उत्तराखंड, अपनी प्रचुर जल संपदा और पर्वतीय स्थलाकृति के कारण, जलविद्युत उत्पादन के लिए अपार क्षमता रखता है। राज्य की नदियाँ न केवल सिंचाई और पेयजल का स्रोत हैं बल्कि ऊर्जा उत्पादन का भी एक प्रमुख आधार हैं, जिससे राज्य को “ऊर्जा प्रदेश” बनाने की परिकल्पना की गई है।
उत्तराखंड में जलविद्युत परियोजनाएँ
- उत्तराखंड की अनुमानित जलविद्युत उत्पादन क्षमता 25,000 मेगावाट से अधिक है।
- राज्य में छोटी (लघु) और बड़ी दोनों प्रकार की जलविद्युत परियोजनाएँ संचालित और निर्माणाधीन हैं। 2 मेगावाट तक की परियोजनाएँ सूक्ष्म, 2-25 मेगावाट तक लघु, और इससे अधिक क्षमता वाली बड़ी परियोजनाएँ कहलाती हैं।
- 29 जनवरी 2008 को राज्य में नवीकरणीय ऊर्जा नीति की घोषणा की गई, जिसमें जलविद्युत को भी महत्व दिया गया।
- 31 जनवरी 2015 को लघु जल विद्युत परियोजना नीति 2015 लागू की गई, जिसका उद्देश्य छोटी परियोजनाओं को बढ़ावा देना था।
- राज्य को केंद्र या अन्य राज्य द्वारा विकसित परियोजना से रॉयल्टी के रूप में 12% बिजली निःशुल्क मिलती है।
- उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (UJVNL) राज्य की प्रमुख जलविद्युत उत्पादन कंपनी है, जिसकी स्थापना 12 फरवरी 2001 को हुई।
प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएँ
1. टिहरी बाँध परियोजना
- नदी: भागीरथी और भिलंगना के संगम पर (गणेश प्रयाग)।
- स्थान: टिहरी जनपद।
- कुल क्षमता: 2400 मेगावाट
- टिहरी बाँध जल विद्युत परियोजना (Stage-I): 1000 मेगावाट
- टिहरी पम्प स्टोरेज परियोजना (Stage-II): 1000 मेगावाट
- कोटेश्वर बाँध जल विद्युत परियोजना: 400 मेगावाट (भागीरथी नदी पर)
- विशेषताएँ:
- यह एशिया का सबसे ऊँचा (260.5 मीटर) और दुनिया का चौथा सबसे ऊँचा काफर (मिट्टी और पत्थर पूरित) बाँध है।
- इसे “राष्ट्र के गाँव” की संज्ञा दी गई है।
- निर्माण कार्य 1978 में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग द्वारा प्रारंभ।
- 1988 में टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (THDC) इंडिया लिमिटेड की स्थापना और 1989 में इसे परियोजना का कार्यभार सौंपा गया।
- 1986 में रूस के साथ समझौते के बाद क्षमता 600 मेगावाट से 2400 मेगावाट की गई।
- प्रथम चरण (1000 मेगावाट) का शुभारंभ 30 जुलाई 2006 को हुआ।
- जलाशय का आधिकारिक नाम स्वामी रामतीर्थ सागर (स्थानीय नाम: सुमन सागर), क्षेत्रफल 42 वर्ग किमी।
- इसके विरोध में विद्यासागर नौटियाल की अध्यक्षता में 1978 में बाँध विरोधी समिति बनी। सुंदरलाल बहुगुणा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2. मनेरी भाली परियोजना
- नदी: भागीरथी नदी पर।
- स्थान: उत्तरकाशी जनपद।
- यह परियोजना दो चरणों में है:
- चरण-I (तिलोथ पावर हाउस): क्षमता 90 मेगावाट (30×3)। स्थान: मनेरी से तिलोथ तक सुरंग।
- चरण-II (धरासू पावर हाउस): क्षमता 304 मेगावाट (76×4)। स्थान: धरासू के पास।
3. विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना
- नदी: अलकनंदा नदी पर (अलकनंदा और पश्चिमी धौलीगंगा के संगम के पास)।
- स्थान: चमोली जनपद।
- क्षमता: 400 मेगावाट।
- विशेषता: यह जेपी समूह (जयप्रकाश एसोसिएट्स) द्वारा निर्मित है। यह एक रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है।
4. धौलीगंगा परियोजना (चरण-I)
- नदी: पूर्वी धौलीगंगा नदी पर (काली नदी की सहायक)।
- स्थान: धारचूला, पिथौरागढ़ जनपद।
- क्षमता: 280 मेगावाट (70×4)।
- विशेषता: NHPC (नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन) द्वारा निर्मित। 7 फरवरी 2021 की आपदा में इसे क्षति पहुँची थी।
5. लखवाड़-व्यासी परियोजना
- नदी: यमुना नदी पर।
- स्थान: देहरादून जनपद।
- यह एक बहुउद्देशीय परियोजना है।
- लखवाड़ बाँध: क्षमता 300 मेगावाट, ऊँचाई 204 मीटर (कंक्रीट ग्रेविटी बाँध)। 1976 में मंजूरी, 2008 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित। 6 राज्य (उत्तराखंड, हिमाचल, राजस्थान, हरियाणा, यूपी, दिल्ली) लाभान्वित।
- व्यासी परियोजना: क्षमता 120 मेगावाट (60×2)। इसके कारण लोहारी गाँव जलमग्न हो गया।
6. किशाऊ बाँध परियोजना
- नदी: टोंस नदी पर (यमुना की सहायक)।
- स्थान: देहरादून (उत्तराखंड) और सिरमौर (हिमाचल प्रदेश) की सीमा पर।
- क्षमता: 660 मेगावाट। ऊँचाई 236 मीटर (कंक्रीट ग्रेविटी बाँध)।
