परिचय:
उर्वरक वे पदार्थ हैं जो मृदा (soil) में पोषक तत्त्वों (nutrients) की पूर्ति कर फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। इनका उद्देश्य मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना और फसलों की पोषक तत्त्वों की जरूरतें पूरी करना है।
उर्वरकों के प्रकार (Types of Fertilizers)
- रासायनिक (रसायनिक) उर्वरक (Chemical Fertilizers):
- ये कारखानों में कृत्रिम रूप से तैयार किए जाते हैं।
- तीन प्रमुख पोषक तत्त्व – नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), और पोटैशियम (K) – पर आधारित।
- उदाहरण: यूरिया, डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट), एमओपी (म्युरिएट ऑफ पोटाश), एनपीके मिश्रित उर्वरक।
- जैविक उर्वरक (Organic Fertilizers):
- प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त, जैसे खाद, गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद (ग्रीन मैन्योर), केचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट)।
- लंबी अवधि में मृदा संरचना, जैविक पदार्थ (organic matter) और जीवांशता (soil biota) में सुधार करते हैं।
- धीमी गति से पोषक तत्त्वों की आपूर्ति, रसायनिक उर्वरकों की तुलना में कम तात्कालिक प्रभाव, पर स्थायी लाभ।
- बायो-उर्वरक (Bio-fertilizers):
- सूक्ष्मजीव आधारित, जो मृदा में पोषक तत्त्वों को उपलब्ध कराने में मदद करते हैं।
- उदाहरण: राइज़ोबियम (Rhizobium) – दलहनी फसलों के लिए नाइट्रोजन स्थिरीकरण, एजोटोबैक्टर, ब्ल्यू-ग्रीन एल्गी आदि।
- नवीन प्रकार के उर्वरक (New/Innovative Fertilizers):
- नीम लेपित यूरिया (Neem Coated Urea): यूरिया के ऊपर नीम लेप, जिससे नाइट्रोजन धीमी गति से रिलीज़ होती है और उर्वरक की बर्बादी कम होती है।
- तरल उर्वरक (Liquid Fertilizers): ड्रिप सिंचाई के साथ उपयोग, सटीक पोषक तत्त्व आपूर्ति।
- धीमी विमुक्ति (Slow-Release) और नियंत्रित विमुक्ति (Controlled-Release) उर्वरक: समयबद्ध तरीके से पोषक तत्त्वों की आपूर्ति, अपव्यय कम।
प्रमुख रसायनिक उर्वरक और उनकी संरचना (Major Chemical Fertilizers and Their Composition)
- यूरिया (Urea):
- N (नाइट्रोजन) लगभग 46%
- सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला नाइट्रोजन उर्वरक।
- फसल की वृद्धि और हरी पत्तियों के लिए आवश्यक।
- डीएपी (DAP – Di-Ammonium Phosphate):
- N (नाइट्रोजन): लगभग 18%
- P2O5 (फॉस्फोरस): लगभग 46%
- जड़ों के विकास, फूल व फलन के लिए अहम।
- एमओपी (MOP – Muriate of Potash)
- K2O (पोटैशियम ऑक्साइड): 60%
- रोग प्रतिरोध, गुणवत्ता बढ़ाने, कार्बोहाइड्रेट संश्लेषण में मदद।
- एनपीके मिश्रित उर्वरक (NPK Fertilizers):
- विभिन्न अनुपातों में N, P, K का मिश्रण (जैसे 10:26:26, 12:32:16 आदि)।
- फसल की आवश्यकता के अनुरूप संतुलित पोषण।
एनपीके (NPK) उर्वरक एवं महत्व
- N (नाइट्रोजन): पौधों की वृद्धि, हरी पत्तियों, प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक।
- P (फॉस्फोरस): जड़ विकास, ऊर्जा अंतरण (ATP), पुष्पन एवं फलन के लिए महत्वपूर्ण।
- K (पोटैशियम): कोशिका विभाजन, रोग प्रतिरोध, गुणवत्ता सुधार, सूखा सहनशीलता बढ़ाता है।
संतुलित एनपीके अनुपात से फसल की संपूर्ण वृद्धि संभव होती है। संतुलित उर्वरक उपयोग मृदा की दीर्घकालीन उर्वरता बनाए रखता है।
सरकार की पहल (Government Initiatives)
- उर्वरक सब्सिडी (Fertilizer Subsidy):
- रासायनिक उर्वरकों की कीमतें नियंत्रित रखने के लिए सरकार उर्वरक कंपनियों को सब्सिडी देती है।
- यूरिया पर भारी सब्सिडी, ताकि किसान रियायती दर पर खरीद सकें।
- नीम लेपित यूरिया अनिवार्यता:
- 2015 से 100% नीम लेपित यूरिया लागू, जिससे नाइट्रोजन हानि कम और उर्वरक दक्षता बढ़ी।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली:
- उर्वरक की बिक्री पर सब्सिडी सीधे कंपनियों को, आधार-लिंक्ड बिक्री, पारदर्शिता में वृद्धि।
- कालाबाज़ारी कम, वास्तविक किसानों को लाभ सुनिश्चित।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme):
- शुरुआत: फरवरी 2015
- प्रत्येक किसान को मृदा की पोषक स्थिति बताने वाला कार्ड उपलब्ध।
- दो साल में एक बार मृदा परीक्षण, उससे मिली जानकारी के आधार पर उर्वरकों का संतुलित उपयोग।
- 2020 तक लगभग 23 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित।
- परिणाम: उर्वरकों का संतुलित प्रयोग, इनपुट लागत में कमी, उपज की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ने की संभावना।
- अतिरिक्त पहल:
- जैविक खेती को प्रोत्साहन: राष्ट्रीय जैविक खेती मिशन
- ड्रिप सिंचाई व सूक्ष्म सिंचाई योजनाएं: पानी और उर्वरक दोनों की बचत
- उन्नत किस्मों के बीज, कृषि प्रशिक्षण और विस्तार सेवाएं।
चुनौतियाँ और समाधान
- चुनौती: अति-उपयोग से मृदा संतुलन बिगड़ना, जल प्रदूषण, लागत बढ़ना।
- समाधान:
- मृदा परीक्षण आधारित उर्वरक उपयोग।
- जैविक व बायो-उर्वरकों का समावेश।
- धीमी विमुक्ति उर्वरकों का इस्तेमाल।
- किसान जागरूकता कार्यक्रम, प्रशिक्षण।
मुख्य सार:
उर्वरकों का संतुलित और उचित उपयोग कृषि की उत्पादकता व सततता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। एनपीके उर्वरकों के साथ जैविक और बायो-उर्वरकों का प्रयोग, नीम लेपित यूरिया, मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैसी सरकारी पहलें किसानों को वैज्ञानिक ढंग से खेती करने में मदद करती हैं। इससे न केवल पैदावार बढ़ती है, बल्कि मृदा की उर्वरता और पर्यावरणीय संतुलन भी बना रहता है।