उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण रेल परिवहन का विकास मुख्य रूप से राज्य के मैदानी और तराई-भाबर क्षेत्रों तक ही सीमित रहा है। हालांकि, पर्वतीय क्षेत्रों में रेल संपर्क स्थापित करने के लिए महत्वाकांक्षी परियोजनाएँ विचाराधीन और निर्माणाधीन हैं, जो राज्य की कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण होंगी।
उत्तराखंड में रेल परिवहन
- उत्तराखंड में रेल लाइनों की कुल लंबाई लगभग 345 किलोमीटर है।
- राज्य का अधिकांश रेल नेटवर्क ब्रॉड गेज (Broad Gauge) है।
- रेल परिवहन मुख्यतः यात्री और माल ढुलाई दोनों के लिए उपयोग किया जाता है।
- हरिद्वार, देहरादून और काठगोदाम राज्य के प्रमुख रेलवे जंक्शन/टर्मिनल हैं।
- पर्वतीय क्षेत्रों में रेल विस्तार की परियोजनाएँ तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण और अत्यधिक व्ययसाध्य हैं।
1. उत्तराखंड में रेल लाइनों का आगमन और विकास
- राज्य में रेल परिवहन का इतिहास ब्रिटिश काल से जुड़ा है।
- 1884 में पहली रेल लाइन रामपुर (उत्तर प्रदेश) से काठगोदाम (नैनीताल) तक पहुँची। यह कुमाऊँ क्षेत्र को रेल नेटवर्क से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
- 1896 में लक्सर से हरिद्वार तक रेल लाइन का निर्माण हुआ, जिससे हरिद्वार एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में और सुगम हो गया।
- 1900 में रेल लाइन का विस्तार हरिद्वार से देहरादून तक किया गया, जिससे राज्य की तत्कालीन (और वर्तमान) राजधानी रेल नेटवर्क से जुड़ गई।
- 1907 में देहरादून-सहारनपुर रेलमार्ग पर मोहंड दर्रे में सुरंग का निर्माण किया गया।
2. प्रमुख रेल मार्ग और रेलवे स्टेशन
गढ़वाल क्षेत्र के प्रमुख रेल मार्ग और स्टेशन:
- लक्सर – हरिद्वार – रायवाला – ऋषिकेश – देहरादून मार्ग:
- प्रमुख स्टेशन: लक्सर जंक्शन, रुड़की, ज्वालापुर, हरिद्वार जंक्शन, मोतीचूर, रायवाला जंक्शन, ऋषिकेश, हर्रावाला, देहरादून टर्मिनल।
- यह मार्ग गढ़वाल के प्रमुख शहरों और तीर्थस्थलों को जोड़ता है।
- नजीबाबाद – कोटद्वार मार्ग:
- प्रमुख स्टेशन: कोटद्वार (गढ़वाल का प्रवेश द्वार)।
कुमाऊँ क्षेत्र के प्रमुख रेल मार्ग और स्टेशन:
- रामपुर/मुरादाबाद – काशीपुर – बाजपुर – गूलरभोज – लालकुआँ – हल्द्वानी – काठगोदाम मार्ग:
- प्रमुख स्टेशन: काशीपुर जंक्शन, बाजपुर, गूलरभोज, लालकुआँ जंक्शन, हल्द्वानी, काठगोदाम टर्मिनल।
- यह कुमाऊँ के तराई और भाबर क्षेत्रों को जोड़ता है।
- टनकपुर – पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) मार्ग:
- प्रमुख स्टेशन (उत्तराखंड में): टनकपुर, खटीमा, बनबसा।
- बरेली – लालकुआँ – काशीपुर मार्ग: यह भी कुमाऊँ को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मार्ग है।
3. रेलवे जोन और मंडल
- उत्तराखंड का अधिकांश रेल नेटवर्क दो प्रमुख रेलवे जोनों के अंतर्गत आता है:
- उत्तर रेलवे (Northern Railway): इसका मुरादाबाद रेल मंडल गढ़वाल क्षेत्र की अधिकांश लाइनों (जैसे देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश) का प्रबंधन करता है।
- पूर्वोत्तर रेलवे (North Eastern Railway): इसका इज्जतनगर रेल मंडल कुमाऊँ क्षेत्र की अधिकांश लाइनों (जैसे काठगोदाम, लालकुआँ, टनकपुर) का प्रबंधन करता है।
4. प्रस्तावित और निर्माणाधीन रेल परियोजनाएँ
पर्वतीय क्षेत्रों में रेल संपर्क बढ़ाने के लिए कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएँ प्रस्तावित और निर्माणाधीन हैं:
