जोत का प्रकार (Types of Land Holdings)
- परिभाषा: जोत का मतलब वह भूमि क्षेत्र (land area) जो किसी किसान परिवार द्वारा कृषि उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है।
- प्रमुख श्रेणियाँ:
- सीमांत जोत (Marginal Holdings):
- भूमि क्षेत्र: 1 हेक्टेयर से कम
- भारत में लगभग 68-70% जोत सीमांत श्रेणी में आती हैं (छोटे किसानों की अधिकता)।
- उत्पादन कम, इनपुट खरीदने की क्षमता सीमित, आधुनिक तकनीक का कम उपयोग।
- लघु जोत (Small Holdings):
- भूमि क्षेत्र: 1 से 2 हेक्टेयर
- कुल जोतों का लगभग 20-22% भाग लघु श्रेणी में।
- सीमांत की तुलना में थोड़ी बेहतर उत्पादन क्षमता, परंतु फिर भी उन्नत तकनीक अपनाने में चुनौतियाँ।
- अर्द्ध-मध्यम जोत (Semi-Medium Holdings):
- भूमि क्षेत्र: 2 से 4 हेक्टेयर
- लगभग 6-8% जोत अर्द्ध-मध्यम श्रेणी में।
- इनपुट उपयोग और बाजार संपर्क में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति।
- मध्यम जोत (Medium Holdings):
- भूमि क्षेत्र: 4 से 10 हेक्टेयर
- लगभग 3-4% जोत मध्यम श्रेणी में।
- बेहतर तकनीक, निवेश क्षमता, बाजार तक पहुंच, फसल विविधीकरण की संभावना अधिक।
- वृहद जोत (Large Holdings):
- भूमि क्षेत्र: 10 हेक्टेयर से अधिक
- 1% से भी कम जोतें इस श्रेणी में, परंतु कुल कृषि भूमि में इनका हिस्सा अधिक।
- निवेश, तकनीक, सिंचाई, प्रसंस्करण और विपणन की सशक्त क्षमता, व्यावसायिक कृषि की ओर झुकाव।
- सीमांत जोत (Marginal Holdings):
आँकड़े (Data & Figures):
- 2015-16 के कृषि जनगणना (Agricultural Census) के अनुसार, कुल जोत में सीमांत और लघु जोतों का हिस्सा 85% से अधिक है, परंतु भूमि के बड़े हिस्से पर मध्यम और वृहद जोत का नियंत्रण।
- सीमांत और लघु जोत मिलकर भूमि के करीब 44-45% हिस्से पर कब्जा रखती हैं, जबकि मध्यम और वृहद जोतें कम संख्या में होते हुए भी 55%+ भूमि पर खेती करती हैं।
भू उपयोग (Land Utilization)
- शुद्ध बोया क्षेत्र (Net Sown Area):
- वह भूमि जो कम से कम एक बार वार्षिक चक्र में बोई जाए।
- भारत का शुद्ध बोया क्षेत्र कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 46% (अनुमान), जो विश्व के कई देशों की तुलना में काफी अधिक है।
- फसल तीव्रता (cropping intensity) बढ़ने से शुद्ध बोया क्षेत्र में कभी-कभी दोहरी/तिहरी फसल ली जाती है।
- बंजर भूमि (Barren & Uncultivable Land):
- वह भूमि जो किसी भी स्थिति में कृषि योग्य नहीं है।
- इसमें पर्वतीय क्षेत्र, मरुस्थल, अत्यधिक क्षरणग्रस्त मिट्टी वाले क्षेत्र शामिल।
- भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 5-6% हिस्सा बंजर भूमि के अंतर्गत।
- वानिकी (Forest Land):
- वन आच्छादन (forest cover) को दर्शाने वाली भूमि।
- वन भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 24-25% है, परंतु आदर्श रूप से यह 33% तक होने का लक्ष्य रखा गया है (राष्ट्रीय वन नीति)।
- वनों का महत्व पर्यावरणीय संतुलन, जल संरक्षण, जैव विविधता के लिए अहम।
- चरागाह भूमि (Permanent Pastures & Grazing Land):
- स्थायी चराई (grazing) के लिए आरक्षित भूमि, पशुपालन के लिए महत्वपूर्ण।
- कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 3-4% हिस्सा चरागाह भूमि के अंतर्गत।
- पशुधन के लिए चारे की उपलब्धता में कमी आने से चरागाह भूमि धीरे-धीरे घट रही।
अन्य श्रेणियाँ:
- पड़त (fallow) भूमि: वह भूमि जो कुछ समय के लिए परती छोड़ी जाती है ताकि मिट्टी की उर्वरता पुनर्जीवित हो सके।
- खेती योग्य परती (Cultivable Waste Land): वह भूमि जो कृषि योग्य तो है परंतु किसी कारणवश (कमी पानी की, संसाधनों की, इंफ्रास्ट्रक्चर की) खेती नहीं की जा रही।
- गैर-कृषि उपयोग की भूमि: आवास, उद्योग, सड़क, रेलवे, आदि के लिए प्रयुक्त भूमि।
मुख्य सार:
- भारतीय कृषि की जोत का ढाँचा अत्यधिक खंडित है – सीमांत और लघु जोत बहुसंख्यक हैं, परंतु भूमि का बड़ा हिस्सा मध्यम और वृहद जोत के पास है।
- भूमि उपयोग में शुद्ध बोया क्षेत्र प्रमुख है, परंतु वानिकी, बंजर भूमि, चरागाह आदि विविध उपयोग दिखाते हैं।
- वानिकी की कमी, चरागाह भूमि का घटता रकबा, बंजर भूमि के प्रबंधन की चुनौती और शुद्ध बोया क्षेत्र का अधिकतम दोहन सभी मिलकर कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं।
- सतत कृषि विकास के लिए जोतों का समूहन (FPOs), भू-सुधार (Land Reforms), अधिकतम भूमि उपयोग दक्षता, वानिकी वृद्धि एवं चरागाह भूमि का संरक्षण आवश्यक है।