उत्तराखंड, भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक पर्वतीय राज्य है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और रणनीतिक महत्व के लिए जाना जाता है। इसका गठन 9 नवंबर 2000 को भारत के 27वें राज्य (और 11वें हिमालयी राज्य) के रूप में उत्तर प्रदेश से अलग होकर हुआ था।
उत्तराखंड: स्थिति एवं विस्तार
- अक्षांशीय विस्तार: 28°43′ उत्तरी अक्षांश से 31°27′ उत्तरी अक्षांश तक। (विस्तार: 2°44′)
- देशांतरीय विस्तार: 77°34′ पूर्वी देशांतर से 81°02′ पूर्वी देशांतर तक। (विस्तार: 3°28′)
- कुल क्षेत्रफल: 53,483 वर्ग किलोमीटर (देश के कुल क्षेत्रफल का 1.69%)।
- क्षेत्रफल की दृष्टि से स्थान: राज्यों में 18वाँ, राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों में 19वाँ।
- आकार: लगभग आयताकार।
- पर्वतीय भाग: कुल क्षेत्रफल का लगभग 86.07% (46,035 वर्ग किमी)।
- मैदानी भाग: कुल क्षेत्रफल का लगभग 13.93% (7,448 वर्ग किमी)।
मानचित्र अवलोकन (Map Overview)
उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति और इसके पड़ोसी क्षेत्रों को समझने के लिए नीचे दिया गया मानचित्र –

1. भौगोलिक स्थिति (Geographical Location)
- उत्तराखंड भारत के उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। उत्तराखंड हिमालय के पश्चिम-मध्य भाग में स्थित है। (कुछ संदर्भों में इसे उत्तरी भाग में भी माना जाता है)
- यह वृहद् हिमालय पर्वत श्रृंखला के एक महत्वपूर्ण भाग का निर्माण करता है।
- राज्य की भौगोलिक स्थिति इसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है, क्योंकि इसकी सीमाएँ दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगती हैं।
2. विस्तार एवं सीमाएँ (Extent and Boundaries)
क. राज्य का विस्तार
- पूर्व से पश्चिम लम्बाई: लगभग 358 किलोमीटर।
- उत्तर से दक्षिण चौड़ाई: लगभग 320 किलोमीटर।
ख. अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ
उत्तराखंड दो देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ साझा करता है:
- उत्तर में चीन (तिब्बत क्षेत्र):
- सीमा की लम्बाई: लगभग 350 किलोमीटर (कुछ स्रोतों में 400 किमी)।
- चीन से सीमा बनाने वाले जिले (पश्चिम से पूर्व): उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़। (कुल 3 जिले)
- पूर्व में नेपाल:
- सीमा की लम्बाई: लगभग 275 किलोमीटर।
- नेपाल से सीमा बनाने वाले जिले (उत्तर से दक्षिण): पिथौरागढ़, चम्पावत, ऊधम सिंह नगर। (कुल 3 जिले)
- काली नदी भारत और नेपाल के बीच पूर्वी सीमा का निर्धारण करती है।
- पिथौरागढ़ एकमात्र जिला है जो दो देशों (चीन और नेपाल) के साथ सीमा साझा करता है। यह सर्वाधिक अंतर्राष्ट्रीय सीमा वाला जिला भी है।
- राज्य की कुल अंतर्राष्ट्रीय सीमा की लम्बाई लगभग 625 किलोमीटर है।
ग. अंतर-राज्यीय सीमाएँ
उत्तराखंड दो भारतीय राज्यों के साथ सीमाएँ साझा करता है:
- उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश:
- हिमाचल प्रदेश से सीमा बनाने वाले जिले: उत्तरकाशी, देहरादून। (कुल 2 जिले)
- टोंस नदी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के बीच पश्चिमी सीमा का एक बड़ा हिस्सा बनाती है।
- दक्षिण में उत्तर प्रदेश:
- उत्तर प्रदेश से सीमा बनाने वाले जिले (पश्चिम से पूर्व): देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल, नैनीताल, ऊधम सिंह नगर। (कुल 5 जिले)
- उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक सीमा ऊधम सिंह नगर जिले की और सबसे कम सीमा नैनीताल जिले की लगती है।
3. प्रशासनिक विभाग एवं आंतरिक संरचना
- उत्तराखंड राज्य दो मंडलों में विभाजित है: गढ़वाल मंडल और कुमाऊँ मंडल।
- गढ़वाल मंडल:
- स्थापना: 1969, मुख्यालय: पौड़ी।
- जिले (7): चमोली, उत्तरकाशी, देहरादून, पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, हरिद्वार, रुद्रप्रयाग।
- क्षेत्रफल: राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 60.67%।
- कुमाऊँ मंडल:
- स्थापना: 1854, मुख्यालय: नैनीताल।
- जिले (6): नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, ऊधम सिंह नगर, बागेश्वर, चम्पावत।
- क्षेत्रफल: राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 39.33%।
- आंतरिक जिले (Landlocked Districts): राज्य के 4 जिले ऐसे हैं जिनकी सीमाएँ न तो किसी अन्य देश से और न ही किसी अन्य राज्य से लगती हैं। ये हैं:
- गढ़वाल मंडल में: टिहरी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग।
- कुमाऊँ मंडल में: अल्मोड़ा, बागेश्वर।
- पौड़ी गढ़वाल जिला राज्य के सर्वाधिक 7 जिलों (हरिद्वार, देहरादून, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, अल्मोड़ा, नैनीताल) की सीमाओं को स्पर्श करता है।
- अल्मोड़ा और चमोली जिले भी 6-6 जिलों की सीमाओं को स्पर्श करते हैं।
4. भौगोलिक चरम बिंदु (Geographical Extremes)
- सबसे उत्तरी जिला: उत्तरकाशी
- सबसे दक्षिणी जिला: ऊधम सिंह नगर
- सबसे पूर्वी जिला: पिथौरागढ़
- सबसे पश्चिमी जिला: देहरादून
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति और विस्तार इसे प्राकृतिक संसाधनों, जैव विविधता और सांस्कृतिक धरोहरों से संपन्न बनाते हैं। इसकी अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ इसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती हैं, जबकि इसका पर्वतीय भूभाग विकास और आपदा प्रबंधन के लिए विशेष चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। राज्य का संतुलित क्षेत्रीय विकास इसकी भौगोलिक विशेषताओं को ध्यान में रखकर ही संभव है।