हरित क्रांति (Green Revolution)
🌾 1. परिचय (Introduction)
हरित क्रांति भारत में 1960 के दशक में कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि का दौर था। इसका मुख्य उद्देश्य खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना और देश को खाद्य आत्मनिर्भर बनाना था।
📜 2. पृष्ठभूमि (Background)
- 1950-60 के दशक में भारत खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था।
- कई बार अकाल जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हुईं।
- देश को खाद्यान्न के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था।
👨🔬 3. हरित क्रांति के जनक (Father of Green Revolution)
- डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन (Dr. M. S. Swaminathan): भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाते हैं।
- नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug): विश्व स्तर पर हरित क्रांति के जनक, जिन्होंने उन्नत गेहूँ की किस्में विकसित कीं।
🔬 4. प्रमुख घटक (Key Components)
- उच्च उपज वाले बीज (High Yielding Varieties – HYV): गेहूँ और चावल की उन्नत किस्में।
- रासायनिक उर्वरकों का उपयोग: उत्पादन में वृद्धि के लिए।
- कीटनाशकों का उपयोग: कीटों और रोगों से बचाव के लिए।
- सिंचाई सुविधाओं का विकास: नहरों, ट्यूबवेल, ड्रिप सिंचाई।
- कृषि यंत्रीकरण: ट्रैक्टर, थ्रेशर, हार्वेस्टर का उपयोग।
- कृषि विस्तार सेवाएँ: किसानों को तकनीकी ज्ञान प्रदान करना।
📈 5. प्रभाव (Impact)
5.1 सकारात्मक प्रभाव (Positive Impact)
- अनाज उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि।
- भारत खाद्य आत्मनिर्भर बना।
- कृषि आय और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार।
- कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़े।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में समृद्धि।
5.2 नकारात्मक प्रभाव (Negative Impact)
- क्षेत्रीय असमानता बढ़ी, हरित क्रांति का लाभ मुख्यतः पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मिला।
- मिट्टी की उर्वरता में कमी, उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से।
- भूजल स्तर में गिरावट, अधिक सिंचाई के कारण।
- पर्यावरणीय प्रदूषण, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से।
- छोटे और सीमांत किसानों को अपेक्षित लाभ नहीं मिला।
🌾 6. फसल और क्षेत्र (Crops and Regions)
- मुख्य फसलें: गेहूँ और चावल।
- प्रमुख क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश।
- अन्य फसलें: मक्का, ज्वार, बाजरा (सीमित पैमाने पर)।
💡 7. हरित क्रांति के चरण (Phases of Green Revolution)
7.1 प्रथम चरण (First Phase: 1966-1974)
- उच्च उपज वाले गेहूँ की किस्मों का परिचय।
- प्रमुख रूप से उत्तरी भारत में लागू।
7.2 द्वितीय चरण (Second Phase: 1975-1985)
- चावल और अन्य फसलों पर ध्यान केंद्रित।
- हरित क्रांति का विस्तार अन्य क्षेत्रों में।
🔍 8. हरित क्रांति की सीमाएँ (Limitations of Green Revolution)
- संसाधन संपन्न किसानों को अधिक लाभ मिला।
- फसल विविधीकरण में कमी, मुख्यतः गेहूँ और चावल पर निर्भरता।
- पर्यावरणीय चुनौतियाँ, जैसे मिट्टी का कटाव, जल प्रदूषण।
- ग्रामीण समाज में सामाजिक असमानता बढ़ी।
🌱 9. दूसरी हरित क्रांति (Second Green Revolution)
- पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत पर ध्यान केंद्रित।
- फसल विविधीकरण, जैसे दालें, तिलहन।
- जैविक कृषि और स्थायी कृषि पर जोर।
- छोटे और सीमांत किसानों की भागीदारी बढ़ाना।
📚 10. परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण तथ्य (Important Facts for Exams)
- भारत में हरित क्रांति की शुरुआत: 1966-67
- हरित क्रांति के जनक: डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन
- पहले इस्तेमाल की गई गेहूँ की HYV किस्में: सोनालिका, कल्याण सोना
- हरित क्रांति का सबसे अधिक लाभ उठाने वाला राज्य: पंजाब
- हरित क्रांति मुख्यतः गेहूँ फसल पर केंद्रित थी
- विश्व स्तर पर हरित क्रांति के जनक: नॉर्मन बोरलॉग
- उन्नत बीजों का विकास मैक्सिको में किया गया
🌐 11. अन्य महत्वपूर्ण तथ्य (Other Important Facts)
- हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया
- यह पंचवर्षीय योजनाओं का एक प्रमुख हिस्सा था
- कृषि अनुसंधान और शिक्षा पर अधिक जोर दिया गया
- राष्ट्रीय बीज निगम (National Seeds Corporation) की स्थापना की गई
- कृषि में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी
📝 12. निष्कर्ष (Conclusion)
हरित क्रांति ने भारत की कृषि अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया। हालांकि इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी थे, लेकिन इसके माध्यम से भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सका। वर्तमान समय में, आवश्यक है कि हम कृषि की स्थिरता और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान दें।