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औद्योगिक विकास योजनाएँ (Industrial Development Programs)

उत्तराखंड में औद्योगिक विकास योजनाएँ एवं नीतियाँ (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

उत्तराखंड राज्य के गठन के पश्चात, संतुलित क्षेत्रीय विकास और रोजगार सृजन के लिए औद्योगिक विकास को गति देना एक प्रमुख प्राथमिकता रही है। राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा विभिन्न औद्योगिक नीतियों, योजनाओं और प्रोत्साहनों की घोषणा की गई है।

उत्तराखंड में औद्योगिक विकास: नीतियाँ एवं कार्यक्रम

कुछ त्वरित तथ्य (Quick Facts):
  • राज्य की प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा 8 जुलाई, 2001 को की गई थी।
  • नई औद्योगिक नीति 26 मार्च, 2003 को घोषित की गई, जिसमें केंद्र सरकार के विशेष औद्योगिक पैकेज का लाभ उठाने पर जोर दिया गया।
  • औद्योगिक प्रोत्साहन नीति, 2008 (पहाड़ी उद्योग नीति) पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण थी।
  • राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड (SIDCUL) की स्थापना 2002 में औद्योगिक आस्थानों के विकास और प्रबंधन के लिए की गई।
  • राज्य में फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल, खाद्य प्रसंस्करण, पर्यटन, आईटी और जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) नीति, 2015 और उत्तराखंड MSME नीति, 2023 तथा स्टार्ट-अप नीति, 2018 (एवं नवीनतम 2023) युवाओं को उद्यमिता के लिए प्रोत्साहित करने हेतु लाई गईं।

प्रमुख औद्योगिक नीतियाँ एवं पहल

1. प्रारंभिक औद्योगिक नीतियाँ (2001 एवं 2003)

  • औद्योगिक नीति, 2001: 8 जुलाई 2001 को घोषित। मुख्य उद्देश्य राज्य में औद्योगिक निवेश को आकर्षित करना और आधारभूत संरचना का विकास करना था।
  • नई औद्योगिक नीति, 2003: 26 मार्च 2003 को घोषित। यह नीति केंद्र सरकार द्वारा 7 जनवरी 2003 को घोषित विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति के अनुरूप थी।
    • इसके तहत केंद्रीय उत्पाद शुल्क में 100% छूट (10 वर्षों के लिए) और आयकर में 100% छूट (पहले 5 वर्षों के लिए) जैसे प्रावधान थे।
    • इस नीति के परिणामस्वरूप हरिद्वार, पंतनगर, सितारगंज जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर औद्योगिक निवेश हुआ।

2. औद्योगिक प्रोत्साहन नीति, 2008 (पहाड़ी उद्योग नीति)

  • पर्वतीय और दूरस्थ क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए 1 अप्रैल 2008 को लागू।
  • इसके तहत औद्योगिक इकाइयों को ग्रुप ‘ए’ और ग्रुप ‘बी’ में वर्गीकृत कर विभिन्न प्रोत्साहन दिए गए। (बाद में वर्गीकरण श्रेणियों में परिवर्तन हुआ)
  • होटल, साहसिक पर्यटन, और रोपवे को उद्योग का दर्जा दिया गया।
  • यह नीति मूल रूप से 10 वर्षों (2018 तक) के लिए थी, जिसे बाद में संशोधित कर लाभ की अवधि बढ़ाई गई।

3. सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) नीतियाँ

  • MSME नीति, 2015: राज्य में MSME क्षेत्र को बढ़ावा देने, रोजगार सृजन और उद्यमिता विकास के लिए जनवरी 2015 में लागू।
  • उत्तराखंड MSME नीति, 2023:
    • यह नीति 2023 में राज्य की नई औद्योगिक नीति के एक भाग के रूप में लागू की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना, पूंजीगत सब्सिडी और ब्याज में वृद्धि करना है।
    • नीति के तहत, औद्योगिक क्षेत्रों को पहले की पांच श्रेणियों के स्थान पर चार श्रेणियों (A, B, C, D) में विभाजित किया गया है। A और B श्रेणी में पहाड़ी जिले शामिल हैं, जबकि C और D श्रेणी में अधिकांश मैदानी क्षेत्र हैं।
    • पूंजीगत उपादान (Capital Subsidy):
      • सूक्ष्म श्रेणी के उद्योगों में 1 करोड़ रुपये तक के निवेश पर सब्सिडी दो साल के भीतर दो किस्तों में दी जाएगी।
      • 1 करोड़ से 50 करोड़ रुपये तक के निवेश पर सब्सिडी पांच साल के भीतर पांच किस्तों में दी जाएगी।
      • श्रेणी ‘ए’ में 1 करोड़ रुपये तक के निवेश पर 50% तक सब्सिडी का प्रावधान है। (विभिन्न श्रेणियों और निवेश स्लैब के लिए अलग-अलग सब्सिडी दरें और सीमाएं निर्धारित हैं।)
    • अतिरिक्त प्रोत्साहन: प्राकृतिक फाइबर, जीआई टैग वाले उत्पादों, खाद्य प्रसंस्करण जैसे विशिष्ट विनिर्माण उद्यमों में निवेशकों को अतिरिक्त पूंजीगत सहायता प्रदान की जाएगी।
    • विशेष प्राथमिकता: अनुसूचित जाति, जनजाति और महिला उद्यमियों को प्रोत्साहन के लिए अति प्राथमिकता श्रेणी में रखा गया है और उन्हें अतिरिक्त सब्सिडी का प्रावधान है।
    • इन नीतियों के तहत पूंजी उपादान, ब्याज उपादान, स्टाम्प ड्यूटी में छूट आदि जैसे अन्य प्रोत्साहन भी शामिल हैं।

