उत्तराखंड का लोक संगीत अपनी पारंपरिक ध्वनियों और लय के लिए जाना जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ये वाद्य यंत्र न केवल संगीत को मधुरता प्रदान करते हैं बल्कि राज्य की सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं को भी दर्शाते हैं।
उत्तराखंड के लोक वाद्य यंत्र
- उत्तराखंड के पारंपरिक वाद्य यंत्र मुख्यतः ताल वाद्य (Percussion), सुषिर वाद्य (Wind), और तार वाद्य (String) श्रेणियों में आते हैं।
- ढोल को 2015 में उत्तराखंड का राज्य वाद्य यंत्र घोषित किया गया।
- कई वाद्य यंत्र स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों जैसे लकड़ी, धातु और पशु खाल से बनाए जाते हैं।
- इन वाद्य यंत्रों का प्रयोग लोकगीतों, लोक नृत्यों, धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक समारोहों में व्यापक रूप से होता है।
प्रमुख ताल वाद्य (Major Percussion Instruments)
1. ढोल (Dhol)
- विवरण: यह उत्तराखंड का सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय ताल वाद्य है। यह तांबे, पीतल या चांदी की धातु पर बकरी की खाल मढ़कर बनाया जाता है।
- प्रयोग: सभी प्रकार के मांगलिक अवसरों, त्योहारों, मेलों, लोक नृत्यों (जैसे छोलिया) और धार्मिक जुलूसों में अनिवार्य रूप से बजाया जाता है। इसे मंगल वाद्य भी कहते हैं।
- विशेषता: ढोल सागर के ज्ञाता उत्तम दास जी को माना जाता है। ढोल से नौबत, रहमानी, बड़ै जैसी विभिन्न तालें बजाई जाती हैं।

2. दमाऊँ या दमामा (Damaun / Damama)
- विवरण: यह भी ढोल के साथ बजाया जाने वाला एक प्रमुख ताल वाद्य है। यह तांबे या पीतल की अर्ध-गोलाकार कटोरी पर मोटे चमड़े को मढ़कर बनाया जाता है।
- प्रयोग: ढोल के साथ जोड़ी में बजाया जाता है, जिससे संगीत में गहराई और गूंज आती है।

3. हुड़का या हुड़की (Hurka / Hudki)
- विवरण: यह डमरू के आकार का एक छोटा ताल वाद्य है, जिसके दोनों ओर खाल मढ़ी होती है। इसे हाथ की थाप और उंगलियों से बजाया जाता है।
- प्रयोग: मुख्यतः कुमाऊँ में हुड़किया बौल (कृषि गीत) और गढ़वाल में जागर गायन तथा अन्य लोकगीतों के साथ।

4. डौंर-थाली (Daur-Thali)
- विवरण: डौंर एक छोटा, पीतल या तांबे का बना डमरू जैसा वाद्य यंत्र होता है, और थाली कांसे की बनी होती है। इन्हें एक साथ बजाया जाता है।
- प्रयोग: मुख्यतः जागर गायन और अनुष्ठानिक नृत्यों में। डौंर को लकड़ी की छोटी डंडी से और थाली को भी डंडी से बजाते हैं।

5. मंजीरा, झांझ, करताल (Manjira, Jhanjh, Kartal)
- विवरण: ये छोटे आकार के धातु से बने ताल वाद्य हैं। मंजीरा (छोटी कटोरियाँ), झांझ (बड़ी कटोरियाँ) और करताल (लकड़ी के दो टुकड़े जिनमें झांझ लगी होती है) लय प्रदान करते हैं।
- प्रयोग: भजन-कीर्तन, लोकगीत और समूह गायन में।

प्रमुख सुषिर वाद्य (Major Wind Instruments)
1. तुरही और रणसिंघा (Turhi and Ransinga)
- विवरण: ये पीतल या तांबे से बने लंबे, मुड़े हुए फूँक वाद्य हैं।
- प्रयोग: इनका प्रयोग मुख्यतः युद्ध घोष, राजसी आगमन, धार्मिक जुलूसों और मांगलिक अवसरों पर उद्घोषणा के लिए किया जाता था। ये शौर्य और उत्साह का प्रतीक हैं।

2. मशकबीन (Mashakbeen / Bagpipe)
- विवरण: यह स्कॉटिश बैगपाइप का स्थानीय रूप है। इसमें एक थैली होती है जिसमें हवा भरी जाती है और फिर विभिन्न नलिकाओं से हवा निकालकर मधुर ध्वनि उत्पन्न की जाती है।
- प्रयोग: सेना बैंड के साथ-साथ अब यह लोक संगीत और विवाह समारोहों का भी अभिन्न अंग बन गया है।

3. बांसुरी या मुरली (Bansuri / Murali)
- विवरण: यह बांस से बना एक लोकप्रिय और सरल सुषिर वाद्य है।
- प्रयोग: लोकगीतों, प्रेम गीतों और अकेले में मनोरंजन के लिए बजाया जाता है। कृष्ण भक्ति से भी जुड़ा है।

4. अलगोजा (Algoja)
- विवरण: यह बांसुरी की तरह का दो नली वाला सुषिर वाद्य है। दोनों नलियों को एक साथ मुँह में रखकर बजाया जाता है।
- प्रयोग: लोक संगीत और चरवाहों द्वारा प्रयोग किया जाता है।

5. नागफणी (Nagphani)
- विवरण: यह सर्प के फन के आकार का, धातु से बना एक सुषिर वाद्य है।
- प्रयोग: साधुओं और कुछ धार्मिक अनुष्ठानों में।

प्रमुख तार वाद्य (Major String Instruments)
1. सारंगी (Sarangi)
- विवरण: यह लकड़ी का बना, तारों वाला वाद्य यंत्र है जिसे गज (bow) से बजाया जाता है।
- प्रयोग: लोकगीतों, विशेषकर बैठकी होली और अन्य शास्त्रीय पुट वाले लोक गायन में।

2. एकतारा (Ektara)
- विवरण: इसमें एक ही तार होता है, जो लौकी या लकड़ी के तुंबे पर लगा होता है।
- प्रयोग: मुख्यतः साधुओं, फकीरों और भजन गायकों द्वारा।

3. बिणाई (Binai)
- विवरण: यह लोहे का बना एक छोटा-सा वाद्य यंत्र है, जिसे दांतों के बीच दबाकर उंगली से बजाया जाता है, जिससे कंपन द्वारा ध्वनि उत्पन्न होती है।
- प्रयोग: पारंपरिक लोक संगीत में, विशेषकर युवा वर्ग में मनोरंजन के लिए।

निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड के लोक वाद्य यंत्र राज्य की संगीतमय परंपराओं के अभिन्न अंग हैं। ये न केवल विभिन्न प्रकार के लोकगीतों और नृत्यों को जीवंत बनाते हैं बल्कि यहाँ की सांस्कृतिक पहचान को भी समृद्ध करते हैं। इन पारंपरिक वाद्य यंत्रों और इन्हें बजाने की कला का संरक्षण और संवर्धन अत्यंत महत्वपूर्ण है।