उत्तराखंड अपनी नाजुक पर्वतीय पारिस्थितिकी और विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं (जैसे भूस्खलन, बाढ़, भूकंप, वनाग्नि) के प्रति संवेदनशीलता के कारण पर्यावरण संरक्षण और प्रभावी आपदा प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता महसूस करता है। राज्य सरकार, केंद्र सरकार और विभिन्न गैर-सरकारी संगठन इस दिशा में निरंतर प्रयासरत हैं।
उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण और आपदा प्रबंधन योजनाएँ
- उत्तराखंड हिमालयी क्षेत्र में स्थित होने के कारण पारिस्थितिक रूप से अत्यंत संवेदनशील है।
- राज्य में भूस्खलन, आकस्मिक बाढ़, भूकंप (जोन IV और V), और वनाग्नि प्रमुख प्राकृतिक आपदाएँ हैं।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत राज्य और जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों का गठन किया गया है।
- उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) राज्य में आपदा प्रबंधन के लिए नोडल एजेंसी है।
- पर्यावरण संरक्षण के लिए उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UEPPCB) कार्यरत है।
पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रमुख योजनाएँ और पहलें
1. वनीकरण और वन संरक्षण योजनाएँ
- उद्देश्य: वन आवरण बढ़ाना, अवक्रमित वनों का पुनर्स्थापन, जैव विविधता का संरक्षण, और मृदा एवं जल संरक्षण।
- पहलें:
- मेरा पेड़ मेरा धन योजना: वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने और इसे आय से जोड़ने की पहल।
- जायका (JICA – Japan International Cooperation Agency) परियोजना: वन पंचायतों के माध्यम से वन प्रबंधन और आजीविका सुधार।
- नमामि गंगे कार्यक्रम: गंगा नदी के किनारे वृक्षारोपण और जैव विविधता संरक्षण।
- कैम्पा (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority): वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग के बदले प्रतिपूरक वनीकरण।
- वन पंचायतों को सशक्त बनाना।
2. जल संरक्षण और प्रबंधन योजनाएँ
- उद्देश्य: जल स्रोतों का संरक्षण और पुनर्जीवन, वर्षा जल संचयन, और जल उपयोग दक्षता में सुधार।
- पहलें:
- जल जीवन मिशन: प्रत्येक ग्रामीण घर में नल से जल।
- खाल-चाल विकास योजना: पारंपरिक जल संचयन संरचनाओं का निर्माण और जीर्णोद्धार।
- नदियों के पुनर्जीवन के लिए विशेष परियोजनाएँ।
- वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम।
3. प्रदूषण नियंत्रण और अपशिष्ट प्रबंधन
- उद्देश्य: वायु, जल और मृदा प्रदूषण को नियंत्रित करना तथा ठोस और तरल अपशिष्ट का उचित प्रबंधन।
- पहलें:
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का कार्यान्वयन।
- शहरी क्षेत्रों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) की स्थापना।
- एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन।
- औद्योगिक प्रदूषण की निगरानी और नियंत्रण।
4. जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और न्यूनीकरण
- उद्देश्य: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना और अनुकूलन रणनीतियाँ विकसित करना।
- पहलें:
- राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (SAPCC)।
- नवीकरणीय ऊर्जा (सौर, लघु जलविद्युत) को बढ़ावा देना।
- ऊर्जा दक्षता उपायों को प्रोत्साहित करना।
आपदा प्रबंधन हेतु प्रमुख योजनाएँ और पहलें
उत्तराखंड ने 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद आपदा प्रबंधन तंत्र को सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान दिया है।
1. संस्थागत ढाँचा
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा-निर्देशों के अनुरूप।
- उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA): मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में।
- जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA): जिलाधिकारी की अध्यक्षता में।
- राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF): 9 अक्टूबर 2013 को NDRF की तर्ज पर गठन। त्वरित बचाव और राहत कार्यों के लिए।
- आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र (DMMC): देहरादून में स्थित, अनुसंधान, प्रशिक्षण और जागरूकता के लिए।
2. पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ
- मौसम पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करना।
- डॉप्लर रडार की स्थापना (जैसे सुरकंडा-टिहरी, मुक्तेश्वर-नैनीताल)।
- भूस्खलन और बाढ़ के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS) का विकास।
- “सचेत” पोर्टल और मोबाइल ऐप के माध्यम से आपदा संबंधी जानकारी।
3. क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण
- SDRF, पुलिस, होमगार्ड, नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों और समुदायों को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण देना।
- स्कूलों और कॉलेजों में आपदा सुरक्षा कार्यक्रम।
- मॉक ड्रिल का आयोजन।
4. आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचा
- भवन निर्माण कोड और मानकों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना।
- महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचों (जैसे अस्पताल, स्कूल, पुल) का रेट्रोफिटिंग।
- भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में सुरक्षात्मक उपाय।
5. राहत और पुनर्वास
- आपदा के समय त्वरित राहत और बचाव कार्य।
- प्रभावित परिवारों के लिए अस्थायी आश्रय, भोजन, चिकित्सा सहायता की व्यवस्था।
- दीर्घकालिक पुनर्वास और पुनर्निर्माण योजनाएँ।
- मुख्यमंत्री राहत कोष से सहायता।
6. सामुदायिक भागीदारी
- ग्राम स्तरीय आपदा प्रबंधन समितियों का गठन और उन्हें सशक्त बनाना।
- आपदा प्रबंधन योजनाओं में स्थानीय ज्ञान और अनुभव का समावेश।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड के सतत विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण और प्रभावी आपदा प्रबंधन अनिवार्य हैं। सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं और तकनीकी उन्नयन के माध्यम से इन क्षेत्रों में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन और बढ़ती मानवीय गतिविधियों के कारण चुनौतियाँ निरंतर बनी हुई हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक समग्र, बहु-आयामी और जन-भागीदारी आधारित दृष्टिकोण आवश्यक है।