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पुलिस व्यवस्था (Police System in Uttarakhand)

उत्तराखंड में पुलिस व्यवस्था (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

उत्तराखंड में पुलिस व्यवस्था राज्य में कानून और व्यवस्था बनाए रखने, अपराधों की रोकथाम और जांच करने तथा नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है। राज्य की विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों, पर्यटन की अधिकता और सीमावर्ती स्थिति के कारण यहाँ की पुलिस व्यवस्था के समक्ष विशेष चुनौतियाँ भी हैं।

उत्तराखंड में पुलिस व्यवस्था: एक सिंहावलोकन

कुछ त्वरित तथ्य (Quick Facts):
  • उत्तराखंड पुलिस का गठन राज्य गठन के साथ ही 9 नवंबर 2000 को हुआ।
  • राज्य पुलिस का मुख्यालय देहरादून में स्थित है।
  • उत्तराखंड पुलिस का आदर्श वाक्य “मित्रता, सेवा, सुरक्षा” है।
  • राज्य में नागरिक पुलिस (Civil Police) के साथ-साथ राजस्व पुलिस (Patwari Police) की भी एक अनूठी व्यवस्था है, जो पर्वतीय क्षेत्रों में कार्यरत है। वर्तमान में राज्य के लगभग 60-61% भूभाग पर राजस्व पुलिस व्यवस्था लागू है।
  • पुलिस अधिनियम, 1861 अभी भी काफी हद तक राज्य में पुलिसिंग का आधार है, हालांकि उत्तराखंड पुलिस अधिनियम, 2007 (19 मार्च 2008 से लागू) भी पारित किया गया है।

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

क. ब्रिटिश काल से पूर्व

चंद और पंवार राजाओं के समय नियमित पुलिस व्यवस्था का अभाव था। शांति व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी स्थानीय सामंतों, पधानों और थोकदारों की होती थी। अपराध नियंत्रण और न्याय व्यवस्था परंपरागत नियमों पर आधारित थी।

ख. ब्रिटिश काल में पुलिस व्यवस्था का विकास

  • 1815 में कुमाऊँ और गढ़वाल के ब्रिटिश नियंत्रण में आने के बाद धीरे-धीरे आधुनिक पुलिस व्यवस्था की नींव पड़ी।
  • प्रारंभ में, कुमाऊँ कमिश्नर के अधीन सीमित पुलिस बल था।
  • राजस्व पुलिस (पटवारी पुलिस) व्यवस्था का प्रारंभ ब्रिटिश काल में ही हुआ, जिसका श्रेय विलियम ट्रेल को जाता है। उन्होंने 1819 में पटवारी के 9 पद सृजित किए थे। 1874 में अनुसूचित जिला अधिनियम (Scheduled Districts Act) के तहत इस व्यवस्था को औपचारिक रूप दिया गया।
  • पुलिस अधिनियम, 1861 के लागू होने के बाद नियमित पुलिस थानों की स्थापना मैदानी और कुछ प्रमुख पर्वतीय कस्बों में की गई।
  • नैनीताल को 1843 में पुलिस थाना बनाया गया, जो कुमाऊँ का पहला थाना था। अल्मोड़ा में 1837 में जेल स्थापित की गई और पौड़ी में 1850 में।

ग. स्वातंत्र्योत्तर काल एवं राज्य गठन के बाद

  • स्वतंत्रता के बाद उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहा, और यहाँ उत्तर प्रदेश पुलिस की व्यवस्था लागू थी।
  • 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य के गठन के साथ ही उत्तराखंड पुलिस का भी गठन हुआ।
  • राज्य पुलिस ने उत्तर प्रदेश पुलिस से विरासत में मिली संरचना और चुनौतियों के साथ कार्य प्रारंभ किया।
  • उत्तराखंड पुलिस अधिनियम, 2007 (2 जनवरी 2008 को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित, 19 मार्च 2008 से लागू) राज्य की अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप पुलिस व्यवस्था को आधुनिक और जवाबदेह बनाने के लिए पारित किया गया। यह देश का पहला राज्य पुलिस अधिनियम था जो मॉडल पुलिस एक्ट 2006 की संस्तुतियों पर आधारित था।

