उत्तराखंड में समय-समय पर विभिन्न सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को लेकर जन आंदोलन हुए हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण आंदोलन था “नशा नहीं रोजगार दो” आंदोलन, जिसने राज्य के युवाओं की बेरोजगारी और नशे की बढ़ती समस्या को प्रमुखता से उठाया।
उत्तराखंड में नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन
- यह आंदोलन मुख्य रूप से 1980 और 1990 के दशक में उत्तराखंड क्षेत्र (तत्कालीन उत्तर प्रदेश का भाग) में सक्रिय रहा।
- आंदोलन के प्रमुख नारे थे: “जो शराब पीता है वह परिवार का दुश्मन है, जो शराब बेचता है वह समाज का दुश्मन है और जो शराब बिकवाता है वह देश का दुश्मन है।” “शराब नहीं रोजगार दो” “कमाने वाला खायेगा-लूटने वाला जायेगा” “फौज-पुलिस-संसद-सरकार, इनका पेशा अत्याचार”
- इस आंदोलन ने बेरोजगारी, शराब और अन्य नशीले पदार्थों के बढ़ते प्रचलन तथा सरकारी उदासीनता जैसे मुद्दों को उठाया।
- यह आंदोलन उत्तराखंड राज्य आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले महत्वपूर्ण जनांदोलनों में से एक माना जाता है।
आंदोलन की पृष्ठभूमि
- 1980 के दशक तक उत्तराखंड क्षेत्र में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बन चुकी थी। पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण युवाओं का पलायन हो रहा था।
- इसी समय, क्षेत्र में भी बढ़ रहा था, जिसका युवाओं और समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था।
- सरकारी नीतियों में पर्वतीय क्षेत्रों की उपेक्षा और विकास की धीमी गति से जनता में, विशेषकर युवाओं में, व्यापक असंतोष था।
- शराब माफिया और सरकारी तंत्र के बीच कथित गठजोड़ के विरुद्ध भी लोगों में आक्रोश था।
- इससे पहले भी उत्तराखंड में नशाबंदी आंदोलन (विशेषकर महिलाओं द्वारा) होते रहे थे, जिन्होंने इस आंदोलन के लिए एक आधार तैयार किया।
आंदोलन का स्वरूप और प्रमुख घटनाएँ
- यह आंदोलन मुख्यतः उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी और अन्य छात्र व युवा संगठनों के नेतृत्व में चला।
- विपिन त्रिपाठी, पी.सी. तिवारी, काशी सिंह ऐरी, त्रेपन सिंह चौहान जैसे नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आंदोलनकारियों ने रैलियों, प्रदर्शनों, धरनों, चक्का जाम, और शराब की दुकानों के घेराव जैसे तरीकों का इस्तेमाल किया।
- 1984 में नैनीताल में एक विशाल प्रदर्शन हुआ, जिसे इस आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है।
- आंदोलन के नारे व्यापक रूप से लोकप्रिय हुए और इन्होंने युवाओं को बड़ी संख्या में आकर्षित किया।
- आंदोलन की प्रमुख माँगें थीं:
- पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित करना।
- शराब और अन्य नशीले पदार्थों की बिक्री पर प्रभावी रोक लगाना।
- पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिए ठोस नीतियाँ बनाना।
- इस आंदोलन को महिलाओं का भी व्यापक समर्थन मिला, जो नशे के कारण पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं से जूझ रही थीं।
आंदोलन का महत्व और परिणाम
- इस आंदोलन ने उत्तराखंड में युवाओं की बेरोजगारी और नशे की समस्या को एक प्रमुख राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे के रूप में स्थापित किया।
- इसने राज्य सरकार पर रोजगार सृजन और नशाबंदी की दिशा में कदम उठाने के लिए दबाव बनाया।
- आंदोलन ने उत्तराखंड के लोगों में राजनीतिक चेतना और संगठनात्मक शक्ति का संचार किया।
- यह आंदोलन उत्तराखंड राज्य आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से एक बना, क्योंकि इसने पर्वतीय क्षेत्र की उपेक्षा और विशिष्ट समस्याओं को उजागर किया।
- हालांकि आंदोलन अपने सभी तात्कालिक लक्ष्यों को पूरी तरह प्राप्त नहीं कर सका, लेकिन इसने एक दीर्घकालिक सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव छोड़ा।
- नशे के विरुद्ध जागरूकता और रोजगार की मांग आज भी उत्तराखंड में प्रासंगिक मुद्दे बने हुए हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
“नशा नहीं रोजगार दो” आंदोलन उत्तराखंड के युवाओं द्वारा अपने भविष्य और क्षेत्र के विकास के लिए किया गया एक महत्वपूर्ण संघर्ष था। इसने न केवल तत्कालीन सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को उजागर किया, बल्कि राज्य की राजनीतिक दिशा को भी प्रभावित किया। यह आंदोलन उत्तराखंड के जन आंदोलनों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में याद किया जाता है।