उत्तराखंड, जिसे “हिमालय का हृदय” भी कहा जाता है, असंख्य हिमनदों (ग्लेशियरों) का घर है। ये हिमनद न केवल राज्य की प्राकृतिक सुंदरता और पहचान का अभिन्न अंग हैं, बल्कि उत्तर भारत की प्रमुख नदी प्रणालियों के लिए जल के महत्वपूर्ण स्रोत भी हैं। इनका अध्ययन जलवायु परिवर्तन, जल संसाधन प्रबंधन और पारिस्थितिकी संतुलन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उत्तराखंड के प्रमुख हिमनद: एक सिंहावलोकन
- उत्तराखंड में अधिकांश हिमनद वृहद् हिमालय (हिमाद्रि) क्षेत्र में स्थित हैं।
- गंगोत्री हिमनद राज्य का सबसे बड़ा और भारत का दूसरा सबसे बड़ा हिमनद है।
- ये हिमनद गंगा, यमुना और काली (शारदा) जैसी प्रमुख नदियों और उनकी सहायक नदियों को जन्म देते हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण इन हिमनदों के सिकुड़ने और पीछे हटने की गंभीर समस्या देखी जा रही है।
- हिमनदों के पिघलने से हिमनद झीलों (Glacial Lakes) का निर्माण होता है, जिनसे GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) का खतरा रहता है।
1. गंगा नदी तंत्र के प्रमुख हिमनद
क. गंगोत्री हिमनद समूह (उत्तरकाशी जिला)
- गंगोत्री हिमनद (Gangotri Glacier):
- स्थिति: उत्तरकाशी जिला, चौखम्बा पर्वत श्रृंखला के उत्तरी ढाल पर।
- लम्बाई: लगभग 30 किलोमीटर।
- चौड़ाई: लगभग 0.5 से 2.5 किलोमीटर।
- विशेषता: उत्तराखंड का सबसे बड़ा हिमनद और भारत का दूसरा सबसे बड़ा (सियाचिन के बाद)। यह भागीरथी नदी (गंगा की मुख्य स्रोत धारा) का उद्गम स्थल है, जिसे गोमुख कहा जाता है। यह कई सहायक हिमनदों (जैसे रक्तवर्ण, चतुरंगी, कीर्ति, मैरू, स्वछंद आदि) से मिलकर बना है।
- यमुनोत्री हिमनद (Yamunotri Glacier):
- स्थिति: उत्तरकाशी जिला, बंदरपूँछ पर्वत के पश्चिमी ढाल पर।
- लम्बाई: लगभग 10 किलोमीटर।
- विशेषता: यह यमुना नदी का उद्गम स्थल है। इसके पास ही बंदरपूँछ हिमनद भी स्थित है।
- बंदरपूँछ हिमनद (Bandarpunch Glacier):
- स्थिति: उत्तरकाशी जिला, बंदरपूँछ पर्वत श्रृंखला पर।
- लम्बाई: लगभग 12 किलोमीटर।
- विशेषता: यह टोंस नदी की एक सहायक नदी को जल प्रदान करता है।
- अन्य महत्वपूर्ण हिमनद (उत्तरकाशी): डोरियानी, रक्तवर्ण, चतुरंगी, कीर्ति, मैरू, स्वछंद, जौंधार आदि।
ख. सतोपंथ एवं भागीरथी खड़क हिमनद समूह (चमोली जिला)
- सतोपंथ हिमनद (Satopanth Glacier):
- स्थिति: चमोली जिला, चौखम्बा, नीलकंठ और सतोपंथ शिखरों के मध्य।
- लम्बाई: लगभग 13 किलोमीटर।
- विशेषता: यह अलकनंदा नदी का प्रमुख उद्गम स्थल है। इसके अग्रभाग के निकट सतोपंथ ताल स्थित है।
- भागीरथी खड़क हिमनद (Bhagirathi Kharak Glacier):
- स्थिति: चमोली जिला, सतोपंथ हिमनद के निकट।
- लम्बाई: लगभग 18 किलोमीटर।
- विशेषता: यह भी अलकनंदा नदी को जल प्रदान करता है।
ग. केदारनाथ हिमनद समूह (रुद्रप्रयाग जिला)
- चौराबाड़ी हिमनद (Chorabari Glacier):
- स्थिति: रुद्रप्रयाग जिला, केदारनाथ मंदिर के उत्तर में।
- लम्बाई: लगभग 14 किलोमीटर (विभिन्न स्रोतों में भिन्नता)।
- विशेषता: यह मंदाकिनी नदी का उद्गम स्थल है। इसके निकट गांधी सरोवर (चौराबाड़ी ताल) स्थित था, जो 2013 की केदारनाथ आपदा में महत्वपूर्ण कारक बना।
- केदारनाथ हिमनद (Kedarnath Glacier):
- स्थिति: रुद्रप्रयाग जिला, केदारनाथ शिखर के ढलानों पर।
- विशेषता: यह भी मंदाकिनी नदी प्रणाली को जल प्रदान करता है।
घ. पिंडारी एवं कफनी हिमनद समूह (बागेश्वर जिला)
- पिंडारी हिमनद (Pindari Glacier):
- स्थिति: बागेश्वर जिला, नंदा देवी और नंदा कोट शिखरों के मध्य।
- लम्बाई: लगभग 30 किलोमीटर।
- चौड़ाई: लगभग 0.4 किलोमीटर।
- विशेषता: यह पिंडर नदी का उद्गम स्थल है, जो कर्णप्रयाग में अलकनंदा से मिलती है। यह कुमाऊँ क्षेत्र का दूसरा सबसे बड़ा हिमनद है और ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध है।
- कफनी हिमनद (Kaphni Glacier):
- स्थिति: बागेश्वर जिला, पिंडारी हिमनद के निकट, नंदा कोट के ढलानों पर।
- विशेषता: यह कफनी नदी का उद्गम स्थल है, जो पिंडर की सहायक नदी है।
