उत्तराखंड की वीर भूमि ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनगिनत सपूतों और वीरांगनाओं को जन्म दिया। इन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने साहस, त्याग और बलिदान से न केवल ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलाई बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बने।
उत्तराखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी
- उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानियों ने 1857 के प्रथम संग्राम से लेकर 1947 में आजादी तक विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई।
- इनमें समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल थे, जिनमें किसान, मजदूर, छात्र, महिलाएँ और बुद्धिजीवी प्रमुख थे।
- कई सेनानियों ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भी भाग लिया और आजाद हिन्द फौज में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- स्थानीय मुद्दों जैसे कुली बेगार और वन अधिकारों के संघर्ष ने भी राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा दिया।
प्रारंभिक स्वतंत्रता सेनानी (1857 और उसके बाद)
1. कालू सिंह मेहरा
- परिचय: इन्हें उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है।
- सक्रियता: 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान।
- योगदान: चम्पावत जिले के बिसुंग गाँव के निवासी। इन्होंने “क्रान्तिवीर” नामक गुप्त संगठन बनाकर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का प्रयास किया। अवध के नवाब वाजिद अली शाह से प्रेरित।
- परिणाम: कमिश्नर रैमजे ने विद्रोह को कठोरता से दबा दिया।
राष्ट्रीय चेतना के अग्रदूत और प्रारंभिक नेता (20वीं सदी का प्रारंभ)
1. बद्री दत्त पाण्डेय
- परिचय: “कुमाऊँ केसरी” के नाम से प्रसिद्ध।
- योगदान: अल्मोड़ा अखबार के प्रभावशाली संपादक (1913-1918)। कुली बेगार आंदोलन (1921) के प्रमुख नेता, बागेश्वर में सरयू तट पर आंदोलन का नेतृत्व किया। कुमाऊँ परिषद् के गठन और संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका। कई बार जेल गए।
2. हरगोविंद पंत
- परिचय: अल्मोड़ा के प्रमुख कांग्रेसी नेता।
- योगदान: कुली बेगार आंदोलन में सक्रिय भूमिका। कुमाऊँ परिषद् के महत्वपूर्ण सदस्य। दलितों के उत्थान के लिए कार्य किया, 1928 में बागेश्वर में ब्राह्मणों द्वारा हल न चलाने की प्रथा को तोड़ा।
3. गोविंद बल्लभ पंत
- परिचय: भारत रत्न (1957), उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री और भारत के गृह मंत्री रहे।
- योगदान: 1903 में हैप्पी क्लब की स्थापना। कुमाऊँ परिषद् के संस्थापक सदस्यों में से एक। विभिन्न राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी।
4. अनुसूया प्रसाद बहुगुणा
- परिचय: “गढ़ केसरी” के नाम से प्रसिद्ध।
- योगदान: कुली बेगार आंदोलन में गढ़वाल से प्रमुख भूमिका। गढ़वाल कांग्रेस कमेटी के गठन में महत्वपूर्ण। विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों का नेतृत्व किया।
5. विक्टर मोहन जोशी
- परिचय: ईसाई समाज से आने वाले प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी।
- योगदान: 1930 में अल्मोड़ा में झंडा सत्याग्रह का नेतृत्व। “स्वाधीन प्रजा” समाचार पत्र का संपादन। असहयोग आंदोलन में सक्रिय।
6. मोहन सिंह मेहता
- परिचय: कुमाऊँ के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी।
- योगदान: कुली उतार आंदोलन में सक्रिय। 1921 में जेल जाने वाले उत्तराखंड के प्रथम राजनीतिक व्यक्ति (कुछ स्रोतों के अनुसार)।
7. हरिकृष्ण रतूड़ी
- परिचय: टिहरी रियासत के इतिहासकार और प्रशासक, जिन्होंने अपनी लेखनी से राजनीतिक चेतना जगाई।
- योगदान: “गढ़वाल का इतिहास” के लेखक। यद्यपि सीधे तौर पर क्रांतिकारी नहीं थे, पर उनके लेखन ने गढ़वाल में गौरव और आत्म-पहचान की भावना को बढ़ावा दिया।
8. श्याम लाल शाह
- परिचय: अल्मोड़ा के प्रमुख सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता।
- योगदान: कुमाऊँ परिषद् और कांग्रेस की गतिविधियों में सक्रिय। स्थानीय स्तर पर जन जागरण और आंदोलनों में भागीदारी।
9. भवानी दत्त जोशी
- परिचय: कुमाऊँ के पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी।
- योगदान: “शक्ति” समाचार पत्र से जुड़े रहे और राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई।
प्रमुख आंदोलनकारी और क्रांतिकारी
1. वीर चंद्र सिंह गढ़वाली
