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समाज सुधारक (Social Reformers)

उत्तराखंड के प्रमुख समाज सुधारक (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

उत्तराखंड का इतिहास न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिकता के लिए जाना जाता है, बल्कि उन महान विभूतियों के लिए भी जिन्होंने समय-समय पर समाज में व्याप्त कुरीतियों, असमानताओं और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई। इन समाज सुधारकों ने शिक्षा, दलित उत्थान, महिला सशक्तिकरण, और मानव अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।

उत्तराखंड के प्रमुख समाज सुधारक: एक सिंहावलोकन

कुछ त्वरित तथ्य (Quick Facts):
  • उत्तराखंड में समाज सुधार आंदोलन मुख्यतः दलितों (शिल्पकारों) के अधिकारों, शिक्षा के प्रसार, कुली बेगार जैसी कुप्रथाओं के उन्मूलन और नशाबंदी जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहे।
  • हरिप्रसाद टम्टा और जयानन्द भारती जैसे नेताओं ने दलितों के सम्मान और अधिकारों के लिए ऐतिहासिक संघर्ष किए।
  • श्रीदेव सुमन ने टिहरी रियासत में राजशाही के अत्याचारों के विरुद्ध और नागरिक अधिकारों के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी।
  • पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ सामाजिक न्याय के लिए चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा का योगदान भी अविस्मरणीय है।

1. दलितोत्थान एवं सामाजिक समानता के प्रणेता

हरिप्रसाद टम्टा (Hariprasad Tamta)

  • जीवनकाल/कार्यकाल: 1890 – 1960 (लगभग)
  • प्रमुख योगदान:
    • कुमाऊँ में दलित (शिल्पकार) समुदाय के उत्थान के लिए अग्रणी भूमिका निभाई।
    • 1905 में टम्टा सुधार सभा (बाद में शिल्पकार सुधारिणी सभा) के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका।
    • शिल्पकार शब्द को लोकप्रिय बनाया और दलितों को सम्मानजनक पहचान दिलाने का प्रयास किया। (सरकारी रिकॉर्ड में 1921 से शिल्पकार शब्द का प्रयोग, 1932 में मान्यता)
    • 1934 में अल्मोड़ा से “समता” नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया, जो दलितों की आवाज बना।
    • शिक्षा के प्रसार और सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन पर जोर दिया।

जयानन्द भारती (Jayanand Bharati)

  • जीवनकाल/कार्यकाल: 1881 – 1951
  • प्रमुख योगदान:
    • गढ़वाल में डोला-पालकी आंदोलन के प्रणेता। यह आंदोलन दलितों को सवर्णों के समान डोली-पालकी में बैठने का अधिकार दिलाने के लिए था।
    • डोला-पालकी आंदोलन (1930 के दशक में) के माध्यम से सामाजिक समानता और दलित अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
    • 1928 में लाला लाजपत राय के साथ साइमन कमीशन का विरोध किया।
    • गांधीजी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक सुधार कार्यों में सक्रिय रहे।
    • 23 फरवरी 1941 को लैंसडाउन में हुए डोला-पालकी सम्मेलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

खुशीराम आर्य (Khushiram Arya)

  • जीवनकाल/कार्यकाल: 1886 – 1971
  • प्रमुख योगदान:
    • कुमाऊँ में दलित चेतना और शिल्पकार आंदोलन के प्रमुख नेता।
    • आर्य समाज से प्रभावित होकर सामाजिक सुधार और शिक्षा के प्रसार पर बल दिया।
    • 1925 में शिल्पकार हितकारिणी सभा की स्थापना में सहयोग।
    • नैनीताल में दलितों द्वारा जनेऊ धारण और आर्य नाम धारण करने के आंदोलन का नेतृत्व किया।

बलदेव सिंह आर्य (Baldev Singh Arya)

  • प्रमुख योगदान:
    • दलितों के अधिकारों और सामाजिक समानता के लिए संघर्ष किया।
    • स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे और बाद में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी बने।
    • शिक्षा के माध्यम से समाज सुधार पर बल दिया।

2. राजनीतिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता के लिए संघर्ष

श्रीदेव सुमन (Sridev Suman)

  • जीवनकाल: 25 मई 1916 – 25 जुलाई 1944
  • जन्म स्थान: जौल गाँव, टिहरी गढ़वाल
  • प्रमुख योगदान:
    • टिहरी रियासत में प्रजातांत्रिक अधिकारों और राजशाही के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष के प्रतीक।
    • 1938 में दिल्ली में गढदेश सेवा संघ (बाद में हिमालय सेवा संघ) की स्थापना की।
    • 23 जनवरी 1939 को देहरादून में टिहरी राज्य प्रजामंडल की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका (मंत्री)।
    • 84 दिनों की ऐतिहासिक भूख हड़ताल के बाद 25 जुलाई 1944 को टिहरी जेल में शहीद हो गए। उनका बलिदान उत्तराखंड में नागरिक अधिकारों के संघर्ष का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
    • उनका प्रसिद्ध कथन: “तुम मुझे तोड़ सकते हो, मोड़ नहीं सकते।”

