उत्तराखंड, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के साथ, वर्ष भर विभिन्न मेलों और त्योहारों का आयोजन करता है। ये उत्सव राज्य के लोगों की आस्था, परंपराओं, सामाजिक जीवन और प्रकृति के प्रति उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाते हैं।
उत्तराखंड के प्रमुख मेले और त्योहार
- उत्तराखंड के मेले और त्योहार धार्मिक, मौसमी, कृषि संबंधी और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं।
- कुंभ मेला (हरिद्वार) विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है।
- नंदा देवी राजजात यात्रा विश्व की सबसे लंबी पैदल धार्मिक यात्राओं में से एक है।
- कई मेले स्थानीय देवी-देवताओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े हैं।
- इन अवसरों पर लोक नृत्य, लोकगीत और पारंपरिक व्यंजनों का विशेष महत्व होता है।
उत्तराखंड के प्रमुख त्योहार
1. हरेला (Harela)
- समय: श्रावण मास के प्रथम दिन (मुख्यतः कुमाऊँ में)। वर्ष में तीन बार (चैत्र, श्रावण, आश्विन) भी मनाया जाता है।
- स्थान: संपूर्ण उत्तराखंड, विशेषकर कुमाऊँ क्षेत्र।
- विशेषताएँ: यह त्योहार प्रकृति, हरियाली और उर्वरता का प्रतीक है। घरों में विभिन्न प्रकार के अनाज (जैसे जौ, गेहूँ, मक्का, चना, सरसों) बोए जाते हैं, जिन्हें ‘हरेला’ कहा जाता है। इन हरेला को काटकर देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है और फिर सिर पर धारण किया जाता है।
2. फूलदेई (Phool Dei) / फूल संक्रांति
- समय: चैत्र मास का प्रथम दिन (संक्रांति)।
- स्थान: संपूर्ण उत्तराखंड।
- विशेषताएँ: यह वसंत ऋतु के आगमन और फूलों के खिलने का त्योहार है। छोटे बच्चे (विशेषकर कन्याएँ) सुबह-सुबह घरों की देहरी पर ताजे फूल और चावल डालते हैं और गीत गाते हैं, जिसे “छम्मा देई, देहली भरी भरी नमस्कार” कहा जाता है। बदले में उन्हें गुड़, चावल या पैसे दिए जाते हैं।
3. घी संक्रांति (Ghee Sankranti) / ओलगिया
- समय: भाद्रपद मास की संक्रांति।
- स्थान: संपूर्ण उत्तराखंड।
- विशेषताएँ: यह त्योहार फसलों के पकने, पशुधन की वृद्धि और स्थानीय शिल्पकला से जुड़ा है। इस दिन घी का सेवन करना शुभ माना जाता है। लोग एक-दूसरे को उपहार (ओल्ग) देते हैं।
4. मकर संक्रांति (Makar Sankranti) / उत्तरायणी / घुघुतिया
- समय: 14 या 15 जनवरी।
- स्थान: संपूर्ण उत्तराखंड।
- विशेषताएँ: सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व। पवित्र नदियों में स्नान और दान का विशेष महत्व। कुमाऊँ में इसे घुघुतिया भी कहते हैं, जिसमें आटे और गुड़ से “घुघुते” (विभिन्न आकृतियाँ) बनाए जाते हैं और कौवों को खिलाए जाते हैं। बागेश्वर में उत्तरायणी मेला इसी अवसर पर लगता है।
5. बिखोती (Bikhoti) / विषुवत संक्रांति
- समय: बैशाख मास की संक्रांति।
- स्थान: संपूर्ण उत्तराखंड।
- विशेषताएँ: इस दिन स्नान, दान और पूजा का महत्व है। कई स्थानों पर मेले लगते हैं।