- परिचय: पेशावर कांड के नायक।
- सक्रियता: 23 अप्रैल 1930 (पेशावर कांड)।
- योगदान: गढ़वाल राइफल्स के हवलदार मेजर। पेशावर में निहत्थे स्वतंत्रता सेनानियों (खुदाई खिदमतगारों) पर गोली चलाने के ब्रिटिश आदेश को मानने से इनकार कर दिया। इस घटना ने राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दी। इन्हें लंबी जेल की सजा हुई।
2. श्रीदेव सुमन
- परिचय: टिहरी रियासत में राजशाही के विरुद्ध संघर्ष के प्रणेता।
- योगदान: टिहरी राज्य प्रजामंडल के गठन और संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका। उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए संघर्ष किया। 84 दिनों की ऐतिहासिक भूख हड़ताल के बाद 25 जुलाई 1944 को जेल में शहीद हो गए।
3. इन्द्र सिंह नयाल
- परिचय: कुमाऊँ के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिन्द फौज के सिपाही।
- योगदान: भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय। आजाद हिन्द फौज में शामिल होकर देश की आजादी के लिए संघर्ष किया।
4. खुशीराम आर्य
- परिचय: दलित नेता और समाज सुधारक।
- योगदान: स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ दलितों के उत्थान और शिल्पकार सुधार आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिल्पकार सभा का गठन किया।
5. जयानंद भारती
- परिचय: गढ़वाल के प्रमुख समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी।
- योगदान: डोला-पालकी आंदोलन के प्रणेता, जिसने दलितों को सवर्णों के समान डोली-पालकी में बैठने का अधिकार दिलाया। यह सामाजिक समानता और मानवाधिकारों का एक महत्वपूर्ण संघर्ष था।
6. मन्मथनाथ गुप्त
- परिचय: प्रसिद्ध क्रांतिकारी, काकोरी कांड से संबंधित।
- योगदान: यद्यपि उनका मुख्य कार्यक्षेत्र उत्तराखंड से बाहर था, लेकिन उनके क्रांतिकारी विचारों और गतिविधियों का प्रभाव उत्तराखंड के युवाओं पर भी पड़ा।
7. भगवती प्रसाद पांथरी
- परिचय: गढ़वाल के क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी।
- योगदान: हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ (HSRA) से जुड़े रहे और क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे।
8. रघुनाथ सिंह नेगी
- परिचय: उत्तराखंड के क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े स्वतंत्रता सेनानी।
- योगदान: ब्रिटिश शासन के विरुद्ध गुप्त रूप से क्रांतिकारी कार्यों में संलग्न रहे।
स्वतंत्रता संग्राम में महिलाएँ
- बिश्नी देवी शाह: 1930 में अल्मोड़ा नगरपालिका पर तिरंगा फहराया। स्वतंत्रता आंदोलन में जेल जाने वाली उत्तराखंड की प्रथम महिला (कुछ स्रोतों के अनुसार)।
- कुंती वर्मा: सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय।
- सरला बहन (कैथरीन मेरी हेल्वमन): गांधीजी की शिष्या, कौसानी में लक्ष्मी आश्रम की स्थापना कर महिला जागृति और स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया।
- मीरा बहन (मैडलिन स्लेड): गांधीजी की शिष्या, उत्तराखंड में रचनात्मक कार्यों और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी रहीं।
- तुलसी देवी रावत, जीवंती देवी, मंगला देवी, भागीरथी देवी, दुर्गा देवी, पद्मा जोशी जैसी अनेक महिलाओं ने विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया, प्रभात फेरियाँ निकालीं, धरना-प्रदर्शन किए और जेल गईं।
- हंसा धनाई और बच्चू लाल भट्ट की पत्नी (शकुंतला देवी): सल्ट गोलीकांड के समय महत्वपूर्ण भूमिका।
आजाद हिन्द फौज में उत्तराखंड का योगदान
- उत्तराखंड से बड़ी संख्या में सैनिक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज (INA) में शामिल हुए।
- लगभग 2500 सैनिक (INA के कुल सैनिकों का लगभग 12%) उत्तराखंड से थे।
- कर्नल पिथौरा शाही (बुद्धि सिंह रावत), कर्नल चंद्र सिंह नेगी, मेजर देव सिंह दानू, लेफ्टिनेंट ज्ञान सिंह बिष्ट, कैप्टन पदम सिंह, कैप्टन मोहन सिंह जैसे अधिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- कई सैनिक युद्ध में शहीद हुए या बंदी बनाए गए।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का त्याग और बलिदान अविस्मरणीय है। उन्होंने न केवल राष्ट्रीय आंदोलनों में अपनी जान की बाजी लगाई, बल्कि स्थानीय स्तर पर भी सामाजिक कुरीतियों और औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई। उनकी वीरता और देशभक्ति आज भी हमें प्रेरणा देती है।
Instructions
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