4. स्टार्ट-अप नीति (Startup Policy)

  • प्रारंभिक नीति 2018 में घोषित, युवाओं में नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से।
  • उत्तराखंड स्टार्ट-अप नीति, 2023: 14 सितंबर 2023 को मुख्यमंत्री द्वारा विमोचित। इसका लक्ष्य राज्य में 2030 तक 1000 नए स्टार्ट-अप स्थापित करना है।
    • नीति के तहत स्टार्ट-अप्स को वित्तीय सहायता (मासिक भत्ता, सीड फंडिंग, मैचिंग ग्रांट), इनक्यूबेशन सेंटर, मेंटरशिप और नियामक छूट प्रदान करने का प्रावधान है।
    • “उत्तराखंड स्टार्ट-अप कॉन्क्लेव” और “उत्तराखंड स्टार्ट-अप ग्रांड चैलेंज” जैसे आयोजनों के माध्यम से स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को मजबूत किया जा रहा है।

5. विशिष्ट क्षेत्र-केंद्रित नीतियाँ (Sector-Specific Policies)

  • पर्यटन नीति: समय-समय पर संशोधित, नवीनतम 2018 में (और उसके बाद भी संशोधन, जैसे नई पर्यटन नीति 2023)। पर्यटन को उद्योग का दर्जा, होमस्टे योजना, नए पर्यटन स्थलों का विकास, एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा।
  • जैव प्रौद्योगिकी नीति (Biotechnology Policy), 2018-23: जैव-संसाधनों का सतत उपयोग और जैव-प्रौद्योगिकी आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना।
  • एरोमा पार्क नीति, 2018: सगंध पौधों की खेती और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए। काशीपुर में एरोमा पार्क विकसित किया जा रहा है।
  • आयुष नीति, 2018: आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी आधारित स्वास्थ्य सेवाओं और उत्पादों को बढ़ावा देना।
  • फिल्म नीति, 2015 (एवं बाद के संशोधन, जैसे फिल्म नीति 2024): राज्य को फिल्म शूटिंग के लिए एक आकर्षक गंतव्य बनाना, सब्सिडी और सिंगल विंडो क्लीयरेंस।
  • सौर ऊर्जा नीति: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना। (नवीनतम नीति 2023 में, 2027 तक 2500 मेगावाट का लक्ष्य)
  • इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण नीति: इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण और उपयोग को प्रोत्साहित करना।
  • पिरूल नीति, 2018: चीड़ की पत्तियों (पिरूल) से बिजली और अन्य उत्पाद बनाने को प्रोत्साहन।

औद्योगिक आस्थान एवं सिडकुल (Industrial Areas & SIDCUL)

राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड (SIDCUL) की स्थापना 2002 में राज्य में औद्योगिक बुनियादी ढांचे के विकास, औद्योगिक आस्थानों की स्थापना और प्रबंधन के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में की गई थी।

सिडकुल द्वारा विकसित प्रमुख औद्योगिक आस्थान:

  • एकीकृत औद्योगिक आस्थान, पंतनगर (ऊधम सिंह नगर): राज्य का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र, ऑटोमोबाइल और ऑटो-कंपोनेंट उद्योगों का केंद्र।
  • एकीकृत औद्योगिक आस्थान, हरिद्वार (निकट BHEL): फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग और उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योगों का केंद्र।
  • फार्मा सिटी, सेलाकुई (देहरादून): विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल उद्योगों के लिए विकसित।
  • आई.टी. पार्क, सहस्त्रधारा रोड (देहरादून): सूचना प्रौद्योगिकी और संबंधित सेवाओं के लिए।
  • एल्डिको सिडकुल इंडस्ट्रियल पार्क, सितारगंज (ऊधम सिंह नगर): विभिन्न प्रकार के उद्योगों के लिए।
  • सिडकुल फेज-2, सितारगंज: प्लास्टिक पार्क आदि का विकास।
  • विकास केंद्र, सिगड्डी ग्रोथ सेंटर (कोटद्वार, पौड़ी गढ़वाल): स्थानीय संसाधनों पर आधारित उद्योगों को बढ़ावा।

