शिक्षा किसी भी समाज और राज्य के विकास की आधारशिला होती है। उत्तराखंड, जिसे “देवभूमि” के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन काल से ही ज्ञान और आध्यात्मिकता का केंद्र रहा है। राज्य गठन के बाद, शिक्षा के सार्वभौमिकरण और गुणवत्ता में सुधार हेतु विशेष प्रयास किए गए हैं, ताकि मानव संसाधन का विकास हो सके और राज्य सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।
उत्तराखंड में शिक्षा का विकास: एक सिंहावलोकन
- उत्तराखंड की साक्षरता दर 78.82% (जनगणना 2011) है, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
- पुरुष साक्षरता 87.40% तथा महिला साक्षरता 70.00% है।
- राज्य में शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 प्रभावी रूप से लागू है।
- आईआईटी रुड़की और जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान राज्य में स्थित हैं।
- सर्व शिक्षा अभियान (अब समग्र शिक्षा) ने प्रारंभिक शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)
क. प्राचीन एवं मध्यकाल
प्राचीन काल में उत्तराखंड गुरुकुल शिक्षा पद्धति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। कण्वाश्रम जैसे विद्यापीठ इसका प्रमाण हैं, जहाँ राजा भरत का लालन-पालन और शिक्षा हुई। मध्यकाल में भी पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था जारी रही, यद्यपि इसका स्वरूप सीमित था।
ख. ब्रिटिश काल में शिक्षा का विकास (British Era)
- अंग्रेजों ने प्रशासनिक आवश्यकताओं और ईसाई मिशनरियों के माध्यम से आधुनिक शिक्षा का प्रसार शुरू किया।
- 1840 में श्रीनगर (गढ़वाल) में पहला एलिमेंटरी वर्नाक्यूलर स्कूल स्थापित किया गया।
- 1847 में रुड़की में देश का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज, थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग (अब आईआईटी रुड़की) स्थापित हुआ।
- 1854 में शिक्षा के लिए पृथक शिक्षा विभाग का गठन किया गया।
- 1857 में कुमाऊँ में शिक्षा विभाग (कुमाऊँ सर्किल) स्थापित हुआ।
- 1871 में पं. बुद्धिबल्लभ पंत कुमाऊँ के प्रथम शिक्षा इंस्पेक्टर नियुक्त हुए, जिन्हें कुमाऊँ में आधुनिक शिक्षा की नींव रखने का श्रेय जाता है।
- रैम्जे हाई स्कूल, अल्मोड़ा की स्थापना 1871 में हुई।
- इसके अतिरिक्त, मिशनरियों द्वारा ऑल सेंट्स कॉलेज (नैनीताल, 1869), सेंट जोसेफ कॉलेज (नैनीताल, 1888), वेलेजली हाई स्कूल (नैनीताल, 1884), शेरवुड कॉलेज (नैनीताल, 1869) जैसे प्रतिष्ठित स्कूलों की स्थापना की गई।
- वन अनुसंधान संस्थान (FRI), देहरादून की स्थापना 1906 में हुई, जिसने वानिकी शिक्षा और अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ग. स्वातंत्र्योत्तर काल एवं राज्य गठन के बाद (Post-Independence & Post-State Formation)
- स्वतंत्रता के बाद शिक्षा के प्रसार पर विशेष ध्यान दिया गया। अनेक प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई।
- जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर की स्थापना 1960 में देश के प्रथम कृषि विश्वविद्यालय के रूप में हुई।
- 1973 में कुमाऊँ विश्वविद्यालय (नैनीताल) और हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय (श्रीनगर) की स्थापना हुई। (HNB गढ़वाल वि.वि. को 2009 में केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला)।
- राज्य गठन (9 नवंबर 2000) के बाद शिक्षा क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई।
- उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद् (UBSE), रामनगर का गठन किया गया।
- राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (SCERT) की स्थापना देहरादून में 2002 में हुई।
- अनेक नए विश्वविद्यालय और तकनीकी संस्थान स्थापित किए गए।
2. वर्तमान शैक्षिक संरचना (Current Educational Structure)
क. विद्यालयी शिक्षा (School Education)
- संरचना: प्राथमिक (कक्षा 1-5), उच्च प्राथमिक (कक्षा 6-8), माध्यमिक (कक्षा 9-10), और उच्चतर माध्यमिक (कक्षा 11-12)।
- संचालन: उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद् (UBSE) द्वारा पाठ्यक्रम निर्धारण, परीक्षा संचालन और प्रमाणन। SCERT द्वारा शैक्षिक अनुसंधान, शिक्षक प्रशिक्षण और पाठ्यक्रम विकास।
- प्रमुख पहलें: समग्र शिक्षा अभियान (जिसमें सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान समाहित हैं), मिड-डे मील योजना, राजीव गांधी नवोदय विद्यालय, कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय (KGBV)।
ख. उच्च शिक्षा (Higher Education)
- विश्वविद्यालय: राज्य में कई राज्य विश्वविद्यालय (जैसे श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, दून विश्वविद्यालय, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय), एक केंद्रीय विश्वविद्यालय (HNB गढ़वाल विश्वविद्यालय), और अनेक निजी विश्वविद्यालय हैं।
- महाविद्यालय: सरकारी और निजी क्षेत्र में अनेक स्नातक और स्नातकोत्तर महाविद्यालय।
- नियामक: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और राज्य उच्च शिक्षा विभाग।
- समर्थ पोर्टल (Samarth Portal) के माध्यम से उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया को सुगम बनाया गया है।
ग. तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा (Technical & Vocational Education)
- उत्तराखंड प्राविधिक शिक्षा परिषद्, रुड़की (UBTER) और उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय, देहरादून (UTU) प्रमुख नियामक और संबद्धता प्रदान करने वाली संस्थाएँ हैं।