6. नंदा देवी राजजात यात्रा (Nanda Devi Raj Jat Yatra)
- समय: प्रत्येक 12 वर्ष में (छोटी राजजात प्रतिवर्ष भी होती है)।
- स्थान: चमोली जिले के कांसुवा गाँव के नौटी से शुरू होकर होमकुंड तक।
- विशेषताएँ: यह विश्व की सबसे लंबी (लगभग 280 किमी) पैदल धार्मिक यात्राओं में से एक है। यह माँ नंदा देवी को उनकी ससुराल (कैलाश) भेजने का प्रतीक है। इसमें चौसिंग्या खाडू (चार सींगों वाला मेढ़ा) यात्रा का नेतृत्व करता है।
7. होली (Holi)
- समय: फाल्गुन मास की पूर्णिमा।
- स्थान: संपूर्ण उत्तराखंड।
- विशेषताएँ: कुमाऊँ में खड़ी होली (पुरुषों द्वारा समूह में घूम-घूमकर गाना) और बैठकी होली (शास्त्रीय संगीत पर आधारित गायन) का विशेष महत्व है।
8. दीपावली (Deepawali) / बग्वाल
- समय: कार्तिक मास की अमावस्या।
- स्थान: संपूर्ण उत्तराखंड।
- विशेषताएँ: इसे बग्वाल भी कहते हैं। कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर गढ़वाल में, इस अवसर पर भैला खेलने (लकड़ी के जलते हुए गट्ठरों को घुमाना) की परंपरा है।
9. अन्य प्रमुख त्योहार
- रक्षाबंधन (श्रावणी पूर्णिमा), दशहरा (विजयादशमी), जन्माष्टमी, शिवरात्रि, नवरात्रि, खतड़वा (कुमाऊँ, पशुओं का त्योहार), जागड़ा (जौनसार-बावर, महासू देवता का त्योहार)।
उत्तराखंड के प्रमुख मेले (जिलावार)
चमोली जनपद के मेले
- गौचर मेला: गौचर में, नवंबर (14-20)। ऐतिहासिक व्यापारिक और सांस्कृतिक मेला, शुरुआत 1943 में बर्नेडी द्वारा।
- हरियाली देवी मेला (हरियाली पुड़ा मेला): कर्णप्रयाग के नौटी गाँव में, श्रावण/आश्विन।
- उमाकर्ण महोत्सव: कर्णप्रयाग में।
- बद्रीनाथ मेला: बद्रीनाथ धाम में कपाट खुलने और बंद होने के समय।
- तिमूड़ा मेला: जोशीमठ के पास, नरसिंह देवता से संबंधित।
- शहीद भवानी दत्त जोशी मेला: थराली।
- कुलसारी का मेला, बसंत बुरांस मेला, कास्तकार मेला, बैरासकुंड मेला।
उत्तरकाशी जनपद के मेले
- माघ मेला: उत्तरकाशी नगर में, मकर संक्रांति से एक सप्ताह तक। धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक।
- बिस्सू मेला: जौनसार-बावर और रंवाई घाटी में, बैशाखी पर।
- गेंदुवा मेला (गेंदा कौथिग): नेटवाड़ क्षेत्र में।
- लोसर मेला: डुंडा ब्लॉक (जाड़ भोटिया जनजाति), तिब्बती नववर्ष।
- खरसाली का मेला, कंडक मेला, सेलकु मेला।
रुद्रप्रयाग जनपद के मेले
- जाख मेला: गुप्तकाशी के पास जाखधार में, बैशाखी पर। जलते अंगारों पर नृत्य।
- मठियाणा देवी मेला, हरियाली देवी मेला, कार्तिक स्वामी मेला (क्रौंच पर्वत)।
टिहरी गढ़वाल जनपद के मेले
- सुरकंडा देवी मेला: सुरकंडा देवी मंदिर में, गंगा दशहरा पर।
- चंद्रबदनी मेला: चंद्रबदनी मंदिर में, अप्रैल में।
- रणभूत कौथिग: भिलंगना क्षेत्र में, वीर शहीदों की याद में।
- विकास मेला (औद्योगिक विकास मेला): नई टिहरी।
- नागटिब्बा मेला, सेम मुखेम मेला, कुंजापुरी पर्यटन विकास मेला।
पौड़ी गढ़वाल जनपद के मेले
