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भूकंप का परिचय (Introduction to Earthquakes)

1. परिचय (Introduction)

भूकंप (Earthquake) का अर्थ है पृथ्वी की सतह का अचानक हिलना या कांपना। यह पृथ्वी के स्थलमंडल (लिथोस्फीयर) में संग्रहीत ऊर्जा के अचानक मुक्त होने के कारण होता है। यह ऊर्जा भूकंपीय तरंगों (Seismic Waves) के रूप में फैलती है, जो पृथ्वी के माध्यम से यात्रा करती हैं।

  • उद्गम केंद्र (Focus or Hypocenter): यह पृथ्वी के भीतर वह स्थान है जहाँ ऊर्जा मुक्त होती है। यह भूकंप का वास्तविक स्रोत होता है।
  • अधिकेंद्र (Epicenter): यह पृथ्वी की सतह पर उद्गम केंद्र के ठीक ऊपर स्थित बिंदु है। सबसे अधिक विनाश आमतौर पर अधिकेंद्र के पास ही होता है।

2. भूकंप के कारण (Causes of Earthquakes)

  • प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics): यह भूकंप का मुख्य कारण है। पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटें लगातार गति कर रही हैं। जब वे एक-दूसरे से टकराती हैं, खिसकती हैं, या दूर जाती हैं, तो चट्टानों में तनाव जमा हो जाता है। जब यह तनाव चट्टानों की सहनशक्ति से अधिक हो जाता है, तो वे टूट जाती हैं, जिससे ऊर्जा निकलती है। इस प्रक्रिया को इलास्टिक रिबाउंड थ्योरी (Elastic Rebound Theory) द्वारा समझाया गया है।
  • ज्वालामुखी गतिविधि: ज्वालामुखी विस्फोट से पहले और उसके दौरान मैग्मा की गति के कारण पृथ्वी में कंपन हो सकता है।
  • मानव-जनित कारण (Human-induced): बड़े बांधों (जलाशय प्रेरित भूकंप), खनन, और भूमिगत परमाणु परीक्षण जैसी मानवीय गतिविधियाँ भी स्थानीय स्तर पर भूकंपों को प्रेरित कर सकती हैं।

3. भूकंपीय तरंगें (Seismic Waves)

भूकंप के दौरान दो मुख्य प्रकार की तरंगें उत्पन्न होती हैं:

A. भूगर्भीय तरंगें (Body Waves)

ये तरंगें पृथ्वी के आंतरिक भाग से होकर गुजरती हैं।

  • P-तरंगें (प्राथमिक तरंगें): ये सबसे तेज होती हैं और सिस्मोग्राफ (Seismograph) पर सबसे पहले पहुंचती हैं। ये ध्वनि तरंगों की तरह अनुदैर्ध्य (longitudinal) होती हैं और ठोस, तरल, और गैस तीनों माध्यमों से गुजर सकती हैं।
  • S-तरंगें (द्वितीयक तरंगें): ये P-तरंगों की तुलना में धीमी होती हैं। ये प्रकाश तरंगों की तरह अनुप्रस्थ (transverse) होती हैं और केवल ठोस माध्यम से ही गुजर सकती हैं। S-तरंगों का बाहरी कोर से न गुजर पाना यह साबित करता है कि बाहरी कोर तरल अवस्था में है।

B. धरातलीय तरंगें (Surface Waves)

ये तरंगें तब बनती हैं जब भूगर्भीय तरंगें पृथ्वी की सतह पर पहुंचती हैं। ये धीमी होती हैं लेकिन सबसे अधिक विनाशकारी होती हैं।

  • L-तरंगें (लव तरंगें): ये सतह पर क्षैतिज रूप से (side-to-side) कंपन करती हैं।
  • R-तरंगें (रैले तरंगें): ये सतह पर एक लहरदार, अंडाकार गति उत्पन्न करती हैं।

4. भूकंप का मापन (Measuring Earthquakes)

  • परिमाण (Magnitude): इसे रिक्टर स्केल (Richter Scale) पर मापा जाता है। यह भूकंप के स्रोत पर मुक्त हुई ऊर्जा की मात्रा को मापता है। यह एक लघुगणकीय (logarithmic) पैमाना है, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक अगली संख्या पिछले की तुलना में 10 गुना अधिक कंपन और 32 गुना अधिक ऊर्जा दर्शाती है।
  • तीव्रता (Intensity): इसे संशोधित मरकेली स्केल (Modified Mercalli Scale) पर मापा जाता है। यह किसी विशेष स्थान पर भूकंप के प्रभाव और विनाश के स्तर को मापता है। यह अवलोकन पर आधारित है और 1 से 12 तक की रोमन संख्याओं में व्यक्त किया जाता है।

5. भूकंपीय छाया क्षेत्र (Seismic Shadow Zone)

  • यह पृथ्वी की सतह पर एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ किसी विशेष भूकंप से कोई भी भूकंपीय तरंग दर्ज नहीं की जाती है।
  • S-तरंग छाया क्षेत्र: यह अधिकेंद्र से 105° से परे का एक विशाल क्षेत्र है। यह इसलिए बनता है क्योंकि S-तरंगें तरल बाहरी कोर से नहीं गुजर सकती हैं।
  • P-तरंग छाया क्षेत्र: यह अधिकेंद्र से 105° और 145° के बीच का एक बैंड है। यह इसलिए बनता है क्योंकि P-तरंगें तरल बाहरी कोर से गुजरते समय अपवर्तित (refracted) हो जाती हैं।
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