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लोक कला और शिल्प (Folk Art and Craft)

उत्तराखंड: लोक कला और शिल्प (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

उत्तराखंड की लोक कला और शिल्प इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं का दर्पण है। यहाँ की कलाएँ न केवल सौंदर्यपरक हैं बल्कि स्थानीय जीवनशैली, धार्मिक विश्वासों और प्राकृतिक परिवेश से भी गहराई से जुड़ी हुई हैं।

उत्तराखंड की लोक कला और शिल्प

कुछ त्वरित तथ्य (Quick Facts):
  • उत्तराखंड की लोक कलाओं में ऐपण, थापा, ज्यूँति जैसी चित्रकलाएँ विशेष महत्व रखती हैं।
  • काष्ठ शिल्प (लकड़ी की कारीगरी) राज्य की एक प्रमुख शिल्प कला है, जिसमें दरवाजों, खिड़कियों और घरेलू सामानों पर सुंदर नक्काशी की जाती है।
  • रिंगाल (एक प्रकार का बांस) से टोकरियाँ, चटाइयाँ और अन्य उपयोगी वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
  • ऊनी वस्त्र, जैसे शॉल, पंखी, थुलमा, दन, कालीन आदि अपनी गुणवत्ता और डिजाइनों के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • राज्य सरकार द्वारा हस्तशिल्प और हथकरघा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

लोक चित्रकला (Folk Painting)

उत्तराखंड की लोक चित्रकलाएँ मुख्यतः धार्मिक और सामाजिक अवसरों पर घरों की दीवारों, आंगनों और पूजा स्थलों को सजाने के लिए बनाई जाती हैं। इनमें प्राकृतिक रंगों और स्थानीय सामग्रियों का प्रयोग होता है।

1. ऐपण (Aipan)

  • विवरण: यह कुमाऊँ की एक प्रमुख पारंपरिक चित्रकला शैली है, जो शुभ अवसरों पर घरों के आँगन, फर्श और दीवारों पर बनाई जाती है।
  • सामग्री: गेरू (लाल मिट्टी) से सतह को लीपने के बाद बिस्वार (चावल के आटे का घोल) से विभिन्न आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
  • आकृतियाँ: इसमें स्वास्तिक, शंख, चक्र, सूर्य, चन्द्रमा, देवी-देवताओं के प्रतीक, फूल-पत्तियाँ और ज्यामितीय डिजाइन शामिल होते हैं।
  • अवसर: विवाह, नामकरण, जनेऊ संस्कार, त्योहारों और पूजा-पाठ के समय।
  • प्रकार: वसुधारा, सरस्वती चौकी, लक्ष्मी चौकी, दुर्गा चौकी, शिव चौकी आदि।

2. थापा (Thapa)

  • विवरण: यह भी ऐपण के समान ही एक चित्रकला शैली है, जो दीवारों पर बनाई जाती है।
  • विशेषता: इसमें देवी-देवताओं, विशेषकर स्थानीय लोक देवताओं के चित्र अधिक बनाए जाते हैं। यह मुख्यतः मांगलिक अवसरों पर बनते हैं।

3. ज्यूँति या ज्यूँति-मातृका (Jyunti or Jyunti-Matrika)

  • विवरण: यह चित्रकला विवाह और जनेऊ संस्कारों के अवसर पर दीवारों पर बनाई जाती है।
  • आकृतियाँ: इसमें सप्तमातृकाओं (सात देवियों) के साथ गणेश, विष्णु, लक्ष्मी और अन्य मांगलिक प्रतीकों का चित्रण होता है।
  • उद्देश्य: नव-दंपत्ति या बटुक (जनेऊ संस्कार वाले बालक) की रक्षा और कल्याण के लिए।

4. वसुधारा (Vasudhara)

  • विवरण: यह ऐपण का ही एक प्रकार है, जो पूजा स्थल या यज्ञ वेदी के पास फर्श पर बनाई जाती है।
  • आकृतियाँ: इसमें धाराओं (लाइनों) के माध्यम से ज्यामितीय पैटर्न बनाए जाते हैं, जो निरंतरता और प्रवाह का प्रतीक हैं।

5. खोली (Khodi) या द्वार पत्र

  • विवरण: घरों के मुख्य प्रवेश द्वार पर देवी-देवताओं के चित्र या मांगलिक चिन्ह बनाए जाते हैं, जिन्हें खोली या द्वार पत्र कहते हैं।
  • उद्देश्य: घर की सुरक्षा और समृद्धि के लिए।

6. बरा-बूंद (Bar-Boond)

  • विवरण: यह चित्रकला विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को भेंट की जाने वाली कलाकृति है। इसमें मांगलिक प्रतीक और चित्र होते हैं।

