उत्तराखंड का आधुनिक इतिहास गोरखा शासन के अंत से शुरू होकर ब्रिटिश शासन, टिहरी रियासत के विकास और अंततः पृथक राज्य आंदोलन तक फैला हुआ है। यह कालखंड राज्य के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तनों का साक्षी रहा है।
1. ब्रिटिश शासन का आगमन (Arrival of British Rule)
आंग्ल-नेपाल युद्ध के बाद उत्तराखंड में ब्रिटिश सत्ता का विस्तार हुआ।
1.1. आंग्ल-नेपाल युद्ध (1814-1816 ई.)
- कारण: गोरखाओं का विस्तारवादी रवैया और गोरखपुर के बुटवल प्रांत में ईस्ट इंडिया कंपनी से 200 ग्राम छीनना।
- युद्ध की घोषणा: लॉर्ड हेस्टिंग्स (लॉर्ड मौयरा) ने 1 नवंबर 1814 को गोरखों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की।
- प्रमुख घटनाएँ:
- देहरादून के कलंगा किले/नालापानी किले पर हमला, गोरखा नेतृत्व बलभद्र सिंह थापा। 31 अक्टूबर 1814 ई. को ब्रिटिश सेनापति जिलेस्पी नालापानी दुर्ग में मारा गया।
- 23 अप्रैल 1815 को गणनाथ-डांडा के युद्ध में गोरखा सेनापति हस्तीदल चौतरिया मारा गया।
- 27 अप्रैल 1815 में ब्रिटिश सेनापति गार्डनर व गोरखा सूबेदार बमशाह के बीच संधि हुई, जिसके तहत गोरखों को कुमाऊँ छोड़ने का प्रस्ताव था।
- 15 मई 1815 ई. को मलॉवगढ़ की संधि अमर सिंह थापा व ऑक्टरलोनी के बीच हुई।
- संगोली की संधि: 2 दिसंबर 1815 ई. को गजराज मिश्र के साथ कर्नल ब्रेदशॉ ने संधि की। 4 मार्च 1816 ई. को नेपाल सरकार ने इसे स्वीकार किया।
- परिणाम: टिहरी रियासत सुदर्शन शाह को प्रदान की गई और शेष क्षेत्र को नॉन-रेगुलेशन प्रांत बनाया गया।
1.2. ब्रिटिश कुमाऊँ और ब्रिटिश गढ़वाल
- विभाजन: अलकनंदा नदी के पूर्व का भूभाग ब्रिटिश कुमाऊँ और पश्चिमी भाग टिहरी गढ़वाल (रियासत) कहलाया।
- प्रथम कमिश्नर: एडवर्ड गार्डनर को मई 1815 ई. में ब्रिटिश कुमाऊँ का प्रथम कमिश्नर बनाया गया।
- नॉन-रेगुलेशन प्रांत: प्रारंभ में ब्रिटिश कुमाऊँ पर नॉन-रेगुलेशन या गैर विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन चलाया गया।
2. ब्रिटिश कमिश्नर और उनके कार्य (British Commissioners and their Works)
ब्रिटिश शासन के दौरान कई कमिश्नरों ने उत्तराखंड के प्रशासन और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2.1. विलियम ट्रेल (1816-1835 ई.)