- गिंदी मेला (गेंदा कौथिग): यमकेश्वर ब्लॉक (थलनदी के पास) और अन्य स्थानों पर, मकर संक्रांति। गेंद का खेल।
- ज्वाल्पा देवी मेला: ज्वाल्पा देवी मंदिर में, नवरात्रि।
- कण्वाश्रम मेला: कोटद्वार के पास कण्वाश्रम में, बसंत पंचमी।
- बिनसर महादेव मेला (बैकुंठ चतुर्दशी मेला): थलीसैंण के पास बिनसर मंदिर में।
- सिताबनी मेला, एकेश्वर मेला, दंगल मेला (सतपुली)।
देहरादून जनपद के मेले
- झंडा मेला: देहरादून (गुरु राम राय दरबार), होली के पाँचवें दिन से। ऐतिहासिक ध्वज आरोहण।
- टपकेश्वर मेला: देहरादून (टपकेश्वर मंदिर), शिवरात्रि पर।
- बिस्सू मेला: चकराता (जौनसार-बावर), बैशाखी पर।
- महासू देवता जागड़ा (जागर): हनोल (जौनसार-बावर), भाद्रपद में।
- नुणाई मेला (कालसी)।
हरिद्वार जनपद के मेले
- कुंभ और अर्ध कुंभ मेला: हरिद्वार।
- पिरान कलियर उर्स: रुड़की के पास पिरान कलियर शरीफ में। सूफी संत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर की दरगाह पर।
- गुघाल मेला (ज्वालापुर)।
अल्मोड़ा जनपद के मेले
- नंदा देवी मेला: अल्मोड़ा नगर, सितंबर। कुमाऊँ का सबसे प्रसिद्ध मेला।
- सोमनाथ मेला: मासी (रानीखेत के पास), बैशाख के अंतिम रविवार। पशुओं का क्रय-विक्रय।
- श्रावणी मेला: जागेश्वर धाम, श्रावण मास में।
- स्याल्दे बिखोती मेला: द्वाराहाट, बैशाखी पर।
- गणनाथ मेला, दूनागिरी मेला, गोलज्यू मेला (चितई)।
नैनीताल जनपद के मेले
- नंदा देवी मेला: नैनीताल, सितंबर।
- हरियाली मेला: भीमताल।
- जियारानी मेला (रानीबाग)।
- सीतावनी मेला (रामनगर)।
पिथौरागढ़ जनपद के मेले
- जौलजीबी मेला: जौलजीबी, नवंबर। भारत-नेपाल व्यापार।
- थल मेला: थल (बालेश्वर मंदिर), बैशाखी (13 अप्रैल)। जलियांवाला बाग की घटना से संबंधित।
- मोस्टमानु मेला: पिथौरागढ़ नगर।
- कंडाली उत्सव (किरजी-भिरजी): चौंदास घाटी (धारचूला), प्रत्येक 12 वर्ष में।
- छिपलाकेदार मेला, गंगोलीहाट का मेला, मल्लिकार्जुन मेला।
चम्पावत जनपद के मेले
- देवीधुरा मेला (बग्वाल): देवीधुरा (माँ बाराही मंदिर), रक्षाबंधन। पाषाण युद्ध।
- पूर्णागिरी मेला: पूर्णागिरी शक्तिपीठ (टनकपुर), चैत्र नवरात्रि में मुख्य रूप से।
- आषाढ़ी कौथिग (मानेश्वर मेला), लड़ीधूरा मेला।
बागेश्वर जनपद के मेले
- उत्तरायणी मेला: बागेश्वर, मकर संक्रांति।
- कोट की माई मेला (नंदा देवी मेला): कोट भ्रामरी मंदिर।
- मूल नारायण मेला।
ऊधमसिंह नगर जनपद के मेले
- चैती मेला: काशीपुर (बालासुंदरी देवी मंदिर), चैत्र नवरात्रि।
- अटरिया मेला (रुद्रपुर)।
- नानकमत्ता साहिब में लगने वाले मेले (दीपावली, होली, बैशाखी)।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड के मेले और त्योहार राज्य की जीवंत संस्कृति, गहरी आस्था और सामाजिक ताने-बाने का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये न केवल मनोरंजन और धार्मिक अनुष्ठानों के अवसर प्रदान करते हैं, बल्कि स्थानीय व्यापार, कला और परंपराओं को भी बढ़ावा देते हैं।