- सुंदरढूंगा हिमनद (Sunderdhunga Glacier):
- स्थिति: बागेश्वर जिला, सुंदरढूंगा घाटी में।
- विशेषता: यह सुंदरढूंगा नदी को जन्म देता है, जो पिंडर की सहायक है।
- अन्य महत्वपूर्ण हिमनद (बागेश्वर): मैकतोली, सुखराम।
2. काली (शारदा) नदी तंत्र के प्रमुख हिमनद (पिथौरागढ़ जिला)
- मिलम हिमनद (Milam Glacier):
- स्थिति: पिथौरागढ़ जिला, त्रिशूल और हरदेओल शिखरों के ढलानों पर।
- लम्बाई: लगभग 16 किलोमीटर।
- विशेषता: यह कुमाऊँ क्षेत्र का सबसे बड़ा हिमनद है और गोरी गंगा नदी का उद्गम स्थल है, जो जौलजीबी में काली नदी से मिलती है।
- नामिक हिमनद (Namik Glacier):
- स्थिति: पिथौरागढ़ जिला।
- विशेषता: यह पूर्वी रामगंगा नदी का उद्गम स्थल है।
- रालम हिमनद (Ralam Glacier):
- स्थिति: पिथौरागढ़ जिला, मिलम हिमनद के पूर्व में।
- विशेषता: यह रालम गाड़ (गोरी गंगा की सहायक) को जल प्रदान करता है।
- पोटिंग / पोंटिंग हिमनद (Poting Glacier):
- स्थिति: पिथौरागढ़ जिला।
- विशेषता: यह भी गोरी गंगा प्रणाली को जल प्रदान करता है।
- हीरामणि हिमनद (Heeramani Glacier):
- स्थिति: पिथौरागढ़ जिला।
- अन्य महत्वपूर्ण हिमनद (पिथौरागढ़): काली, सोना, संकल्प, पिनौरा, मेओला आदि।
3. हिमनदों का महत्व
- जल संसाधन: ये उत्तर भारत की प्रमुख नदियों के लिए जल के स्थायी स्रोत हैं, जो पेयजल, सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- पारिस्थितिक संतुलन: हिमनद स्थानीय जलवायु को नियंत्रित करते हैं और विशिष्ट अल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करते हैं।
- जैव विविधता: हिमनदों के आसपास के क्षेत्रों में दुर्लभ और स्थानिक वनस्पतियाँ तथा जीव-जंतु पाए जाते हैं।
- सांस्कृतिक एवं पर्यटन महत्व: कई हिमनद और उनसे निकलने वाली नदियाँ धार्मिक आस्था से जुड़ी हैं (जैसे गंगोत्री, यमुनोत्री)। ये ट्रेकिंग और पर्वतारोहण के लिए भी लोकप्रिय हैं।
4. हिमनदों से संबंधित चुनौतियाँ एवं संरक्षण
क. चुनौतियाँ:
- जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग: यह हिमनदों के तेजी से पिघलने और पीछे हटने का सबसे बड़ा कारण है।
- GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड): हिमनदों के पिघलने से बनी झीलों के अचानक फटने से निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा। (उदाहरण: 2013 की केदारनाथ आपदा में चौराबाड़ी ताल का फटना, 2021 में चमोली आपदा)।
- ब्लैक कार्बन का जमाव: जीवाश्म ईंधन के जलने और वनों की आग से उत्पन्न ब्लैक कार्बन हिमनदों पर जमा होकर उनके पिघलने की दर को बढ़ाता है।
- मानवीय गतिविधियाँ: अनियंत्रित पर्यटन, निर्माण कार्य और प्रदूषण भी हिमनदों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
- जल संसाधनों पर प्रभाव: हिमनदों के सिकुड़ने से भविष्य में नदियों के जल प्रवाह में कमी आ सकती है, जिससे जल संकट उत्पन्न हो सकता है।
ख. संरक्षण के प्रयास:
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के प्रयास।
- हिमनदों और हिमनद झीलों की नियमित निगरानी और अध्ययन।
- GLOF के संभावित खतरों का मूल्यांकन और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों का विकास।
- हिमनदों के आसपास के क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों का विनियमन।
- जन जागरूकता अभियान और स्थानीय समुदायों की भागीदारी।
- वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (WIHG) और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (NIH) जैसे संस्थान हिमनदों पर महत्वपूर्ण शोध कर रहे हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड के हिमनद न केवल राज्य के लिए बल्कि पूरे उत्तर भारत के लिए जीवनदायिनी हैं। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में इनका संरक्षण एक गंभीर चुनौती है, जिसके लिए समन्वित और सतत प्रयासों की आवश्यकता है। वैज्ञानिक अनुसंधान, नीतिगत हस्तक्षेप और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से ही इन अमूल्य प्राकृतिक धरोहरों को भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।