- दूसरा कमिश्नर: विलियम ट्रेल (जुलाई 1817 से अक्टूबर 1835 तक)। अप्रैल 1816 से जुलाई 1817 ई. तक कार्यवाहक कमिश्नर।
- वास्तविक संस्थापक: कुमाऊँ में ब्रिटिश शासन का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- प्रशासनिक सुधार: कुमाऊँ को 26 परगनों में विभक्त किया। 1819 ई. में 9 पटवारी पद सृजित किए।
- न्याय व्यवस्था: “न वकील, न अपील, न दलील” वाली व्यवस्था।
- भूमि बंदोबस्त: 1816-33 ई. तक कुल 7 बंदोबस्त कराए। 1823 ई. में पंचशाला बंदोबस्त (अस्सी साला बंदोबस्त)।
- सामाजिक सुधार: 1824 ई. में दास-दासी बेचने की प्रथा समाप्त। 1829 ई. में सती प्रथा समाप्त।
- अन्य कार्य: हरिद्वार से बद्रीनाथ-केदारनाथ तक सड़क निर्माण। 1815 ई. में अल्मोड़ा व श्रीनगर के बीच डाक सेवा शुरू की। 1816 ई. में अल्मोड़ा जेल की स्थापना। 1822 ई. में कुली बेगार प्रथा के विकल्प के रूप में खच्चर सेना की स्थापना। 1824 ई. में सरकारी खजाने में नियंत्रण के लिए डबल लॉक व्यवस्था लागू की।
2.2. सर हेनरी रैम्जे (1856-1884 ई.)
- कार्यकाल: कुमाऊँ में विभिन्न पदों पर 44 वर्ष तक रहे, जिसमें 28 वर्ष कमिश्नर के रूप में कार्य किया।
- उपनाम: कुमाऊँ का रामजी साहब, बेताज बादशाह व मुकुटरहित राजा।
- महत्वपूर्ण कार्य:
- 1857 के सैन्य विद्रोह के समय कुमाऊँ कमिश्नer थे।
- 1858 ई. में ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर 1861 ई. में जंगलात बंदोबस्त कराया।
- विकेट बंदोबस्त (1863-73 ई.): पहली बार वैज्ञानिक तरीके से भूमि बंदोबस्त हुआ।
- 1874 ई. में राजस्व पुलिस व्यवस्था की शुरुआत की।
- नैनीताल को स्कूली शिक्षा के केंद्र के रूप में विकसित किया।
- तराई भाबर के विकास हेतु नहरों का निर्माण एवं 1883 ई. में तराई इम्प्रूवमेंट फण्ड की स्थापना की।
- उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन का प्रथम प्रयास किया।
2.3. अन्य प्रमुख कमिश्नर
- जार्ज थामस लुशिंगटन (1838-1848 ई.): नैनीताल नगरीकरण का कार्य शुरू हुआ।
- जॉन हैलिट बैटन (1848-56 ई.): इनके काल को कुमाऊँ में ब्रिटिश शासन का स्वर्णयुग माना जाता है। बीस साला बंदोबस्त कराया।
- के.एल. मेहता (1947-48 ई.): ब्रिटिश कुमाऊँ के प्रथम भारतीय कमिश्नर।
2.4. ब्रिटिश काल में शिक्षा व्यवस्था
- सर्वप्रथम अंग्रेजों ने 1840 ई. में श्रीनगर में एलिमेंटरी वर्नाक्यूलर स्कूल की स्थापना की।
- 1854 ई. में शिक्षा के लिए पृथक विभाग का गठन किया गया।
- 1871 ई. में रैम्जे हाई स्कूल की स्थापना अल्मोड़ा में की गई, जिसे अल्मोड़ा में अंग्रेजी शिक्षा का श्रीगणेश करने का श्रेय जाता है।
- 1877 ई. में स्टोनले स्कूल की स्थापना हुई, जिसे वर्तमान में बिड़ला विद्या मंदिर के नाम से जानते हैं।
- ख्याली रमोड़ा: ईसाई धर्म की शिक्षा लेने वाला प्रथम गढ़वाली, जिसे गढ़वाल का पीटर कहा जाता है।