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ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन परियोजना
- उद्देश्य: गढ़वाल हिमालय के प्रमुख तीर्थस्थलों और कस्बों को रेल नेटवर्क से जोड़ना, चारधाम यात्रा को सुगम बनाना, और क्षेत्र में आर्थिक विकास को गति देना।
- लंबाई: लगभग 125.09 किलोमीटर।
- प्रारंभिक बिंदु: योग नगरी ऋषिकेश रेलवे स्टेशन।
- अंतिम बिंदु: कर्णप्रयाग।
- अनुमानित लागत: लगभग 16,200 करोड़ रुपये से अधिक (लागत समय के साथ संशोधित हो सकती है)।
- निर्माण एजेंसी: रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL)।
- स्टेशन: इस मार्ग पर कुल 12 नए रेलवे स्टेशन प्रस्तावित हैं (योग नगरी ऋषिकेश को मिलाकर 13)। प्रमुख प्रस्तावित स्टेशन: वीरभद्र, शिवपुरी, ब्यासी, देवप्रयाग, जनासू, मलेथा, श्रीनगर गढ़वाल, धारी देवी, रुद्रप्रयाग, घोलतीर, गौचर, कर्णप्रयाग।
- सुरंगें: परियोजना का अधिकांश हिस्सा (लगभग 84% या 105 किमी) सुरंगों से गुजरेगा, जिसमें कुल 17 मुख्य सुरंगें हैं। सबसे लंबी सुरंग (T-8) देवप्रयाग और लछमोली के बीच लगभग 15.1 किमी की होगी।
- पुल: 16 प्रमुख पुल बनाए जा रहे हैं।
- अपेक्षित पूर्णता: दिसंबर 2024 या 2025 तक (संभावित)।
- महत्व: चारधाम कनेक्टिविटी, आर्थिक विकास, सामरिक महत्व, पलायन पर रोक, क्षेत्रीय विकास।
- चुनौतियाँ: जटिल भूवैज्ञानिक संरचना, पर्यावरणीय संवेदनशीलता, भूस्खलन और भूकंपीय क्षेत्र, भूमि अधिग्रहण, उच्च निर्माण लागत।
- चारधाम रेल परियोजना: इसके अंतर्गत यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को रेल नेटवर्क से जोड़ने का लक्ष्य है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग लाइन इसी का एक भाग है।
- टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन: इस लाइन का सर्वेक्षण कार्य कई बार हो चुका है और इसके निर्माण की मांग लंबे समय से की जा रही है।
- देहरादून-कालसी-डाकपत्थर रेल लाइन विस्तार: इस मार्ग के विस्तार की भी योजनाएँ हैं।
- हरिद्वार-कोटद्वार-रामनगर रेल लाइन: इस मार्ग को जोड़ने और बेहतर बनाने पर भी विचार किया जा रहा है।
5. रेल परिवहन की चुनौतियाँ और भविष्य
- दुर्गम पर्वतीय भूभाग: रेल लाइनों का निर्माण अत्यंत कठिन, समयसाध्य और महंगा है।
- पर्यावरणीय संवेदनशीलता: निर्माण के दौरान पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले प्रभावों का ध्यान रखना एक बड़ी चुनौती है।
- भूस्खलन और भूवैज्ञानिक अस्थिरता: पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन और भूकंपीय गतिविधियाँ रेल लाइनों के लिए खतरा पैदा करती हैं।
- सीमित वित्तीय संसाधन: इन बड़ी परियोजनाओं के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है।
- भविष्य: इन चुनौतियों के बावजूद, पर्वतीय क्षेत्रों में रेल संपर्क का विस्तार राज्य के आर्थिक विकास, पर्यटन को बढ़ावा देने और सामरिक महत्व की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग जैसी परियोजनाएँ इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड में रेल परिवहन का विकास राज्य की विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण सीमित रहा है, लेकिन यह मैदानी क्षेत्रों और कुछ प्रमुख नगरों के लिए महत्वपूर्ण संपर्क साधन है। भविष्य में पर्वतीय क्षेत्रों तक रेल नेटवर्क का विस्तार राज्य के समग्र विकास और कनेक्टिविटी के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है, बशर्ते कि पर्यावरणीय और भूवैज्ञानिक चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया जाए।