उत्तराखंड में पत्रकारिता का इतिहास राज्य के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलनों के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। पत्र-पत्रिकाओं ने न केवल सूचनाओं का प्रसार किया, बल्कि जन-जागरूकता, स्वतंत्रता संग्राम और पृथक राज्य आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उत्तराखंड की पत्र-पत्रिकाएँ और उनके संपादक: एक सिंहावलोकन
- उत्तराखंड का पहला समाचार पत्र “द हिल्स” (The Hills) था, जो 1842 में मसूरी से अंग्रेजी भाषा में जॉन मैकिनन द्वारा शुरू किया गया।
- राज्य का पहला हिन्दी समाचार पत्र “समय विनोद” माना जाता है, जिसका प्रकाशन 1868 में जसपुर (नैनीताल) से जयदत्त जोशी ने किया।
- “अल्मोड़ा अखबार” (1871) और “गढ़वाल समाचार” (1902) ने क्षेत्रीय पत्रकारिता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- स्वतंत्रता संग्राम और पृथक राज्य आंदोलन के दौरान कई पत्र-पत्रिकाओं ने जनजागृति का कार्य किया।
1. उत्तराखंड में पत्रकारिता का प्रारंभिक चरण
क. अंग्रेजी पत्रकारिता का आरंभ
- द हिल्स (The Hills):
- प्रकाशन वर्ष: 1842 (कुछ स्रोतों में 1845 या 1850 भी मिलता है, लेकिन 1842 अधिक मान्य)
- स्थान: मसूरी
- संपादक: जॉन मैकिनन (आयरिश व्यक्ति)
- भाषा: अंग्रेजी
- विशेष: यह उत्तराखंड का प्रथम ज्ञात समाचार पत्र था। जॉन मैकिनन ने ही मसूरी में उत्तराखंड की पहली प्रिंटिंग प्रेस (मसूरी प्रेस) भी स्थापित की। यह पत्र 1850 के आसपास बंद हो गया।
- मेफिसलाइट (The Mofussilite):
- प्रकाशन वर्ष: 1845 (या 1850 के आसपास)
- स्थान: संभवतः मसूरी या आगरा (बाद में कलकत्ता से भी प्रकाशित)
- संपादक: जॉन लैंग
- भाषा: अंग्रेजी
- विशेष: यह पत्र भी उत्तराखंड क्षेत्र से संबंधित प्रारंभिक अंग्रेजी पत्रों में गिना जाता है।
- द ईगल (The Eagle):
- प्रकाशन वर्ष: 1878
- स्थान: अल्मोड़ा
- संपादक: मोटर्न
- भाषा: अंग्रेजी
ख. हिन्दी पत्रकारिता का उदय
- समय विनोद:
- प्रकाशन वर्ष: 1868
- स्थान: जसपुर (तत्कालीन नैनीताल जिला, अब ऊधम सिंह नगर)
- संपादक: जयदत्त जोशी
- भाषा: हिन्दी (और उर्दू में भी कुछ अंश)
- विशेष: इसे उत्तराखंड का पहला हिन्दी समाचार पत्र माना जाता है। यह पाक्षिक पत्र था और 1877-78 के आसपास बंद हो गया। इसने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट का भी सामना किया।
2. कुमाऊँ में पत्रकारिता का विकास
- अल्मोड़ा अखबार:
- प्रकाशन वर्ष: 1871 (डिबेटिंग क्लब, अल्मोड़ा द्वारा स्थापित)
- स्थान: अल्मोड़ा
- संस्थापक/संरक्षक: भीम सिंह (डिबेटिंग क्लब के)
- प्रथम संपादक: पं. बुद्धिबल्लभ पंत
- अन्य संपादक: मुंशी इम्तियाज अली, जीवानंद जोशी, सदानंद सनवाल, विष्णुदत्त जोशी, बद्री दत्त पांडे आदि।