2.5. ब्रिटिश काल में वन प्रबंधन
- सर्वप्रथम 1826 ई. में ट्रेल ने सरकारी उपयोग हेतु थापला भूमि को आरक्षित किया एवं साल वृक्ष काटने पर प्रतिबंध लगाया।
- ब्रिटिश सरकार ने 1864 ई. में जर्मन विशेषज्ञों की मदद से वन विभाग की स्थापना की। प्रथम महानिरीक्षक डिट्रिच ब्रैंडिस।
- 1878 ई. में भारतीय वन अधिनियम पारित किया गया, जिसके तहत वनों को आरक्षित एवं संरक्षित करने का प्रावधान था।
- 1890 ई. में चीड़ वृक्षों से लीसा टिपान का कार्य शुरू हुआ।
- 1931 ई. को कुमाऊँ में वन पंचायतों का गठन किया गया।
2.6. ब्रिटिश काल में चाय की खेती
- 1824 ई. में ब्रिटिश लेखक बिशप हेबर ने कुमाऊँ में चाय की खेती करने का सुझाव दिया।
- उत्तराखंड में चाय का उत्पादन सर्वप्रथम 1830 में प्रारंभ हुआ।
- 1844 ई. को जेमिसन ने देहरादून में सरकारी चाय बगान की शुरुआत की।
- 1850 ई. में चीनी चाय विशेषज्ञ एसाई वांग गढ़वाल आया था।
3. टिहरी रियासत (Tehri Princely State)
गोरखाओं की पराजय के बाद गढ़वाल क्षेत्र में टिहरी रियासत की स्थापना हुई।
3.1. राजा सुदर्शन शाह (1815-1859 ई.)
- स्थापना: 28 दिसंबर 1815 को टिहरी में अपनी राजधानी बनायी।
- संधि: 4 मार्च 1820 ई. में सुदर्शन शाह एवं ब्रिटिश सरकार के बीच संधि हुई, जिसमें टिहरी गढ़वाल पर सुदर्शन शाह के वंशजों का अधिकार स्वीकार किया गया।
- कला प्रेमी: मूरक्राफ्ट ने इन्हें कलाविदों का शिरोमणि कहा।
- रचना: सभासार ग्रंथ (ब्रजभाषा में) की रचना की।
- प्रशासन: ग्रामों की व्यवस्था के लिए कमीण व सयाणा की नियुक्ति की।
- 1857 की क्रांति: ब्रिटिश सरकार की मदद की।
3.2. राजा प्रताप शाह (1871-1886 ई.)
- स्थापना: 1877 ई. में प्रतापनगर नामक नगर की नींव रखी।
- शिक्षा: टिहरी में अंग्रेजी शिक्षा की नींव रखी। 1883 ई. में एंग्लो-वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल की स्थापना की।
- प्रशासनिक सुधार: टिहरी में सर्वप्रथम पुलिस विभाग की स्थापना की। 1873 ई. में ज्यूला पैमाइश नामक भूमि व्यवस्था करवायी।
- सामाजिक सुधार: 1885 ई. में खेण (बेगार), बिशाह (अन्न कर) और पाला (दूध/दही कर) जैसी प्रथाओं को समाप्त किया।
3.3. राजा कीर्ति शाह (1886-1913 ई.)
- शिक्षा: 1891 ई. में प्रताप हाईस्कूल को उच्चीकृत किया। 1909 ई. में हिवेट संस्कृत पाठशाला बनवाई।
- विकास कार्य: टिहरी में वेधशाला का निर्माण करवाया। नगरपालिका की स्थापना की। जनता को पहली बार बिजली की सुविधा प्रदान की। कृषि बैंक की स्थापना की (बैंक ऑफ गढ़वाल)। 1897 ई. में 110 फीट ऊँचा घंटाघर का निर्माण करवाया।
- सम्मान: ब्रिटिश सरकार ने 1898 ई. में कम्पेनियन ऑफ इंडिया की उपाधि दी। 1901 ई. में नाइट कमांडर की उपाधि दी गई। 1903 ई. में सर या KCSI की उपाधि से विभूषित।
- अन्य: मई 1902 ई. में स्वामी रामतीर्थ टिहरी गढ़वाल आए।
3.4. राजा नरेन्द्र शाह (1913-1946 ई.)
- स्थापना: 1921 ई. में नरेन्द्र नगर की स्थापना की और 1925 ई. में राजधानी स्थानांतरित की।
- सुधार: नरेन्द्र हिन्दू लॉ को राज्य के न्यायालयों में संहिता के रूप में प्रयोग किया गया। 1920 ई. में बरा व बेगार जैसी कुप्रथाओं के उन्मूलन की घोषणा की। 1923 ई. में सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना की। 1938 में टिहरी हाईकोर्ट की स्थापना की।
- कलंकपूर्ण घटनाएँ:
- 30 मई 1930 ई. को तिलाड़ी कांड (दीवान चक्रधर जुयाल के आदेश पर गोलीबारी)।
- 25 जुलाई 1944 ई. को श्रीदेव सुमन जी की भूख हड़ताल से मृत्यु।
- प्रजामंडल: 23 जनवरी 1939 ई. को देहरादून में टिहरी राज्य प्रजामंडल की स्थापना हुई।
3.5. राजा मानवेन्द्र शाह (1946-1949 ई.)
- अंतिम शासक: टिहरी रियासत के अंतिम राजा।
- विलय: 1 अगस्त 1949 ई. को टिहरी रियासत का भारत में विलयकरण हुआ, जो संयुक्त प्रांत का 50वां एवं कुमाऊँ मंडल का चौथा जिला बना।
- प्रथम हस्ताक्षरकर्ता: टिहरी रियासत विलयीकरण में सर्वप्रथम हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति परिपूर्णानंद पैन्यूली थे।
- लोकसभा सांसद: राजमाता कमलेन्दुमति शाह प्रथम लोकसभा में टिहरी से सांसद चुनी गईं। मानवेन्द्र शाह 1957 से 2004 तक टिहरी गढ़वाल से 8 बार सांसद रहे।
4. स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तराखंड की भूमिका (Role of Uttarakhand in Freedom Movement)
उत्तराखंड ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई।
4.1. प्रारंभिक विद्रोह और चेतना
- 1824 ई. का विद्रोह: रूड़की के कुंजा तालुका से प्रारंभ, नेतृत्व विजय सिंह एवं कल्याण सिंह (कालू एवं बीजा)।
- प्रथम स्वतंत्रता सेनानी: कालू सिंह महरा (1857 ई. में चंपावत में क्रान्तिवीर नामक गुप्त संगठन चलाया)।
- 1857 की क्रांति का प्रभाव: हल्द्वानी में 17 सितंबर 1857 ई. को लगभग 1000 क्रांतिकारियों द्वारा अधिकार कर लिया गया था। नैनीताल के फांसी गदेरा में क्रांतिकारियों को फांसी दी गई।
- राजनीतिक चेतना:
- 1870 ई. में अल्मोड़ा में डिबेटिंग क्लब की स्थापना।
- 1901 ई. में गढ़वाल हितकारिणी सभा (गढ़वाल यूनियन) की स्थापना, श्रेय तारादत गैरोला।
- 1903 ई. को अल्मोड़ा में हैप्पी क्लब की स्थापना, गोविंद बल्लभ पंत तथा हरगोविंद पंत द्वारा।
- 1912 ई. में अल्मोड़ा में कांग्रेस की स्थापना।
- 1916 ई. में कुमाऊँ परिषद की स्थापना, उद्देश्य राजनैतिक, सामाजिक, शिक्षा का विकास। 1926 ई. में कुमाऊँ परिषद का कांग्रेस में विलय।
- 1918 ई. में गढ़वाल कांग्रेस कमेटी का गठन, बैरिस्टर मुकुन्दी लाल व अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा के प्रयासों से।
