Liberal-Intellectual Principles)
- ये उदारवादी विचारधारा पर आधारित हैं।
- अनुच्छेद 44: नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) को सुरक्षित करने का प्रयास करना।
- अनुच्छेद 45: सभी बच्चों के लिए 6 वर्ष की आयु पूरी होने तक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा प्रदान करना (86वें संशोधन द्वारा संशोधित)।
- अनुच्छेद 48: कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक आधार पर संगठित करना।
- अनुच्छेद 48A: पर्यावरण का संरक्षण और सुधार तथा वनों और वन्यजीवों की रक्षा करना (42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 49: राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण।
- अनुच्छेद 50: राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करना।
- अनुच्छेद 51: अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना।
3. मौलिक अधिकार और निदेशक तत्वों के बीच संबंध (Relationship between Fundamental Rights and Directive Principles)
मौलिक अधिकार और DPSP संविधान के दो महत्वपूर्ण भाग हैं, जो एक दूसरे के पूरक हैं।
- पूरक प्रकृति: मौलिक अधिकार राजनीतिक लोकतंत्र स्थापित करते हैं, जबकि DPSP सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करते हैं। वे एक दूसरे के पूरक हैं।
- विवाद और न्यायिक व्याख्या:
- चंपकम दोरायराजन बनाम मद्रास राज्य (1951): सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मौलिक अधिकार सर्वोच्च हैं और DPSP को उनके अनुरूप होना चाहिए।
- गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं किया जा सकता है, और DPSP को लागू करने के लिए भी नहीं।
- 24वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1971: संसद को मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति दी।
- 25वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1971: अनुच्छेद 39(b) और 39(c) में निहित DPSP को लागू करने के लिए बनाए गए किसी भी कानून को अनुच्छेद 14, 19 और 31 के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): सर्वोच्च न्यायालय ने ‘संविधान के मूल ढांचे’ (Basic Structure) का सिद्धांत दिया। इसने कहा कि संसद मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, लेकिन मूल ढांचे को नहीं बदल सकती। इसने मौलिक अधिकारों और DPSP के बीच संतुलन पर जोर दिया।
- 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976: इसने अनुच्छेद 31C का विस्तार किया और कहा कि कोई भी कानून जो किसी भी DPSP को लागू करने के लिए बनाया गया है, उसे अनुच्छेद 14 और 19 के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
- मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980): सर्वोच्च न्यायालय ने 42वें संशोधन के अनुच्छेद 31C के विस्तार को असंवैधानिक घोषित किया। इसने कहा कि मौलिक अधिकार और DPSP के बीच संतुलन संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है।
4. निदेशक तत्वों का कार्यान्वयन (Implementation of Directive Principles)
संविधान में गैर-न्यायोचित होने के बावजूद, कई DPSP को कानूनों और नीतियों के माध्यम से लागू किया गया है।
- भूमि सुधार: जमींदारी उन्मूलन, भूमि की चकबंदी, काश्तकारी सुधार।
- पंचायती राज प्रणाली: 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम (1992) द्वारा ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया (अनुच्छेद 40 का कार्यान्वयन)।
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948: श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करना (अनुच्छेद 43)।
- बाल श्रम निषेध: बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 (अनुच्छेद 24, 39)।
- मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961: मातृत्व राहत प्रदान करना (अनुच्छेद 42)।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: पर्यावरण और वन्यजीवों की रक्षा (अनुच्छेद 48A)।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009: 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा (अनुच्छेद 21A, 45)।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), 2005: काम के अधिकार को लागू करना (अनुच्छेद 41)।
- राष्ट्रीयकरण: बैंकों का राष्ट्रीयकरण (1969) धन के केंद्रीकरण को रोकने के लिए (अनुच्छेद 39(c))।
5. निष्कर्ष (Conclusion)
राज्य नीति के निदेशक तत्व भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण और अद्वितीय भाग हैं, जो देश में एक कल्याणकारी राज्य और सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना के लिए राज्य को दिशानिर्देश प्रदान करते हैं। यद्यपि ये गैर-न्यायोचित हैं, ये देश के शासन में मौलिक हैं और कानून बनाते समय राज्य का कर्तव्य है कि वह इन सिद्धांतों को लागू करे। मौलिक अधिकारों के साथ मिलकर, DPSP एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज के निर्माण के लिए एक व्यापक ढाँचा प्रदान करते हैं। विभिन्न कानूनों और नीतियों के माध्यम से इनके कार्यान्वयन ने भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और ये भविष्य में भी नीति निर्माताओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।