भारतीय कृषि भूमि जोत एवं भू-उपयोग
भारत में कृषि का स्वरूप और उत्पादकता काफी हद तक भूमि जोत के आकार और भू-उपयोग के पैटर्न पर निर्भर करती है। भूमि एक सीमित संसाधन है, और इसका कुशल उपयोग देश की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है।
जोत का प्रकार (Types of Land Holdings)
कृषि जनगणना के अनुसार, भारत में कृषि जोतों को उनके आकार के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा गया है:
- सीमांत जोत (Marginal Holdings): 1 हेक्टेयर से कम।
- लघु जोत (Small Holdings): 1 से 2 हेक्टेयर।
- अर्ध-मध्यम जोत (Semi-Medium Holdings): 2 से 4 हेक्टेयर।
- मध्यम जोत (Medium Holdings): 4 से 10 हेक्टेयर।
- वृहद जोत (Large Holdings): 10 हेक्टेयर से अधिक।
भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषता: भूमि का विखंडन
कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार, भारत में 86% से अधिक जोतें सीमांत और लघु श्रेणी की हैं। इसका अर्थ है कि भारत में अधिकांश किसान छोटे खेतों पर खेती करते हैं।
प्रभाव: भूमि के इस विखंडन के कारण आधुनिक मशीनों (जैसे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर) का उपयोग मुश्किल हो जाता है, जिससे उत्पादकता कम होती है और खेती की लागत बढ़ जाती है। यह किसानों के लिए ऋण प्राप्त करने और नई तकनीक अपनाने में भी एक बड़ी बाधा है।
भू-उपयोग (Land Utilization)
भू-उपयोग से तात्पर्य विभिन्न उद्देश्यों के लिए भूमि के उपयोग से है। भारत में प्रमुख भू-उपयोग श्रेणियां इस प्रकार हैं:
- शुद्ध बोया गया क्षेत्र (Net Sown Area): वह भूमि जिस पर वास्तव में फसलें उगाई जाती हैं। यह भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 45.5% है।
- वन भूमि (Forest Land): वनों के अंतर्गत आने वाली भूमि, जो कुल क्षेत्रफल का लगभग 23.3% है। राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के अनुसार, पारिस्थितिक संतुलन के लिए देश के 33% हिस्से पर वन होना चाहिए।
- बंजर और अकृष्य भूमि (Barren & Unculturable Land): वह भूमि जिसे तकनीक की मदद से भी कृषि योग्य नहीं बनाया जा सकता, जैसे पहाड़ी, रेगिस्तानी या दलदली भूमि।
- गैर-कृषि उपयोग वाली भूमि (Land put to Non-agricultural Uses): बस्तियों, सड़कों, रेलवे, उद्योगों आदि के तहत आने वाली भूमि।
- स्थायी चरागाह (Permanent Pastures): पशुओं को चराने के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि।
- पड़त भूमि (Fallow Land): वह भूमि जिसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता है ताकि वह अपनी उर्वरता वापस पा सके।