7. अन्य चित्रकलाएँ

  • टुपुक: छोटी-छोटी रंगीन बिंदियों से बनाए जाने वाले अलंकरण।
  • नाथ परंपरा के चित्र: साधुओं द्वारा बनाए जाने वाले धार्मिक चित्र।
  • पट्ट चित्र: कपड़ों पर बनाए जाने वाले चित्र, जो धार्मिक कथाओं का वर्णन करते हैं।

शिल्पकला (Crafts)

उत्तराखंड की शिल्पकला स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों और पारंपरिक कौशल का सुंदर उदाहरण है।

1. काष्ठ शिल्प (Wood Craft)

  • विवरण: लकड़ी पर सुंदर नक्काशी उत्तराखंड की एक प्राचीन कला है।
  • उपयोग: घरों के दरवाजों, खिड़कियों, छज्जों (बालकनी) और पूजा घरों में उत्कृष्ट नक्काशी देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त, घरेलू उपयोग की वस्तुएँ जैसे ठेकी (दही जमाने का बर्तन), पाली (करछुल), कुमैया (अनाज रखने का पात्र) भी लकड़ी से बनाए जाते हैं।
  • लकड़ी: तुन, शीशम, अखरोट, देवदार जैसी स्थानीय लकड़ियों का प्रयोग होता है।
  • प्रमुख केंद्र: उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा।

2. धातु शिल्प (Metal Craft)

  • विवरण: तांबा, पीतल, और कभी-कभी चांदी के बर्तनों, पूजा पात्रों और आभूषणों का निर्माण।
  • उत्पाद: गागर (पानी का बर्तन), परात, थाली, लोटा, दीपक, घंटियाँ और पारंपरिक आभूषण।
  • प्रमुख केंद्र: अल्मोड़ा (ताम्र नगरी), बागेश्वर, चमोली।

3. ऊनी वस्त्र और कालीन (Woolen Textiles and Carpets)

  • विवरण: भेड़ और बकरी की ऊन से विभिन्न प्रकार के वस्त्र और कालीन बनाए जाते हैं।
  • उत्पाद: शॉल, पंखी (पतला ऊनी कंबल), थुलमा (मोटा ऊनी कंबल), दन (कालीन), आसन, पट्टू, ट्वीड।
  • विशेषता: भोटिया जनजाति के लोग ऊनी वस्त्रों और कालीनों के निर्माण में विशेष रूप से कुशल होते हैं। उनके द्वारा बनाए गए दन और थुलमा अपनी गर्माहट और टिकाऊपन के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • प्रमुख केंद्र: पिथौरागढ़ (मुनस्यारी, धारचूला), चमोली (जोशीमठ, लाता), उत्तरकाशी, बागेश्वर।

4. रिंगाल शिल्प (Ringaal Craft)

  • विवरण: रिंगाल (एक प्रकार का पतला पहाड़ी बांस) से विभिन्न प्रकार की उपयोगी और सजावटी वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
  • उत्पाद: टोकरियाँ (डाला, कंडी), चटाइयाँ (मोस्टा), सूप, छापर आदि।
  • प्रमुख केंद्र: अल्मोड़ा, चमोली, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग।

5. मृत्तिका शिल्प (Clay Craft / Pottery)

  • विवरण: मिट्टी से बर्तन और सजावटी वस्तुएँ बनाने की कला।
  • उत्पाद: घड़े, दीये, सुराही, गमले और स्थानीय देवी-देवताओं की मूर्तियाँ।
  • विशेषता: यह कला अब धीरे-धीरे कम हो रही है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में अभी भी प्रचलित है।

6. चर्म शिल्प (Leather Craft)

  • विवरण: चमड़े से जूते, बैग और अन्य वस्तुएँ बनाना।
  • विशेषता: जौनसार-बावर क्षेत्र में पारंपरिक चमड़े के जूते (खड़ाऊं) प्रसिद्ध हैं।
  • यह शिल्प भी अब संरक्षण की मांग कर रहा है।

7. जूट और रेशा शिल्प (Jute and Fibre Craft)

  • विवरण: जूट, भांग के रेशे और अन्य प्राकृतिक रेशों से रस्सियाँ, बैग और सजावटी सामान बनाना।
  • विशेषता: यह पर्यावरण के अनुकूल शिल्प है और ग्रामीण रोजगार का एक साधन भी है।

निष्कर्ष (Conclusion)

उत्तराखंड की लोक कला और शिल्प न केवल राज्य की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाते हैं बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन पारंपरिक कलाओं और शिल्पों के संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है ताकि यह अमूल्य विरासत भविष्य की पीढ़ियों तक पहुँच सके।

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