- राज्य में इंजीनियरिंग कॉलेज, पॉलिटेक्निक संस्थान और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) कार्यरत हैं।
- राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT), श्रीनगर भी एक महत्वपूर्ण संस्थान है।
- कौशल विकास मिशन के माध्यम से युवाओं को विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
घ. चिकित्सा शिक्षा (Medical Education)
- हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तराखंड चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय, देहरादून राज्य में चिकित्सा शिक्षा का नियामक है।
- प्रमुख राजकीय मेडिकल कॉलेज देहरादून, हल्द्वानी, श्रीनगर, अल्मोड़ा में स्थित हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), ऋषिकेश एक राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है।
- आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और नर्सिंग कॉलेज भी राज्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय इसका प्रमुख उदाहरण है।
ङ. संस्कृत शिक्षा (Sanskrit Education)
- उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार संस्कृत भाषा और प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के संरक्षण और संवर्धन में कार्यरत है।
- राज्य में कई संस्कृत विद्यालय और महाविद्यालय भी संचालित हैं।
3. प्रमुख शैक्षिक संस्थान (Key Educational Institutions)
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), रुड़की (स्थापित 1847)
- गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर (स्थापित 1960)
- वन अनुसंधान संस्थान (FRI), देहरादून (स्थापित 1906)
- भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून (स्थापित 1932)
- हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर (केंद्रीय विश्वविद्यालय, स्थापित 1973)
- कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल (स्थापित 1973)
- उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी (स्थापित 2005)
- उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय, देहरादून (स्थापित 2005)
- श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय, टिहरी (स्थापित 2012)
- दून विश्वविद्यालय, देहरादून (स्थापित 2005)
- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), ऋषिकेश
- दून स्कूल, वेल्हम गर्ल्स, वेल्हम बॉयज, वुडस्टॉक स्कूल जैसे प्रतिष्ठित आवासीय विद्यालय।
4. शिक्षा के विकास हेतु सरकारी योजनाएँ एवं पहल
- समग्र शिक्षा अभियान: पूर्व-प्राथमिक से कक्षा 12 तक की शिक्षा को एकीकृत करना, गुणवत्ता में सुधार और समान अवसर प्रदान करना।
- स्कूल चलो अभियान (2001): 6-14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों का शत-प्रतिशत नामांकन और ठहराव सुनिश्चित करना।
- देवभूमि मुस्कान योजना (2009): समाज के वंचित वर्गों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना।
- आरोही परियोजना (मई 2002): माइक्रोसॉफ्ट और इंटेल के सहयोग से अध्यापकों और विद्यार्थियों को कंप्यूटर प्रशिक्षण।
- शिखर परियोजना: महाविद्यालयों में रोजगारपरक आईटी शिक्षा उपलब्ध कराना।
- दीक्षा पोर्टल (DIKSHA Portal): शिक्षकों और छात्रों के लिए डिजिटल शिक्षण सामग्री।
- शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक उत्कृष्टता पुरस्कार (2009 से): उत्कृष्ट शिक्षकों को सम्मानित करना।
- मुख्यमंत्री प्रतिभा प्रोत्साहन योजना (2019): मेधावी छात्रों को व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए छात्रवृत्ति।
- देश को जानो योजना (2019): उत्तराखंड बोर्ड के टॉपर्स को भारत भ्रमण।
- ज्ञानकोष (Gyankosh) परियोजना: डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा।
- नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का क्रियान्वयन: राज्य में चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा रहा है।
5. शिक्षा क्षेत्र में चुनौतियाँ (Challenges in Education Sector)
- भौगोलिक विषमता: दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में स्कूलों तक पहुँच और शिक्षकों की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती है।
- शिक्षकों की कमी: विशेषकर गणित, विज्ञान और अंग्रेजी विषयों में, तथा दूरस्थ क्षेत्रों में।
- गुणवत्ता: शिक्षण-अधिगम की गुणवत्ता और छात्रों के सीखने के स्तर में सुधार की आवश्यकता।
- बुनियादी ढाँचा: कई स्कूलों में पर्याप्त कक्षा-कक्ष, प्रयोगशाला, पुस्तकालय और खेल सुविधाओं का अभाव।
- डिजिटल डिवाइड: इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल उपकरणों की कमी के कारण ऑनलाइन शिक्षा का लाभ सभी तक नहीं पहुँच पा रहा।
- पलायन: शिक्षा और रोजगार के बेहतर अवसरों के लिए युवाओं का राज्य से बाहर पलायन।
- व्यावसायिक शिक्षा का अभाव: मुख्यधारा की शिक्षा में व्यावसायिक और कौशल-आधारित पाठ्यक्रमों का अपर्याप्त समावेश।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड में शिक्षा के विकास ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं। सरकार द्वारा गुणवत्तापूर्ण, समावेशी और रोजगारोन्मुखी शिक्षा प्रदान करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रभावी क्रियान्वयन, प्रौद्योगिकी के उपयोग, शिक्षकों के क्षमता विकास और सामुदायिक भागीदारी से राज्य के शैक्षिक परिदृश्य को और बेहतर बनाया जा सकता है। एक शिक्षित और कुशल मानव संसाधन ही उत्तराखंड के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा।