उत्तराखंड, जिसे “देवभूमि” के रूप में जाना जाता है, अपनी भव्य और विशाल पर्वत श्रृंखलाओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है। ये पर्वत न केवल राज्य की भौगोलिक पहचान हैं, बल्कि यहाँ की संस्कृति, पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था और आध्यात्मिकता के भी आधार स्तंभ हैं। हिमालय की ये श्रृंखलाएँ विभिन्न ऊँचाइयों और विशेषताओं वाली हैं, जो उत्तराखंड को एक अद्वितीय पर्वतीय राज्य बनाती हैं।
उत्तराखंड के पर्वत: एक सिंहावलोकन
- उत्तराखंड का अधिकांश भूभाग (लगभग 86%) पर्वतीय है।
- राज्य में हिमालय की तीन प्रमुख श्रृंखलाएँ विस्तृत हैं: वृहद् हिमालय (हिमाद्रि), मध्य हिमालय (लघु हिमालय), और शिवालिक श्रेणी (बाह्य हिमालय)।
- उत्तराखंड भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी नंदा देवी पश्चिम (7817 मीटर) का घर है।
- यहाँ अनेक महत्वपूर्ण हिमनद (ग्लेशियर), दर्रे (पास), बुग्याल (अल्पाइन चारागाह) और पवित्र धार्मिक स्थल स्थित हैं।
- पर्वत श्रृंखलाएँ राज्य की जलवायु, नदी प्रणालियों और जैव विविधता को गहराई से प्रभावित करती हैं।
1. उत्तराखंड की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएँ
क. वृहद् हिमालय / हिमाद्रि / महान हिमालय (Greater Himalayas / Himadri)
- औसत ऊँचाई: 4500 मीटर से 7817 मीटर।
- विस्तार: यह राज्य की सबसे उत्तरी और सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है। यह उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिलों में फैली हुई है।
- विशेषताएँ:
- यहाँ राज्य की सर्वोच्च पर्वत चोटियाँ स्थित हैं, जिनमें नंदा देवी, कामेट, बंदरपूँछ, चौखम्बा, त्रिशूल आदि प्रमुख हैं।
- यह क्षेत्र अधिकांशतः वर्षभर बर्फ से ढका रहता है।
- प्रमुख हिमनद जैसे गंगोत्री, यमुनोत्री, पिंडारी, मिलम इसी श्रृंखला में स्थित हैं।
- यहाँ भोटिया जनजाति का निवास है, जो ऋतु-प्रवास करती है।
- वनस्पति विरल होती है, ऊँचाई पर अल्पाइन घास के मैदान (बुग्याल) पाए जाते हैं।
- यह श्रृंखला मुख्य केंद्रीय भ्रंश (Main Central Thrust – MCT) द्वारा मध्य हिमालय से अलग होती है।
ख. मध्य हिमालय / लघु हिमालय / हिमाचल श्रेणी (Middle Himalayas / Lesser Himalayas)
- औसत ऊँचाई: 1200 मीटर से 4500 मीटर।
- विस्तार: यह वृहद् हिमालय के दक्षिण में स्थित है और राज्य के 9 जिलों (चम्पावत, नैनीताल, अल्मोड़ा, चमोली, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून) में विस्तृत है।
- विशेषताएँ:
- यहाँ शीतोष्ण कटिबंधीय जलवायु पाई जाती है।
- प्रमुख पर्यटन स्थल जैसे मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, पौड़ी, चकराता इसी श्रेणी में स्थित हैं।
- यहाँ कोणधारी वन (चीड़, देवदार, बांज) और शीतोष्ण घास के मैदान पाए जाते हैं।
- दूधातोली श्रृंखला (उत्तराखंड का पामीर) इसी क्षेत्र का महत्वपूर्ण भाग है, जहाँ से पाँच नदियाँ (पश्चिमी रामगंगा, आटागाड़, पश्चिमी नयार, पूर्वी नयार, वूनो) निकलती हैं।
- इस क्षेत्र में जीवाश्म का अभाव पाया जाता है और यह वलित एवं कायांतरित चट्टानों से निर्मित है।
- यह श्रृंखला मुख्य सीमांत भ्रंश (Main Boundary Fault – MBF) द्वारा शिवालिक श्रेणी से अलग होती है।
ग. शिवालिक श्रेणी / बाह्य हिमालय / उप-हिमालय (Shivalik Range / Outer Himalayas)
- औसत ऊँचाई: 700 मीटर से 1200 मीटर (कहीं-कहीं 1500 मीटर तक)।
- विस्तार: यह हिमालय की सबसे दक्षिणी और सबसे नवीन पर्वत श्रृंखला है। यह राज्य के 7 जिलों (दक्षिणी देहरादून, उत्तरी हरिद्वार, मध्यवर्ती पौड़ी, दक्षिणी अल्मोड़ा, मध्यवर्ती नैनीताल, दक्षिणी टिहरी, चम्पावत) में फैली हुई है।
- विशेषताएँ:
- इसे हिमालय का पाद प्रदेश भी कहा जाता है। इसका प्राचीन नाम मैनाक पर्वत था।
- यहाँ जीवाश्म प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
- यह क्षेत्र असंगठित और मुलायम चट्टानों से बना है, जिससे भूस्खलन का खतरा अधिक रहता है।
- गर्म शीतोष्ण जलवायु और मानसूनी वनों की अधिकता।
- शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच दून घाटियाँ (जैसे देहरादून, कोठारीदून, चौखामदून, पाटलीदून) पाई जाती हैं।
- यह श्रृंखला हिमालयन फ्रंटल फॉल्ट (Himalayan Frontal Fault – HFF) द्वारा गंगा के मैदान से अलग होती है।
घ. ट्रांस हिमालय (Trans Himalayas)
- स्थिति: यह वृहद् हिमालय के उत्तर में स्थित है, जिसका कुछ भाग उत्तराखंड में भी पड़ता है, विशेषकर उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ के तिब्बत सीमा से लगे क्षेत्रों में।
- विशेषताएँ:
- इसे तिब्बती हिमालय या टेथिस हिमालय भी कहा जाता है।
- यहाँ जैक्सर श्रेणी का विस्तार है।
- राज्य के कई महत्वपूर्ण दर्रे (जैसे माणा, नीति, लिपुलेख) इसी क्षेत्र में आते हैं।
- यह क्षेत्र अत्यंत ठंडा और शुष्क होता है, वनस्पति बहुत कम पाई जाती है।
2. उत्तराखंड की प्रमुख पर्वत चोटियाँ (Major Peaks of Uttarakhand)
उत्तराखंड अनेक ऊँची और महत्वपूर्ण पर्वत चोटियों का घर है। कुछ प्रमुख चोटियाँ और उनकी ऊँचाई (मीटर में) तथा स्थिति इस प्रकार हैं:
- नंदा देवी पश्चिम (Nanda Devi West): 7817 मीटर (चमोली) – उत्तराखंड की सर्वोच्च चोटी और भारत की दूसरी सर्वोच्च चोटी (कंचनजंगा के बाद)।
- कामेट (Kamet): 7756 मीटर (चमोली) – राज्य की दूसरी सर्वोच्च चोटी।
- नंदा देवी पूर्व (Nanda Devi East): 7434 मीटर (चमोली-पिथौरागढ़ सीमा)।
- माणा पर्वत (Mana Peak): 7272 मीटर (चमोली)।
- बद्रीनाथ (Badrinath Peak): 7140 मीटर (चमोली)।
- चौखम्बा (Chaukhamba): 7138 मीटर (उत्तरकाशी-चमोली) – गंगोत्री समूह की सबसे ऊँची चोटी।
- त्रिशूल (Trishul): 7120 मीटर (बागेश्वर-चमोली)।
- सतोपंथ (Satopanth): 7074 मीटर (उत्तरकाशी-चमोली)।
- दूनागिरी / द्रोणागिरी (Dunagiri): 7066 मीटर (चमोली)।
- गंगोत्री (Gangotri Peak): 6672 मीटर (उत्तरकाशी)।
- केदारनाथ (Kedarnath Peak): 6940 मीटर (उत्तरकाशी-रुद्रप्रयाग)।
- बंदरपूँछ (Bandarpunch): 6320 मीटर (उत्तरकाशी)।
- पंचाचूली (Panchachuli): 6904 मीटर (मुख्य शिखर) (पिथौरागढ़) – पाँच चोटियों का समूह।
- भागीरथी पर्वत (Bhagirathi Peaks): कई शिखर, सर्वोच्च 6856 मीटर (उत्तरकाशी)।
- नंदा कोट (Nanda Kot): 6861 मीटर (पिथौरागढ़-बागेश्वर)।
- श्रीकंठ (Srikant): 6728 मीटर (उत्तरकाशी)।
- स्वर्गारोहिणी (Swargarohini): 6252 मीटर (उत्तरकाशी) – पांडवों के स्वर्गारोहण से संबंधित।
- यमुनोत्री (Yamunotri Peak): 6400 मीटर (उत्तरकाशी)।
3. पर्वतों का महत्व
- पारिस्थितिक महत्व: जैव विविधता के भंडार, अनेक नदियों के उद्गम स्थल, जलवायु नियामक।
- आर्थिक महत्व: पर्यटन (विशेषकर साहसिक और धार्मिक पर्यटन), वनोपज, जड़ी-बूटियाँ, जलविद्युत उत्पादन।
- सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्व: अनेक पवित्र स्थल, मंदिर, गुफाएँ और आश्रम पर्वतों पर स्थित हैं। ये लोक कथाओं, गीतों और परंपराओं के अभिन्न अंग हैं।
- रणनीतिक महत्व: अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर स्थित होने के कारण देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण।
4. पर्वतीय क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ
- प्राकृतिक आपदाएँ: भूस्खलन, भूकंप, बादल फटना, बाढ़ जैसी आपदाओं की अधिक संभावना।
- आधारभूत संरचना का विकास: दुर्गम भूभाग के कारण सड़क, संचार और अन्य सुविधाओं का विकास चुनौतीपूर्ण।
- पलायन: रोजगार और बेहतर सुविधाओं के अभाव में पर्वतीय क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन।
- पर्यावरणीय दबाव: अनियोजित विकास, पर्यटन का दबाव और जलवायु परिवर्तन से पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड के पर्वत केवल भू-आकृतियाँ नहीं हैं, बल्कि ये राज्य की जीवन रेखा हैं। इनका संरक्षण और सतत विकास उत्तराखंड के भविष्य के लिए सर्वोपरि है। पर्वतीय क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं और संवेदनशील पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए विकास योजनाओं का निर्माण और क्रियान्वयन आवश्यक है।