2. उत्तराखंड पुलिस का संगठनात्मक ढाँचा

  • पुलिस महानिदेशक (DGP): राज्य पुलिस बल के सर्वोच्च अधिकारी।
  • पुलिस मुख्यालय (PHQ): देहरादून।
  • पुलिस जोन: राज्य को दो प्रमुख पुलिस जोनों में विभाजित किया गया है:
    • गढ़वाल जोन (मुख्यालय: देहरादून)
    • कुमाऊँ जोन (मुख्यालय: नैनीताल)
    • प्रत्येक जोन का प्रमुख पुलिस महानिरीक्षक (IGP) होता है।
  • पुलिस रेंज: जोनों को रेंजों में विभाजित किया गया है, जिनका प्रमुख पुलिस उपमहानिरीक्षक (DIG) होता है।
  • जिला पुलिस: प्रत्येक जिले में पुलिस व्यवस्था का प्रमुख वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) या पुलिस अधीक्षक (SP) होता है।
    • जिले को सर्किलों (क्षेत्राधिकारी – CO/DSP के अधीन) और फिर पुलिस थानों (थानाध्यक्ष/SHO के अधीन) तथा पुलिस चौकियों में विभाजित किया जाता है।
  • राज्य में कुल 13 राजस्व जिले हैं। नागरिक पुलिस के अंतर्गत 157 थाने और लगभग 235 रिपोर्टिंग चौकियाँ हैं (आंकड़े परिवर्तनशील)।

3. विभिन्न प्रकार की पुलिस एवं विशिष्ट इकाइयाँ

  • नागरिक पुलिस (Civil Police): थानों और चौकियों में तैनात, सामान्य कानून व्यवस्था, अपराध नियंत्रण और जांच का कार्य करती है।
  • सशस्त्र पुलिस (Armed Police):
    • प्रादेशिक आर्म्ड कांस्टेबुलरी (PAC): उत्तराखंड में PAC की 4 बटालियन हैं। यह कानून व्यवस्था बनाए रखने, महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा और आपदा राहत कार्यों में नागरिक पुलिस की सहायता करती है।
    • इंडिया रिजर्व बटालियन (IRB): राज्य की अपनी सशस्त्र पुलिस बल की एक बटालियन है।
  • राजस्व पुलिस (Revenue Police / Patwari Police):
    • यह उत्तराखंड की एक अद्वितीय व्यवस्था है, जो राज्य के लगभग 60-61% (पर्वतीय) भूभाग पर कार्यरत है। इसके अंतर्गत लगभग 7500 गाँव आते हैं।
    • इसमें पटवारी, कानूनगो, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, परगनाधिकारी (SDM), जिलाधिकारी (DM) राजस्व कार्यों के साथ-साथ पुलिस के अधिकार भी रखते हैं और अपराधों की जांच करते हैं।
    • पटवारी अपने क्षेत्र में FIR दर्ज करने, जांच करने और अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत होता है। गंभीर अपराधों की जांच नियमित पुलिस को सौंपी जा सकती है।
    • यह व्यवस्था ब्रिटिश काल में विलियम ट्रेल द्वारा कम अपराध दर, कम जनसंख्या घनत्व और प्रशासनिक खर्च को कम करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। 1874 में इसे अनुसूचित जिला अधिनियम के तहत औपचारिक रूप दिया गया।
    • लाभ: स्थानीय परिवेश से परिचित, कम खर्चीली, जनता से सीधा संपर्क।
    • कमियाँ/आलोचनाएँ: पुलिस कार्यों के लिए अपर्याप्त प्रशिक्षण, संसाधनों की कमी, बढ़ते अपराधों से निपटने में अक्षमता, राजस्व कार्यों के बोझ के कारण पुलिस कार्यों की उपेक्षा।
    • समय के साथ इसकी प्रासंगिकता और प्रभावशीलता पर प्रश्न उठते रहे हैं, और इसे चरणबद्ध तरीके से नियमित पुलिस से प्रतिस्थापित करने की मांग और प्रयास होते रहे हैं। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने भी इस व्यवस्था को समाप्त करने के निर्देश दिए हैं।
  • यातायात पुलिस (Traffic Police): प्रमुख शहरों और पर्यटन मार्गों पर यातायात नियंत्रण और प्रबंधन। यातायात निदेशालय का गठन 2011 में किया गया।
  • अपराध अन्वेषण विभाग (CID): गंभीर और जटिल अपराधों की जांच।
  • राज्य आपदा प्रतिवादन बल (SDRF): 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद गठित, प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं में बचाव और राहत कार्यों के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित बल। इसका गठन 12 जुलाई 2013 को हुआ (9 अक्टूबर 2013 से कार्य प्रारंभ)। इसका मुख्यालय जौलीग्रांट (देहरादून) में है।
  • अभिसूचना विभाग (Intelligence Department): आसूचना संकलन और विश्लेषण।
  • राजकीय रेलवे पुलिस (GRP): रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में सुरक्षा और अपराध नियंत्रण। उत्तराखंड में काठगोदाम, देहरादून, हरिद्वार, लक्सर में जीआरपी थाने।
  • सतर्कता अधिष्ठान (Vigilance Establishment): भ्रष्टाचार निवारण।
  • साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन: देहरादून में मार्च 2015 में स्थापित, साइबर अपराधों की जांच। अब अन्य जिलों में भी साइबर सेल।
  • मानव तस्करी विरोधी इकाई (Anti-Human Trafficking Units – AHTU): मानव तस्करी की रोकथाम।
  • महिला थाना (Women Police Stations): महिलाओं से संबंधित अपराधों की सुनवाई और सहायता के लिए।
  • पर्यटक पुलिस (Tourist Police): प्रमुख पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों की सहायता और सुरक्षा के लिए।
  • विशेष कार्य बल (STF): संगठित अपराध और आतंकवाद से निपटने के लिए।
  • होम गार्ड्स (Home Guards): पुलिस की सहायता के लिए एक स्वयंसेवी बल।

