उत्तराखंड अपनी विशिष्ट भौगोलिक संरचना के कारण विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील है। इन आपदाओं से न केवल जान-माल का नुकसान होता है, बल्कि राज्य के विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन नोट्स का उद्देश्य उत्तराखंड में आने वाली प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं, उनके कारणों और प्रबंधन के प्रयासों को समझना है।
उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएँ
1. आपदा प्रबंधन (Disaster Management)
दैवीय आपदाओं से होने वाले विनाश को पूरी तरह रोक पाना तो संभव नहीं है, लेकिन सुदृढ़ आपदा प्रबंधन से इनसे होने वाली क्षति को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम: भारत में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 को जनवरी 2006 से लागू किया गया।
- राज्य स्तरीय प्रयास: उत्तराखंड देश का प्रथम राज्य है जिसने आपदा प्रबंधन मंत्रालय का गठन किया।
- प्राधिकरण: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है, जबकि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का अध्यक्ष मुख्यमंत्री होता है।
- न्यूनीकरण केंद्र: राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र का गठन किया गया है, जो ऑस्ट्रेलियाई मॉडल पर आधारित है।
- आपातकालीन नंबर: राज्य स्तर पर 1070 तथा जनपद स्तर पर 1077।
- SDRF का गठन: 9 अक्टूबर 2013 को NDRF की तर्ज पर SDRF (राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल) का गठन किया गया।
- जागरूकता: “आपदा प्रबंधन” नामक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन तथा “डांडी-कांठी की गोद मां” फिल्म का निर्माण भूकम्प जागरूकता हेतु किया गया।
- डॉप्लर रडार: मौसम पूर्वानुमानों को सटीक बनाने के लिए टिहरी के सुरकंडा और नैनीताल के मुक्तेश्वर में डॉप्लर रडार स्थापित किए गए हैं।
- सचेत पोर्टल: भूकम्प से बचने या डिजास्टर सम्बन्धी जानकारी हेतु “सचेत” नामक पोर्टल शुरू किया गया।
2. प्रमुख प्राकृतिक आपदाएँ और घटनाएँ
2.1. भूकम्प (Earthquake)
उत्तराखंड हिमालयी क्षेत्र में प्लेटों की गतिशीलता और भ्रंशों की उपस्थिति के कारण भूकम्प के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। राज्य जोन-4 और जोन-5 में आता है।
- संवेदनशील जिले: चमोली और रुद्रप्रयाग भूकम्प की दृष्टि से अतिसंवेदनशील हैं।
- भूकम्पमापी स्टेशन: देहरादून, टिहरी और गरुड़ गंगा (चमोली) में स्थापित।
कुछ प्रमुख भूकम्पीय घटनाएँ:
उत्तरकाशी भूकंप
दिनांक: 22 मई 1803, तीव्रता: 6.0
बद्रीनाथ भूकंप (चमोली)
दिनांक: सितम्बर 1803, तीव्रता: 9.0 (अत्यंत विनाशकारी)
धारचूला भूकंप (पिथौरागढ़)
दिनांक: 28 अक्टूबर 1916, तीव्रता: 7.5
उत्तरकाशी भूकंप
दिनांक: 20 अक्टूबर 1991, तीव्रता: 6.6 (व्यापक क्षति)
चमोली भूकंप (चमोली-रुद्रप्रयाग सीमा)
दिनांक: 29 मार्च 1999, तीव्रता: 6.8 (भारी जन-धन हानि)
रुद्रप्रयाग भूकंप
दिनांक: 6 फरवरी 2017, तीव्रता: 5.8 (दिल्ली तक झटके महसूस किए गए)
2.2. भूस्खलन (Landslide)
पहाड़ी ढलानों की अस्थिरता, भारी वर्षा और अनियोजित निर्माण कार्यों के कारण उत्तराखंड में भूस्खलन एक आम आपदा है।
कुछ प्रमुख भूस्खलन घटनाएँ:
नैनीताल भूस्खलन (अल्मा पहाड़ी)
दिनांक: 18 सितम्बर 1880, विवरण: 151 लोग मारे गए (नैनीताल का सबसे बड़ा भूस्खलन)
तवाघाट भूस्खलन (पिथौरागढ़)
दिनांक: अगस्त 1977, विवरण: व्यापक क्षति
ऊखीमठ भूस्खलन (रुद्रप्रयाग)
दिनांक: 11 अगस्त 1998, विवरण: भारी तबाही
मालपा भूस्खलन (पिथौरागढ़)
दिनांक: 18 अगस्त 1998, विवरण: प्रसिद्ध नृत्यांगना प्रोतिमा बेदी सहित कई लोगों की मृत्यु, ऑपरेशन ब्लू एंजल चलाया गया।
मुनस्यारी भूस्खलन (पिथौरागढ़)
दिनांक: अगस्त 2009, विवरण: व्यापक क्षति
द्रौपदी का डांडा-2 हिमस्खलन (उत्तरकाशी)
दिनांक: अक्टूबर 2022, विवरण: 29 पर्वतारोहियों की मौत (एवरेस्ट विजेता सविता कंसवाल सहित)
2.3. बाढ़ एवं बादल फटना (Floods and Cloudbursts)
मानसूनी वर्षा और बादल फटने की घटनाओं से राज्य की नदियों में अचानक बाढ़ आ जाती है, जिससे भारी तबाही होती है।
कुछ प्रमुख बाढ़/बादल फटने की घटनाएँ:
सतपुली बाढ़ (पूर्वी नयार नदी)
दिनांक: 14 सितम्बर 1951, विवरण: भारी जन-धन हानि
नानक सागर बाँध बाढ़ (ऊधम सिंह नगर)
दिनांक: 8 सितम्बर 1967, विवरण: बाँध टूटने से बाढ़, 80 लोगों की मृत्यु
केदारनाथ आपदा (मंदाकिनी नदी)
दिनांक: 16-17 जून 2013, विवरण: राज्य की सबसे भीषण आपदा, हजारों लोगों की मृत्यु, ऑपरेशन सूर्याहोप।
उत्तरकाशी बाढ़ (अस्सीगंगा)
दिनांक: 2012, विवरण: भारी क्षति
नीति घाटी बाढ़ (चमोली, ऋषिगंगा/धौलीगंगा)
दिनांक: 7 फरवरी 2021, विवरण: ग्लेशियर टूटने से बाढ़, ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट और तपोवन विष्णुगाड प्रोजेक्ट को भारी क्षति।
2.4. वनाग्नि (Forest Fires)
ग्रीष्म ऋतु में शुष्क मौसम और मानवीय लापरवाही के कारण उत्तराखंड के वनों में आग लगने की घटनाएँ आम हैं। इससे वन संपदा और जैव विविधता को भारी नुकसान पहुँचता है।
- कारण: प्राकृतिक (पत्थरों का घर्षण) और मानवीय (जलती माचिस, कृषि अवशेष जलाना)।
- नुकसान: वनस्पति, वन्यजीव, मृदा अपरदन में वृद्धि, जल स्रोतों का सूखना।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड की भौगोलिक संवेदनशीलता इसे विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए मजबूर करती है। इन आपदाओं से निपटने के लिए प्रभावी आपदा प्रबंधन, जनजागरूकता, और सतत विकास नीतियों का क्रियान्वयन अत्यंत आवश्यक है। राज्य सरकार और विभिन्न एजेंसियां इस दिशा में निरंतर प्रयासरत हैं ताकि आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सके और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।