- विशेष: यह कुमाऊँ का एक अत्यंत प्रभावशाली और दीर्घजीवी पत्र रहा। 1913 में बद्री दत्त पांडे इसके संपादक बने और उन्होंने इसे राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा। ब्रिटिश नीतियों की तीखी आलोचना के कारण 1918 में यह बंद हो गया। इसका रजिस्ट्रेशन नंबर 10 था।
- शक्ति:
- प्रकाशन वर्ष: 15 अक्टूबर 1918 (विजयादशमी के दिन)
- स्थान: अल्मोड़ा (देशभक्त प्रेस से)
- संस्थापक/संपादक: बद्री दत्त पांडे (अल्मोड़ा अखबार बंद होने के बाद)
- अन्य संपादक: विक्टर मोहन जोशी, दुर्गादत्त पांडे, मनोहर पंत, रामसिंह धौनी आदि।
- विशेष: यह साप्ताहिक पत्र राष्ट्रीय आंदोलन, कुली बेगार उन्मूलन और सामाजिक सुधारों का मुखर प्रहरी बना।
- कुमाऊँ कुमुद:
- प्रकाशन वर्ष: 1922 (पहले ‘जिला समाचार’ या ‘डिस्ट्रिक्ट गजट’ नाम से, 1925 से कुमाऊँ कुमुद)
- स्थान: अल्मोड़ा
- संपादक: पूर्ण चन्द्र, प्रेम बल्लभ जोशी, बसंत कुमार जोशी आदि।
- विशेष: इसने स्वतंत्रता की चाह और फासिज्म का दिवाला जैसे लेख प्रकाशित किए।
- स्वाधीन प्रजा:
- प्रकाशन वर्ष: 1930-33
- स्थान: अल्मोड़ा
- संपादक: विक्टर मोहन जोशी
- विशेष: इस साप्ताहिक पत्र ने झंडा सत्याग्रह और जंगलात की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया।
- समता:
- प्रकाशन वर्ष: 1934 (1 जून से)
- स्थान: अल्मोड़ा
- संपादक: हरिप्रसाद टम्टा (बाद में उनकी पुत्री लक्ष्मी देवी टम्टा ने भी संपादन किया)
- विशेष: यह पत्र दलितों के उत्थान और सामाजिक समानता को समर्पित था।
- अन्य प्रमुख पत्र (कुमाऊँ):
- कूर्मांचल समाचार (अल्मोड़ा, 1893-1904)
- बाजार बंधु (हस्तलिखित साप्ताहिक, अल्मोड़ा, 1913)
- स्वर्गभूमि (हल्द्वानी, 1934, संपादक: देवकीनन्दन ध्यानी)
- नटखट (बाल-साहित्य पत्र, अल्मोड़ा, 1935, संपादक: मदन मोहन अग्रवाल)
- जागृत जनता (हल्द्वानी, 1939, संपादक: पीताम्बर पांडे)
- पताका (अल्मोड़ा, 1939, संपादक: सोबन सिंह जीना)
- प्रजाबंधु (रानीखेत, 1947-48, संपादक: जयदत्त वैला ‘वकील’)
- पर्वतीय (राज्य का प्रथम दैनिक पत्र, नैनीताल, 1953, संपादक: विष्णुदत्त उनियाल)
3. गढ़वाल में पत्रकारिता का विकास
- गढ़वाल समाचार:
- प्रकाशन वर्ष: 1902 (मई)
- स्थान: लैंसडाउन (पौड़ी गढ़वाल)
- संपादक: पं. गिरिजादत्त नैथानी
- विशेष: यह गढ़वाल का प्रथम हिन्दी मासिक समाचार पत्र था। लगभग दो वर्ष बाद बंद हो गया।
- गढ़वाली:
- प्रकाशन वर्ष: 1905 (मई)
- स्थान: देहरादून (गढ़वाल यूनियन के प्रयासों से)
- संपादक: गिरिजा दत्त नैथानी, तारादत्त गैरोला, विश्वंभर दत्त चंदोला (चंदोला जी ने 1916-1952 तक लंबे समय तक संपादन किया और उन्हें गढ़वाल में पत्रकारिता का भीष्म पितामह कहा जाता है)।
- विशेष: यह गढ़वाली भाषा का प्रथम मासिक पत्र था। इसने सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका रजिस्ट्रेशन नंबर A304 था।
- विशाल कीर्ति:
- प्रकाशन वर्ष: 1913
- स्थान: पौड़ी (बदरी केदारेश्वर प्रेस से)
- संपादक: सदानंद कुकरेती (प्रकाशक: ब्रह्मानंद थपलियाल)
