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खनन और पर्यावरण (Mining and Environment)

उत्तराखंड: खनन और पर्यावरण (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

उत्तराखंड एक पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हिमालयी राज्य है। यहाँ खनिज संपदा का विदोहन आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है, परंतु इसके साथ ही पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को समझना और उन्हें कम करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

उत्तराखंड में खनन और पर्यावरण

कुछ त्वरित तथ्य (Quick Facts):
  • उत्तराखंड की नाजुक पर्वतीय पारिस्थितिकी खनन गतिविधियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
  • अवैध और अवैज्ञानिक खनन पर्यावरणीय समस्याओं को और गंभीर बना देता है।
  • सतत खनन (Sustainable Mining) की अवधारणा का पालन करना राज्य के लिए महत्वपूर्ण है।
  • नदी तल खनन (रिवर बेड माइनिंग) विशेष रूप से पर्यावरणीय चिंताओं का एक प्रमुख विषय रहा है।

खनन के पर्यावरणीय प्रभाव

उत्तराखंड में खनन गतिविधियों, विशेषकर अनियंत्रित खनन, के निम्नलिखित प्रमुख पर्यावरणीय दुष्प्रभाव हो सकते हैं:

1. वनों की कटाई और जैव विविधता का नुकसान

खनन पट्टों के लिए और खनन क्षेत्रों तक पहुँच मार्ग बनाने के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की जाती है। इससे न केवल महत्वपूर्ण वन संपदा नष्ट होती है, बल्कि वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास भी छिन जाते हैं, जिससे जैव विविधता पर गंभीर संकट उत्पन्न होता है। कई दुर्लभ और स्थानिक प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुँच सकती हैं।

2. भूस्खलन और मृदा अपरदन

पहाड़ी ढलानों पर खनन गतिविधियाँ, विशेष रूप से विस्फोटकों का उपयोग, भूमि को अस्थिर कर देती हैं। इससे भूस्खलन का खतरा काफी बढ़ जाता है, खासकर बरसात के मौसम में। वनस्पति आवरण के हटने से मृदा अपरदन की दर भी तेज हो जाती है, जिससे उपजाऊ मिट्टी बह जाती है और नदियों में गाद की मात्रा बढ़ जाती है।

3. जल प्रदूषण

खनन क्षेत्रों से निकलने वाला अपशिष्ट जल (Acid Mine Drainage), जिसमें भारी धातुएँ और हानिकारक रसायन हो सकते हैं, आस-पास के जल स्रोतों, नदियों और भूमिगत जल को प्रदूषित कर सकता है। यह न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है बल्कि जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुँचाता है। नदियों में गाद बढ़ने से पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।

4. वायु प्रदूषण

खनन कार्यों, जैसे ड्रिलिंग, ब्लास्टिंग और खनिजों के परिवहन के दौरान धूल के कण और अन्य प्रदूषक वायुमंडल में फैलते हैं। इससे स्थानीय वायु गुणवत्ता खराब होती है और श्वसन संबंधी बीमारियाँ बढ़ सकती हैं।

5. ध्वनि प्रदूषण

खनन में उपयोग होने वाली भारी मशीनरी, क्रशर और विस्फोटकों से अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण होता है। यह स्थानीय निवासियों के शांतिपूर्ण जीवन और वन्यजीवों के व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

6. जल संसाधनों पर दबाव

कुछ खनन प्रक्रियाओं, जैसे अयस्क प्रसंस्करण, में बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। इससे स्थानीय जल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ पानी की पहले से ही कमी है।

7. भू-दृश्य परिवर्तन और सौंदर्य हानि

खनन गतिविधियाँ प्राकृतिक भू-दृश्य को स्थायी रूप से बदल देती हैं। बड़े-बड़े गड्ढे, मलबे के ढेर और नष्ट हुई वनस्पति क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता को कम करते हैं, जिससे पर्यटन पर भी असर पड़ सकता है।

पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रयास और नीतियाँ

खनन के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए उत्तराखंड सरकार और विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों द्वारा कई कदम उठाए गए हैं और नीतियाँ बनाई गई हैं:

  • राज्य खनन नीति (2001): इस नीति में खनिज विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और खनन क्षेत्रों के पुनर्वास पर भी जोर दिया गया है।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA – Environmental Impact Assessment): अधिकांश खनन परियोजनाओं, विशेषकर बड़ी परियोजनाओं के लिए, खनन शुरू करने से पहले EIA कराना अनिवार्य है। इसके तहत परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है और उन्हें कम करने के उपाय सुझाए जाते हैं।
  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980: यह अधिनियम वन भूमि को गैर-वानिकी उद्देश्यों (जैसे खनन) के लिए उपयोग करने को कड़ाई से नियंत्रित करता है। इसके लिए केंद्र सरकार की पूर्वानुमति आवश्यक होती है।
  • नदी तल खनन (River Bed Mining – RBM) पर नियंत्रण: अवैध और अवैज्ञानिक RBM को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। इसमें खनन की गहराई, मात्रा और समय का निर्धारण शामिल है। हालांकि, इन नियमों का प्रभावी कार्यान्वयन एक चुनौती है। ई-नीलामी और ई-रवन्ना जैसी प्रणालियाँ पारदर्शिता लाने और अवैध खनन को नियंत्रित करने के प्रयास हैं।
  • खनन क्षेत्रों का पुनर्वास: खनन समाप्त होने के बाद खनन क्षेत्रों के वैज्ञानिक तरीके से पुनर्वास और पुनर्वनीकरण की योजनाएँ बनाई और लागू की जाती हैं। इसमें समतलीकरण, वृक्षारोपण और जल निकासी का प्रबंधन शामिल है।
  • प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड खनन गतिविधियों से होने वाले जल और वायु प्रदूषण की निगरानी करता है और मानकों का उल्लंघन करने पर कार्रवाई करता है।
  • जन जागरूकता और भागीदारी: स्थानीय समुदायों को खनन के पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूक करना और निर्णय प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है।
महत्वपूर्ण विचार: उत्तराखंड जैसे संवेदनशील राज्य में आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन साधना अत्यंत आवश्यक है। “सतत खनन” (Sustainable Mining) की तकनीकों को अपनाना, जहाँ खनिजों का विदोहन न्यूनतम पर्यावरणीय क्षति के साथ किया जाए, भविष्य की कुंजी है।

निष्कर्ष (Conclusion)

उत्तराखंड में खनिज संसाधन आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनका विदोहन पर्यावरणीय स्थिरता की कीमत पर नहीं होना चाहिए। सरकार, खनन उद्योग और स्थानीय समुदायों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि खनन गतिविधियाँ जिम्मेदार तरीके से और पर्यावरणीय नियमों का पालन करते हुए की जाएं, ताकि राज्य की अमूल्य प्राकृतिक धरोहर को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखा जा सके।

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