- विशेषता: उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की संयुक्त परियोजना। यह भी एक राष्ट्रीय परियोजना है।
7. ग्लोगी जल विद्युत परियोजना
- स्थान: मसूरी के निकट भट्टा फॉल पर, देहरादून।
- क्षमता: 3.5 मेगावाट (प्रारंभिक, बाद में क्षमता वृद्धि)।
- विशेषताएँ:
- यह उत्तराखंड और उत्तर भारत की पहली लघु जल विद्युत परियोजना थी।
- निर्माण कार्य 1907 में पूर्ण, शुभारंभ मई 1909।
- देश का दूसरा (मैसूर के बाद) विद्युत गृह। खाका कर्नल वेब के नेतृत्व में बिलिंग हर्ट ने बनाया।
अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाएँ (जिलावार सूची)
- उत्तरकाशी जनपद:
- पाला मनेरी (भागीरथी, 480 MW)
- लोहारीनाग पाला (भागीरथी, 520 MW, NTPC, विवादित और बंद)
- नटवाड़ मोरी (टोंस, 60 MW, UJVNL)
- जाखोल सांकरी (सूपिन, 51 MW, UJVNL)
- जोशियाड़ा (उत्तरकाशी शहर के पास) (भागीरथी, लघु परियोजना)
- भैरोंघाटी परियोजना (भागीरथी, प्रस्तावित)
- चमोली जनपद:
- तपोवन विष्णुगाड (धौलीगंगा (पश्चिमी), 520 MW, NTPC)
- लता तपोवन (धौलीगंगा (पश्चिमी), 171 MW, NTPC)
- मलारी झेलम (धौलीगंगा (पश्चिमी), 144 MW)
- गोविंद घाट (अलकनंदा-लक्ष्मणगंगा, लघु परियोजना)
- विष्णुगाड-पीपलकोटी (अलकनंदा, 444 MW, THDC)
- देवसारी परियोजना (पिंडर नदी, 252 MW, सतलुज जल विद्युत निगम)
- उरगम परियोजना (कल्पगंगा, लघु परियोजना)
- टिहरी जनपद:
- कोटलीभेल परियोजना (विभिन्न चरण) (गंगा नदी, कुल प्रस्तावित क्षमता 1000 MW के आसपास, NTPC/UJVNL)
- भिलंगना-I, II, III (भिलंगना नदी पर विभिन्न लघु परियोजनाएँ)
- पिथौरागढ़ जनपद:
- सेला उर्थिंग (पूर्वी धौलीगंगा, 230 MW)
- धौलीगंगा फेज-2 (या छिरकिला बाँध) (पूर्वी धौलीगंगा, 202 MW)
- कालीगंगा-I & II (काली नदी पर)
- तवाघाट परियोजना (काली नदी)
- सोरिंग गाड, गिरिगंगा (लघु परियोजनाएँ)
- रुद्रप्रयाग जनपद:
- सिंगोली भटवाड़ी (मंदाकिनी, 99 MW)
- फाटा ब्योंग (मंदाकिनी, 76 MW)
- रामबाड़ा, कालीगंगा (लघु परियोजनाएँ)
- पौड़ी जनपद:
- श्रीनगर जलविद्युत परियोजना (अलकनंदा, 330 MW, अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमिटेड (GVK))
- कालागढ़ बाँध (रामगंगा नदी पर, सिंचाई और 198 MW विद्युत)
- चीला परियोजना (गंगा नहर पर, 144 MW, UJVNL)
- देहरादून जनपद (यमुना घाटी):
- ढालीपुर (यमुना, 51 MW)
- ढकरानी (यमुना, 33.75 MW)
- कुलहाल (यमुना, 30 MW)
- छिबरो (टोंस, 240 MW, भूमिगत पावरहाउस)
- खोडरी (यमुना, 120 MW)
नोट: कई परियोजनाएँ UJVNL (उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड), NTPC (नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन), NHPC (नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन) और निजी कंपनियों द्वारा संचालित हैं।
जलविद्युत परियोजनाओं से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ
- पर्यावरणीय प्रभाव: वनों की कटाई, जैव विविधता का नुकसान, नदी के पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव, गाद जमाव।
- विस्थापन और पुनर्वास: परियोजना क्षेत्रों से स्थानीय समुदायों का विस्थापन और उनका उचित पुनर्वास एक बड़ी चुनौती है।
- भूवैज्ञानिक अस्थिरता: हिमालय एक संवेदनशील भूकंपीय क्षेत्र है, जिससे बाँधों की सुरक्षा पर प्रश्न उठते हैं। भूस्खलन का खतरा भी बना रहता है।
- आपदा जोखिम: बादल फटने और आकस्मिक बाढ़ जैसी आपदाओं से परियोजनाओं को क्षति पहुँचने का खतरा (जैसे 2013 और 2021 की आपदाएँ)।
- सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: स्थानीय संस्कृति और आजीविका पर प्रभाव।
- नीतिगत मुद्दे और जन विरोध: कई परियोजनाओं का स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों द्वारा विरोध किया गया है।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड में जलविद्युत ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण और स्वच्छ स्रोत है, जिसकी राज्य के आर्थिक विकास में अहम भूमिका है। हालांकि, इन परियोजनाओं के विकास में पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक न्याय और आपदा जोखिम न्यूनीकरण जैसे पहलुओं को सर्वोच्च प्राथमिकता देना आवश्यक है। सतत जलविद्युत विकास के माध्यम से ही राज्य “ऊर्जा प्रदेश” बनने के अपने लक्ष्य को सही अर्थों में प्राप्त कर सकता है।