उत्तराखंड, अपनी प्रचुर जल संपदा जैसे नदियों, झीलों, तालाबों और गूलों के कारण, मत्स्य पालन (Fisheries) के विकास के लिए महत्वपूर्ण संभावनाएँ रखता है। यह क्षेत्र न केवल स्थानीय लोगों के लिए पोषण सुरक्षा और आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान कर सकता है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था में भी योगदान दे सकता है।
उत्तराखंड में मछली पालन: एक सिंहावलोकन
- उत्तराखंड में शीत जल (Cold Water) और गर्म जल (Warm Water) दोनों प्रकार की मत्स्य पालन की संभावनाएँ मौजूद हैं।
- प्रमुख मत्स्य प्रजातियों में ट्राउट, महसीर, कार्प (रोहू, कतला, मृगल), कॉमन कार्प, ग्रास कार्प और असेला शामिल हैं।
- राज्य सरकार द्वारा मत्स्य नीति (2003 में लागू) के माध्यम से मत्स्य पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- मत्स्य विभाग, उत्तराखंड और मत्स्य पालक विकास अभिकरण (FFDA) इस क्षेत्र के विकास के लिए प्रमुख एजेंसियां हैं।
- एक्वाकल्चर (जलकृषि) और सजावटी मछली पालन को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है।
1. उत्तराखंड में मत्स्य पालन की संभावनाएँ एवं महत्व
- प्रचुर जल संसाधन: राज्य में बहने वाली नदियाँ, प्राकृतिक झीलें (जैसे नैनीताल, भीमताल, सातताल), कृत्रिम जलाशय (जैसे टिहरी झील, नानक सागर) और तालाब मत्स्य पालन के लिए उपयुक्त हैं।
- विविध जलवायु: ऊँचाई के साथ बदलती जलवायु विभिन्न प्रकार की मछलियों के पालन के लिए अनुकूल है।
- आर्थिक महत्व:
- ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन का एक महत्वपूर्ण साधन।
- किसानों और स्थानीय समुदायों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत।
- राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान।
- पोषण सुरक्षा: मछली प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है, जो स्थानीय आहार में पोषण विविधता लाने में सहायक है।
- पर्यटन से जुड़ाव: एंगलिंग (Sport Fishing) और सजावटी मछली पालन पर्यटन को भी आकर्षित कर सकते हैं।
2. प्रमुख मत्स्य प्रजातियाँ एवं क्षेत्र
क. शीत जल मत्स्य पालन (Cold Water Fisheries)
यह मुख्यतः राज्य के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों की ठंडी और स्वच्छ नदियों तथा झीलों में किया जाता है।
- ट्राउट (Trout):
- यह उत्तराखंड की प्रमुख शीत जल मछली है। इसकी दो मुख्य प्रजातियाँ ब्राउन ट्राउट और रेनबो ट्राउट पाली जाती हैं।
- प्रमुख क्षेत्र: चमोली (जैसे गोपेश्वर, देवाल), उत्तरकाशी (जैसे डोडीताल, हरसिल), रुद्रप्रयाग, टिहरी, पिथौरागढ़ (जैसे मुनस्यारी), बागेश्वर।
- इसके लिए विशेष रूप से रेसवेल (Raceways) और तालाब बनाए जाते हैं।
- महसीर (Mahseer):
- यह राज्य की प्रमुख खेल मछली (Sport Fish) है और नदियों में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है।
- इसके संरक्षण और संवर्धन के प्रयास किए जा रहे हैं।
- असेला (Asela) / इंडियन ट्राउट: यह भी पर्वतीय नदियों में पाई जाने वाली एक स्थानीय मछली है।
ख. गर्म जल मत्स्य पालन (Warm Water Fisheries)
यह मुख्यतः राज्य के मैदानी और तराई क्षेत्रों के तालाबों, जलाशयों और धीमी गति वाली नदियों में किया जाता है।
- भारतीय मेजर कार्प (Indian Major Carps): रोहू, कतला, मृगल (नैनी)। ये व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।
- विदेशी कार्प (Exotic Carps): कॉमन कार्प, ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प। इनकी वृद्धि दर अच्छी होती है।