- अल्मोड़ा अखबार: 1871 ई. में प्रकाशित, जिसने राजनीतिक चेतना फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- शक्ति साप्ताहिक: 1918 ई. में बद्रीदत्त पांडे द्वारा अल्मोड़ा अखबार के बंद होने के बाद शुरू किया गया।
4.2. प्रमुख आंदोलन
- कुली बेगार आंदोलन:
- बेगार प्रथा: ब्रिटिश कुमाऊँ में 1815 ई. से 1921 ई. तक रही।
- कुली एजेंसी: 1908 ई. में जोध सिंह नेगी ने स्थापना की।
- समाप्ति: 13-14 जनवरी 1921 ई. को बद्रीदत्त पांडे, हरगोविंद पंत व चिरंजीलाल के नेतृत्व में बागेश्वर के सरयू नदी के तट पर उत्तरायणी मेले के अवसर पर 40 हजार स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा कुली बेगार न करने की शपथ ली एवं इससे संबंधित सारे रजिस्टर नदी में बहा दिए गए।
- गांधी जी का कथन: महात्मा गांधी ने इसे रक्तहीन क्रांति की संज्ञा दी।
- वन आंदोलन:
- फॉरेस्ट ग्रीवेन्स कमेटी: 13 अप्रैल 1921 ई. में सरकार ने गठन किया, अध्यक्ष पी. विढ़म।
- वन पंचायतें: कमेटी की सिफारिश पर 1925 ई. में वन पंचायतों के गठन का निर्णय लिया गया। 1932 में चमोली जनपद में वन पंचायतों का गठन किया गया।
- प्रमुख क्षेत्र: सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय वन आंदोलन का प्रमुख क्षेत्र सल्ट था।
- नमक सत्याग्रह (सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान):
- नेतृत्व: कुमाऊँ में गोविंद बल्लभ पंत एवं गढ़वाल में प्रताप सिंह नेगी को सौंपा गया।
- घटनाएँ: 23 मई 1930 को गोविंद बल्लभ पंत ने मल्लीताल के रामलीला मैदान में 25 मई को नमक बनाने की घोषणा की। 27 मई 1930 ई. में नैनीताल में बद्रीदत्त पांडे ने नमक बेचा।
- गांधी जी का आगमन: 14 जून 1929 ई. में गांधी जी ने पहली बार कुमाऊँ का दौरा किया। बागेश्वर के कौसानी में 12 दिन के प्रवास के दौरान अनासक्ति योग नाम से गीता की भूमिका लिखी। कौसानी को भारत का स्विटजरलैंड कहा।
- पेशावर कांड (23 अप्रैल 1930 ई.)
- वीर चंद्र सिंह गढ़वाली: इन्होंने निहत्थे अफगान सैनिकों पर गोली चलाने से मना कर दिया।
- सेना: 2/18 गढ़वाल राइफल के 72 सैनिक पेशावर के किस्साखानी बाजार में तैनात थे।
- कमांड: अंग्रेज कमांडर रिकेड ने गोली चलाने का आदेश दिया, जिसके जवाब में वीरचंद्र सिंह गढ़वाली ने कहा, “गढ़वाली सीज फायर।”
- परिणाम: मोतीलाल नेहरू ने 23 अप्रैल के दिन को गढ़वाल दिवस मनाने की घोषणा की।
- पैरवी: फौजी अदालत में गढ़वाली सैनिकों की तरफ से पैरवी मुकुन्दी लाल ने की।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942 ई.)