- विशेष: यह गढ़वाली भाषा का प्रथम पत्र माना जाता है (गढ़वाली मुख्यतः गढ़वाली में था)।
- पुरुषार्थ:
- प्रकाशन वर्ष: 1918-1923 (कुछ स्रोतों में 1917 से)
- स्थान: दुगड्डा (पौड़ी गढ़वाल)
- संपादक: गिरिजादत्त नैथानी
- विशेष: इस मासिक पत्र ने अल्मोड़ा अखबार बंद होने पर टिप्पणी की थी: “एक फायर के तीन शिकार, कुली, मुर्गी और अल्मोड़ा अखबार।”
- तरुण कुमाऊँ:
- प्रकाशन वर्ष: 1922
- स्थान: लैंसडाउन
- संपादक: बैरिस्टर मुकुन्दी लाल
- विशेष: यह पत्र तुर्की के युवा तुर्क आंदोलन से प्रभावित था।
- अभय:
- प्रकाशन वर्ष: 1922
- स्थान: देहरादून
- संपादक: स्वामी विचारानंद सरस्वती
- विशेष: यह साप्ताहिक राष्ट्रीय पत्रिका थी।
- कर्मभूमि:
- प्रकाशन वर्ष: 1939
- स्थान: लैंसडाउन
- संपादक: भैरव दत्त धूलिया और भक्तदर्शन
- विशेष: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जनजागरण में सक्रिय।
- युगवाणी:
- प्रकाशन वर्ष: 15 अगस्त 1947
- स्थान: देहरादून
- संपादक: भगवती प्रसाद पांथरी, आचार्य गोपेश्वर कोठियाल
- विशेष: इसे टिहरी राज्य प्रजामंडल के मुखपत्र के रूप में भी जाना जाता था, इसलिए इसे ‘रियासती पत्र’ भी कहा गया।
- अन्य प्रमुख पत्र (गढ़वाल):
- क्षत्रीय वीर (पौड़ी, 1922)
- गढ़देश समाचार (कोटद्वार, 1928-29, संपादक: कृपाराम मिश्र ‘मनहर’)
- संदेश (कोटद्वार, 1938, संपादक: कृपाराम मिश्र ‘मनहर’, हरिराम मिश्र)
- समाज (चमोली, 1942, संपादक: रामप्रसाद बहुगुणा)
- हिमाचल (साप्ताहिक, मसूरी, 25 जुलाई 1948, संपादक: सत्यप्रसाद रतूड़ी)
4. पत्रकारिता में महिलाओं का योगदान
उत्तराखंड की पत्रकारिता में महिलाओं ने भी समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। लक्ष्मी देवी टम्टा ने “समता” के संपादन में सहयोग किया। स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक आंदोलनों में महिलाओं की सक्रियता पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से भी मुखरित हुई।
5. पत्रकारिता के विकास हेतु संस्थान एवं प्रयास
- राज्य में विभिन्न पत्रकारिता प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किए गए हैं।
- उत्तराखंड सरकार द्वारा समय-समय पर पत्रकारों के कल्याण और पत्रकारिता के विकास हेतु योजनाएँ लाई जाती हैं।
- डिजिटल मीडिया के आगमन से पत्रकारिता का स्वरूप बदला है, और कई न्यूज पोर्टल और वेब चैनल उत्तराखंड से संचालित हो रहे हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड में पत्र-पत्रिकाओं का इतिहास गौरवशाली रहा है। इन्होंने न केवल सूचना और मनोरंजन का माध्यम बनने का कार्य किया, बल्कि समाज को दिशा देने, अधिकारों के लिए संघर्ष करने और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में भी अमूल्य योगदान दिया है। आधुनिक युग में डिजिटल मीडिया की चुनौतियों और संभावनाओं के बीच उत्तराखंड की पत्रकारिता निरंतर विकसित हो रही है।