- प्रमुख क्षेत्र: ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून (मैदानी भाग), नैनीताल (तराई)।
- नानक सागर (ऊधम सिंह नगर) और हरिपुरा जलाशय (ऊधम सिंह नगर) मत्स्य उत्पादन के बड़े केंद्र हैं।
3. मत्स्य पालन विकास हेतु सरकारी प्रयास एवं योजनाएँ
- मत्स्य विभाग, उत्तराखंड: राज्य में मत्स्य पालन के विकास, प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता और योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए नोडल एजेंसी।
- उत्तराखंड मत्स्य नीति, 2003: राज्य में मत्स्य पालन को सुव्यवस्थित और प्रोत्साहित करने के लिए लागू की गई। (कुछ स्रोतों में 2002 भी उल्लेखित है, लेकिन 2003 अधिक मान्य)।
- मत्स्य पालक विकास अभिकरण (FFDA – Fish Farmer Development Agency):
- देहरादून में 1982 में स्थापित।
- वर्तमान में ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून और नैनीताल जिलों में सक्रिय।
- किसानों को तालाब निर्माण, मत्स्य बीज, आहार और तकनीकी प्रशिक्षण के लिए सहायता प्रदान करना।
- मत्स्य बीज उत्पादन फार्म: राज्य में विभिन्न स्थानों पर सरकारी और निजी क्षेत्र में मत्स्य बीज उत्पादन फार्म स्थापित किए गए हैं ताकि गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध हो सके।
- राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (NFDB) की योजनाएँ: केंद्र सरकार की योजनाओं का राज्य में क्रियान्वयन।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY): मत्स्य पालन क्षेत्र के सतत और जिम्मेदार विकास के लिए।
- प्रशिक्षण एवं प्रसार: मत्स्य पालकों को आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण देना।
- विपणन सहायता: मछली बाजारों का विकास और सुदृढ़ीकरण। राज्य का पहला फिश मार्केट बनभूलपुरा, हल्द्वानी में प्रस्तावित।
- सजावटी मछली पालन (Ornamental Fisheries) को प्रोत्साहन: स्वरोजगार का एक नया क्षेत्र।
- एकीकृत एक्वा पार्क (Integrated Aqua Park): गूलरभोज (ऊधम सिंह नगर) में प्रस्तावित।
- राज्य का पहला एक्वा म्यूजियम वाडिया संस्थान, देहरादून में प्रस्तावित।
4. मत्स्य पालन क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ
- गुणवत्तापूर्ण मत्स्य बीज की कमी: समय पर और पर्याप्त मात्रा में उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध न होना।
- तकनीकी ज्ञान का अभाव: कई मत्स्य पालकों के पास आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीकों की जानकारी की कमी।
- जल संसाधनों का प्रदूषण: नदियों और तालाबों में औद्योगिक और घरेलू अपशिष्टों से जल प्रदूषण।
- प्राकृतिक आपदाएँ: बाढ़, भूस्खलन से मत्स्य पालन को नुकसान।
- विपणन और भंडारण सुविधाओं की कमी: उचित बाजार, शीत श्रृंखला और परिवहन सुविधाओं का अभाव।
- चारा महँगा होना: मत्स्य आहार की लागत अधिक होना।
- ऋण सुविधाओं की सीमित पहुँच: छोटे मत्स्य पालकों के लिए वित्तीय सहायता की कमी।
- अवैध शिकार और अत्यधिक मत्स्यन: प्राकृतिक जल स्रोतों में।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड में मत्स्य पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने, रोजगार सृजन करने और पोषण सुरक्षा में सुधार लाने की महत्वपूर्ण क्षमता रखता है। जल संसाधनों के सतत उपयोग, आधुनिक तकनीकों को अपनाने, विपणन अवसंरचना के विकास और सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के माध्यम से इस क्षेत्र को और अधिक लाभकारी बनाया जा सकता है। शीत जल मत्स्य पालन (विशेषकर ट्राउट) और सजावटी मछली पालन राज्य के लिए विशेष रूप से সম্ভাবনাময় क्षेत्र हैं।