बैरिस्टर मुकुन्दी लाल (Barrister Mukundi Lal)

  • जीवनकाल: 14 अक्टूबर 1885 – 10 जनवरी 1982
  • जन्म स्थान: पाटली गाँव, चमोली
  • प्रमुख योगदान:
    • प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, वकील और कला मर्मज्ञ।
    • कुली बेगार प्रथा के उन्मूलन और वन अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
    • 1918 में गढ़वाल कांग्रेस कमेटी के गठन में प्रमुख भूमिका।
    • 1926 में स्वराज दल के टिकट पर गढ़वाल से विधान परिषद् सदस्य चुने गए।
    • पेशावर कांड के नायकों की पैरवी की।
    • गढ़वाल चित्रकला शैली और मोलाराम के चित्रों को विश्व पटल पर पहचान दिलाई।

3. पर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक चेतना

चंडी प्रसाद भट्ट (Chandi Prasad Bhatt)

  • जन्म: 23 जून 1934, गोपेश्वर, चमोली
  • प्रमुख योगदान:
    • प्रसिद्ध गांधीवादी पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता।
    • 1964 में दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल (अब संघ) की स्थापना की, जिसने चिपको आंदोलन की नींव रखी।
    • पर्यावरण संरक्षण, सतत विकास, और स्थानीय समुदायों के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया।
    • पुरस्कार: रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1982), पद्म श्री (1986), पद्म भूषण (2005), गांधी शांति पुरस्कार (2013)।

सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna)

  • जीवनकाल: 9 जनवरी 1927 – 21 मई 2021
  • जन्म स्थान: मरोड़ा गाँव, टिहरी गढ़वाल
  • प्रमुख योगदान:
    • विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद, चिपको आंदोलन के प्रमुख प्रणेता।
    • टिहरी बाँध विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया।
    • नशाबंदी, दलितोत्थान और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए आजीवन संघर्षरत रहे।
    • नारा: “पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है।”
    • पुरस्कार: पद्म विभूषण (2009), राइट लाइवलीहुड अवार्ड (1987), जमनालाल बजाज पुरस्कार (1986)।

गौरा देवी (Gaura Devi)

  • जीवनकाल: 1925 – 1991
  • जन्म स्थान: लाता गाँव, चमोली
  • प्रमुख योगदान:
    • चिपको आंदोलन की जननी के रूप में विख्यात।
    • 26 मार्च 1974 को रैणी गाँव में पेड़ों को कटने से बचाने के लिए महिलाओं का नेतृत्व किया और पेड़ों से चिपक गईं।
    • उनका साहस और नेतृत्व महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बन गया।

4. अन्य महत्वपूर्ण समाज सुधारक एवं शिक्षाविद

तारादत्त गैरोला (Taradatt Gairola)

  • जीवनकाल: 1875 – 1940
  • प्रमुख योगदान:
    • प्रसिद्ध वकील, लेखक और समाज सुधारक।
    • 1901 में गढ़वाल यूनियन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका।
    • 1904 में सरोला सभा की स्थापना कर गढ़वाल में सामाजिक सुधारों को बढ़ावा दिया।
    • गढ़वाली लोक साहित्य के संग्रह और प्रकाशन में योगदान।

इनके अतिरिक्त भी अनेक गुमनाम और अल्पज्ञात समाज सुधारक हुए हैं जिन्होंने उत्तराखंड के समाज को बेहतर बनाने में अपना योगदान दिया। विभिन्न स्थानीय आंदोलनों, शिक्षा के प्रसार और कुरीतियों के उन्मूलन में आम जनता और स्थानीय नेताओं की भूमिका भी सराहनीय रही है।

निष्कर्ष (Conclusion)

उत्तराखंड के समाज सुधारकों ने विषम परिस्थितियों में भी साहस और दृढ़ संकल्प के साथ सामाजिक परिवर्तन की मशाल जलाई। उनके त्याग और संघर्ष ने न केवल तत्कालीन समाज को दिशा दी, बल्कि आज भी हमें प्रेरणा देते हैं। इन सुधारकों के जीवन और कार्यों का अध्ययन हमें उत्तराखंड के सामाजिक इतिहास को समझने और वर्तमान चुनौतियों का सामना करने की दृष्टि प्रदान करता है।

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