गुप्त काल: विज्ञान, साहित्य और कला में विकास (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
गुप्त काल (लगभग 319 ईस्वी – 550 ईस्वी) को भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है, और यह उपाधि विशेष रूप से विज्ञान, साहित्य और कला के क्षेत्र में हुए अभूतपूर्व विकास के कारण उचित है। इस काल में कई मौलिक खोजें हुईं और उत्कृष्ट कृतियों का सृजन हुआ।
1. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में विकास (Developments in Science and Technology)
गुप्त काल विज्ञान और गणित के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति का साक्षी रहा, जिसने वैश्विक ज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- गणित और खगोल विज्ञान:
- आर्यभट्ट:
- प्रसिद्ध ग्रंथ: ‘आर्यभट्टीयम्’ और ‘सूर्य सिद्धांत’।
- शून्य की अवधारणा और दशमलव प्रणाली का आविष्कार (भारतीय गणित की सबसे महत्वपूर्ण देन)।
- पाई ($\pi$) का मान ($3.1416$) दिया।
- पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करने का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
- सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के वैज्ञानिक कारण बताए।
- वराहमिहिर: प्रसिद्ध खगोलशास्त्री, गणितज्ञ और ज्योतिषी।
- प्रमुख कृतियाँ: ‘बृहत्संहिता’ (खगोल विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, प्राकृतिक इतिहास), ‘पंचसिद्धान्तिका’ (खगोल विज्ञान के पांच सिद्धांतों का संग्रह) और ‘वृहज्जातक’ (ज्योतिष)।
- ब्रह्मगुप्त:
- ग्रंथ: ‘ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त’।
- गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की प्रारंभिक अवधारणा दी।
- आर्यभट्ट:
- चिकित्सा विज्ञान:
- चरक संहिता (चिकित्सा) और सुश्रुत संहिता (शल्य चिकित्सा) जैसे प्राचीन ग्रंथों का इस काल में पुनरुत्थान और विकास हुआ।
- शल्य चिकित्सा (Surgery) में महत्वपूर्ण प्रगति।
- धातुओं और खनिजों का चिकित्सा में प्रयोग।
- धातुकर्म (Metallurgy):
- मेहरौली का लौह स्तंभ (दिल्ली में स्थित) इसकी उत्कृष्ट मिसाल है। यह उच्च गुणवत्ता वाले जंग रहित लोहे के उत्पादन की क्षमता को दर्शाता है।
- सुल्तानगंज बुद्ध प्रतिमा (तांबे की) धातु कला का एक और अद्भुत उदाहरण है।
💡 याद रखें: गुप्त काल में हुए वैज्ञानिक विकास, विशेषकर शून्य और दशमलव प्रणाली, ने बाद में अरबों के माध्यम से पश्चिमी दुनिया को प्रभावित किया।
2. साहित्य में विकास (Developments in Literature)
गुप्त काल को संस्कृत साहित्य के पुनरुत्थान और चरमोत्कर्ष के लिए जाना जाता है। इस काल में अनेक महान साहित्यकारों ने अमर कृतियों की रचना की।
- कालिदास: गुप्त काल के सबसे महान कवि और नाटककार। इन्हें ‘भारत का शेक्सपियर’ कहा जाता है।
- नाटक: ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ (विश्व प्रसिद्ध), ‘विक्रमोर्वशीयम्’, ‘मालविकाग्निमित्रम्’।
- महाकाव्य: ‘रघुवंशम्’, ‘कुमारसंभवम्’।
- खंडकाव्य: ‘मेघदूतम्’, ‘ऋतुसंहार’।
- अन्य प्रमुख साहित्यकार और उनकी कृतियाँ:
- विशाखदत्त: ‘मुद्राराक्षस’ (चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य पर आधारित राजनीतिक नाटक) और ‘देवीचंद्रगुप्तम्’।
- शूद्रक: ‘मृच्छकटिकम्’ (मिट्टी की गाड़ी) के रचयिता, जो एक सामाजिक नाटक है।
- भास: ‘स्वप्नवासवदत्तम्’ जैसे नाटकों के लिए प्रसिद्ध।
- विष्णु शर्मा: विश्व प्रसिद्ध नीति कथाओं के संग्रह ‘पंचतंत्र’ के संकलनकर्ता।
- अमर सिंह: संस्कृत के प्रसिद्ध कोश ‘अमरकोश’ के रचयिता।
- दण्डिन: ‘दशकुमारचरितम्’ के रचयिता।
- पुराणों और स्मृतियों का संकलन:
- कई पुराणों (जैसे विष्णु पुराण, वायु पुराण, मत्स्य पुराण) और स्मृतियों (जैसे नारद स्मृति, बृहस्पति स्मृति) को इस काल में अंतिम रूप दिया गया।
3. कला में विकास (Developments in Art)
गुप्त काल में कला और स्थापत्य ने मौलिक भारतीय शैली का विकास किया, जो विदेशी प्रभावों से मुक्त थी और सौंदर्य और आध्यात्मिकता का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करती थी।
- मंदिर स्थापत्य (Temple Architecture):
- ईंट और पत्थर जैसी स्थायी सामग्रियों से मंदिरों का निर्माण शुरू हुआ।
- मंदिरों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया जाता था।
- आरंभिक मंदिरों में सपाट छतें होती थीं, बाद में शिखर (spire) का विकास हुआ।
- उदाहरण: देवगढ़ का दशावतार मंदिर (पहला शिखर युक्त मंदिर), भीतरगाँव का ईंटों का मंदिर, तिगवा का विष्णु मंदिर, एरण का विष्णु मंदिर।
- मूर्ति कला (Sculpture):
- मथुरा और सारनाथ कला शैलियों का विकास हुआ, जो शुद्ध भारतीय शैली पर आधारित थीं।
- बुद्ध की शांत, आध्यात्मिक और ध्यानमग्न मूर्तियाँ बनाई गईं, जिनमें शरीर की सुंदरता और वस्त्रों में पारदर्शिता पर जोर था।
- हिंदू देवी-देवताओं (विष्णु, शिव, दुर्गा) की मूर्तियों का भी व्यापक निर्माण हुआ, जिनमें सौंदर्य और भावुकता का समन्वय था।
- सारनाथ बुद्ध प्रतिमा और उदयगिरि की वराह प्रतिमा गुप्तकालीन मूर्ति कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
- चित्रकला (Painting):
- अजंता की गुफाएँ (गुफा संख्या 16, 17, 19) और बाघ की गुफाएँ इस काल की चित्रकला के बेहतरीन उदाहरण हैं।
- चित्रों में धार्मिक (विशेषकर बौद्ध) विषयवस्तु, दरबारी जीवन, और सामान्य जनजीवन का चित्रण मिलता है।
- रंगों का जीवंत उपयोग और भावनात्मक अभिव्यक्ति इसकी विशेषता थी।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
गुप्त काल भारतीय इतिहास में ज्ञान, कला और संस्कृति के क्षेत्र में एक अद्वितीय उत्कर्ष का काल था। आर्यभट्ट, कालिदास जैसे विद्वानों और कलाकारों ने ऐसे कार्य किए जिन्होंने न केवल भारतीय सभ्यता को समृद्ध किया बल्कि वैश्विक ज्ञान और कला पर भी गहरा प्रभाव डाला। इसी कारण इसे भारत का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है।