4. पुलिस प्रशिक्षण एवं आधुनिकीकरण

  • प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान:
    • पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय (PTC), नरेन्द्र नगर (टिहरी गढ़वाल)।
    • पुलिस प्रशिक्षण केंद्र (RTC), देहरादून (मुख्यतः आरक्षियों के लिए)।
    • सशस्त्र पुलिस प्रशिक्षण केंद्र (APTC), हरिद्वार।
    • अन्य जिला स्तरीय प्रशिक्षण केंद्र।
  • आधुनिकीकरण के प्रयास:
    • सीसीटीएनएस (CCTNS – Crime and Criminal Tracking Network & Systems) परियोजना का क्रियान्वयन, जिसके तहत थानों का कंप्यूटरीकरण और अपराध तथा अपराधियों का डेटाबेस तैयार किया जा रहा है।
    • ई-एफआईआर (e-FIR) और ऑनलाइन नागरिक सेवाओं (जैसे चरित्र प्रमाण पत्र, शिकायत पंजीकरण) की शुरुआत।
    • आधुनिक हथियार और उपकरण उपलब्ध कराना।
    • साइबर अपराध जांच और फोरेंसिक क्षमताओं का विकास। देहरादून में राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला।
    • उत्तराखंड पुलिस एप्प, गौरा शक्ति एप्प (महिलाओं की सुरक्षा हेतु), ट्रैफिक आई एप्प जैसी मोबाइल एप्लीकेशन का विकास।
    • ऑपरेशन स्माइल (गुमशुदा बच्चों की तलाश), ऑपरेशन मर्यादा (धार्मिक स्थलों पर अनुशासन) जैसे विशेष अभियान।

5. उत्तराखंड पुलिस के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

  • दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियाँ: पर्वतीय क्षेत्रों में पहुँच और संचार की कठिनाई, विशेषकर राजस्व पुलिस क्षेत्रों में।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: भूस्खलन, बाढ़, भूकंप के दौरान बचाव और राहत कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका, जो अत्यधिक चुनौतीपूर्ण होती है।
  • पर्यटन और तीर्थाटन का दबाव: लाखों पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की सुरक्षा और यातायात प्रबंधन, विशेषकर चारधाम यात्रा के दौरान।
  • सीमावर्ती राज्य होने की संवेदनशीलता: अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं (चीन और नेपाल) पर तस्करी, घुसपैठ और अन्य अपराधों की रोकथाम।
  • मादक पदार्थों की तस्करी और सेवन: विशेषकर सीमावर्ती और पर्यटन क्षेत्रों में एक बढ़ती चुनौती।
  • साइबर अपराधों में वृद्धि और उनसे निपटने के लिए तकनीकी दक्षता की आवश्यकता।
  • मानव संसाधन और अवसंरचना की कमी: पुलिस बल की अपर्याप्त संख्या, थानों और चौकियों की कमी, आधुनिक उपकरणों का अभाव।
  • राजस्व पुलिस क्षेत्र में अपराध जांच की सीमाएँ और विशेषज्ञता का अभाव।
  • बढ़ता शहरीकरण और उससे जुड़ी कानून व्यवस्था की समस्याएँ।

निष्कर्ष (Conclusion)

उत्तराखंड पुलिस राज्य में शांति, सुरक्षा और कानून का शासन बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। विशिष्ट भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के बावजूद, पुलिस बल ने विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किया है। आधुनिकीकरण, प्रशिक्षण, सामुदायिक पुलिसिंग और राजस्व पुलिस व्यवस्था में सुधार जैसे कदमों के माध्यम से उत्तराखंड पुलिस को और अधिक प्रभावी और नागरिक-अनुकूल बनाया जा सकता है। उत्तराखंड पुलिस अधिनियम, 2007 का पूर्ण क्रियान्वयन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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