- उत्राखंड में भी इस आंदोलन का व्यापक प्रभाव देखा गया।
- सल्ट की घटना: 5 सितंबर 1942 को सल्ट (अल्मोड़ा) में अंग्रेजों द्वारा निहत्थी जनता पर गोलीबारी की गई, जिसमें गंगा राम, खीमा देव, चूड़ामणि और बहादुर सिंह शहीद हुए। गांधी जी ने इसे “कुमाऊँ का बारदोली” कहा।
- डोला-पालकी आंदोलन:
- उद्देश्य: दलित शिल्पकारों (जिन्हें ‘शिल्पकार’ कहा जाता था) को विवाह के अवसर पर डोला-पालकी में बैठने का अधिकार दिलाना।
- नेतृत्व: जयानंद भारती ने 1930 के दशक में इस आंदोलन का नेतृत्व किया।
- परिणाम: लंबे संघर्ष के बाद शिल्पकारों को यह अधिकार प्राप्त हुआ।
4.3. प्रमुख व्यक्तित्व और उनके योगदान
- बद्रीदत्त पांडे: “कुमाऊँ केसरी” के नाम से प्रसिद्ध। कुली बेगार आंदोलन के प्रमुख नेता।
- गोविंद बल्लभ पंत: संयुक्त प्रांत के प्रथम मुख्यमंत्री। कुमाऊँ परिषद और हैप्पी क्लब की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका।
- अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा: “गढ़ केसरी” के नाम से विख्यात। गढ़वाल कांग्रेस कमेटी के गठन में सक्रिय।
- मुकुन्दी लाल: बैरिस्टर और स्वतंत्रता सेनानी। पेशावर कांड के सैनिकों की पैरवी की। स्वराज दल के प्रमुख नेता।
- श्रीदेव सुमन: टिहरी रियासत में जन आंदोलन के प्रणेता। 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद शहीद हुए।
5. पृथक राज्य आंदोलन (Separate State Movement)
स्वतंत्रता के बाद उत्तराखंड को पृथक राज्य बनाने की मांग ने जोर पकड़ा।
- प्रारंभिक मांग: 1938 ई. में श्रीनगर (गढ़वाल) में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने पृथक राज्य की मांग उठाई।
- प्रमुख संगठन:
- 1950 ई. में पर्वतीय विकास जन समिति।
- 1967 ई. में उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) की स्थापना।
- उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति।
- तीव्र आंदोलन: 1990 के दशक में आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया।
- खटीमा कांड (1 सितंबर, 1994): राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस फायरिंग, कई शहीद।
- मसूरी कांड (2 सितंबर, 1994): मसूरी में पुलिस फायरिंग, कई शहीद।
- मुजफ्फरनगर कांड (2 अक्टूबर, 1994): दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर में बर्बर लाठीचार्ज और गोलीबारी, कई आंदोलनकारी शहीद और घायल।
- रामपुर तिराहा कांड: मुजफ्फरनगर कांड को ही रामपुर तिराहा कांड के नाम से भी जाना जाता है।
- राज्य का गठन: इन घटनाओं ने आंदोलन को और तेज किया, जिसके परिणामस्वरूप 9 नवंबर, 2000 को भारतीय गणतंत्र के 27वें राज्य के रूप में उत्तराखंड का गठन हुआ।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड का आधुनिक इतिहास ब्रिटिश उपनिवेशवाद के प्रभाव, टिहरी रियासत के स्वायत्त शासन, और एक स्वतंत्र राज्य के लिए अथक संघर्ष की गाथा है। इस काल में कई सामाजिक सुधार हुए, शिक्षा का प्रसार हुआ और राजनीतिक चेतना का विकास हुआ। कुली बेगार, वन आंदोलन, नमक सत्याग्रह और पृथक राज्य आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण संघर्षों ने उत्तराखंड के लोगों की दृढ़ता और बलिदान को दर्शाया। अंततः, इन प्रयासों के परिणामस्वरूप उत्तराखंड एक अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, जो अपनी समृद्ध विरासत और भविष्य की आकांक्षाओं के साथ आगे बढ़ रहा है।
Instructions
- इस Quiz में Topic से संबंधित प्रश्न हैं।
- प्रत्येक प्रश्न के लिए आपको सीमित समय मिलेगा।
- एक बार उत्तर सबमिट करने के बाद आप उसे बदल नहीं सकते।
- आप किसी भी प्रश्न पर जाने के लिए साइडबार नेविगेशन का उपयोग कर सकते हैं।
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