सिडकुल ने इन आस्थानों में सड़क, पानी, बिजली, कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) जैसी विश्व स्तरीय सुविधाएँ प्रदान की हैं। इसके अतिरिक्त, राज्य में कई अन्य लघु और सूक्ष्म औद्योगिक क्षेत्र भी हैं।

MSME मंत्रालय द्वारा उत्तराखंड में MSME टूल रूम की स्थापना सिडकुल, सितारगंज में की गई है।

औद्योगिक विकास हेतु राज्य का वर्गीकरण (नई नीति 2023 के अनुसार)

औद्योगिक प्रोत्साहनों को अधिक लक्षित बनाने और क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने के लिए, उत्तराखंड की नई औद्योगिक नीति 2023 के तहत राज्य को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

  • श्रेणी ‘ए’: इसमें उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़, चम्पावत, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर जिलों के सभी विकासखंड और टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल के कुछ दुर्गम/अति दुर्गम विकासखंड शामिल हैं। यहाँ सर्वाधिक प्रोत्साहन दिए जाते हैं।
  • श्रेणी ‘बी’: इसमें टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल जिलों के शेष पर्वतीय विकासखंड (जो श्रेणी ‘ए’ में नहीं हैं) और देहरादून जिले के कुछ पर्वतीय विकासखंड शामिल हैं।
  • श्रेणी ‘सी’: इसमें देहरादून (विकासनगर, रायपुर, डोईवाला, सहसपुर के मैदानी क्षेत्र), पौड़ी (कोटद्वार, दुगड्डा का मैदानी क्षेत्र), नैनीताल (हल्द्वानी, रामनगर, लालकुआँ का मैदानी क्षेत्र) और ऊधम सिंह नगर (काशीपुर) के कुछ मैदानी/अर्ध-पर्वतीय क्षेत्र शामिल हैं।
  • श्रेणी ‘डी’: इसमें हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर जिलों के शेष मैदानी क्षेत्र (जो श्रेणी ‘सी’ में नहीं हैं) शामिल हैं। यहाँ प्रोत्साहन तुलनात्मक रूप से कम होते हैं।

चुनौतियाँ एवं भविष्य की दिशा

प्रमुख चुनौतियाँ:

  • भौगोलिक बाधाएँ: पर्वतीय भूभाग के कारण परिवहन लागत अधिक और कनेक्टिविटी की समस्या।
  • पर्यावरणीय संवेदनशीलता: उद्योगों की स्थापना में पर्यावरणीय नियमों का कड़ाई से पालन आवश्यक।
  • भूमि की उपलब्धता: पर्वतीय क्षेत्रों में समतल भूमि का अभाव।
  • कौशल विकास: स्थानीय युवाओं को औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुरूप कुशल बनाना।
  • पलायन: रोजगार के बेहतर अवसरों के लिए युवाओं का मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन।
  • बाजार संपर्क: उत्पादों के लिए व्यापक बाजार तक पहुँच सुनिश्चित करना।

भविष्य की दिशा:

  • सतत और पर्यावरण-अनुकूल उद्योगों को प्राथमिकता देना।
  • स्थानीय संसाधनों पर आधारित उद्योगों (जैसे खाद्य प्रसंस्करण, हर्बल, वनोपज) को बढ़ावा देना।
  • सेवा क्षेत्र (जैसे पर्यटन, आईटी, स्वास्थ्य, शिक्षा, वेलनेस) में निवेश आकर्षित करना।
  • “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” में निरंतर सुधार करना और सिंगल विंडो सिस्टम को और प्रभावी बनाना।
  • बुनियादी ढांचे का विकास, विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में कनेक्टिविटी में सुधार (जैसे ऑल-वेदर रोड, हेली सेवाएं)।
  • कौशल विकास और उद्यमिता को बढ़ावा देना, स्थानीय युवाओं को रोजगार के लिए तैयार करना।
  • “वोकल फॉर लोकल” और “आत्मनिर्भर उत्तराखंड” जैसी पहलों को मजबूत करना।
  • निर्यात उन्मुख इकाइयों को प्रोत्साहन और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़ना।

निष्कर्ष (Conclusion)

उत्तराखंड में औद्योगिक विकास राज्य की आर्थिक प्रगति और सामाजिक कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है। विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार ने निवेश आकर्षित करने और एक अनुकूल औद्योगिक वातावरण बनाने का प्रयास किया है। हालांकि, पर्वतीय राज्य होने की अपनी विशिष्ट चुनौतियाँ हैं, जिनका समाधान सतत विकास के सिद्धांतों को अपनाते हुए किया जाना आवश्यक है। स्थानीय संसाधनों का कुशल उपयोग, नवाचार को प्रोत्साहन और समावेशी विकास ही उत्तराखंड के औद्योगिक भविष्य की कुंजी है। नई एमएसएमई नीति और स्टार्ट-अप नीति जैसी पहलें इस दिशा में सकारात्मक कदम हैं।

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