ज्वालामुखी विज्ञान में नवीनतम प्रगति (Recent Advances in Volcanology)
अनुसंधान और तकनीकी विकास (Research and Technological Developments)
ज्वालामुखी विज्ञान में अनुसंधान और तकनीकी प्रगति ने ज्वालामुखीय गतिविधियों को समझने और निगरानी में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं:
- ज्वालामुखीय मॉडलिंग: कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग कर ज्वालामुखीय विस्फोटों और उनके प्रभावों का पूर्वानुमान।
- जियोकेमिकल विश्लेषण: मैग्मा की संरचना और गैस उत्सर्जन की निगरानी के लिए नई तकनीकें।
- थर्मल इमेजिंग: लावा और ज्वालामुखीय संरचनाओं के तापमान में परिवर्तन को मापने के लिए उपयोगी।
- ड्रोन प्रौद्योगिकी: खतरनाक ज्वालामुखीय क्षेत्रों में डेटा संग्रह के लिए ड्रोन का उपयोग।
- भूकंपीय नेटवर्क: ज्वालामुखीय क्षेत्रों में भूकंपीय गतिविधियों की निगरानी के लिए संवेदनशील उपकरण।
सैटेलाइट निगरानी और रिमोट सेंसिंग (Satellite Monitoring and Remote Sensing)
सैटेलाइट और रिमोट सेंसिंग तकनीकों ने ज्वालामुखीय गतिविधियों की निगरानी और पूर्वानुमान को अधिक सटीक और कुशल बनाया है:
- सैटेलाइट इमेजिंग: ज्वालामुखीय विस्फोट, लावा प्रवाह, और राख के फैलाव का सटीक रिकॉर्ड।
- GPS ट्रैकिंग: ज्वालामुखीय क्षेत्रों में भूमि की गति और संरचनात्मक बदलावों की निगरानी।
- इंफ्रारेड सेंसिंग: लावा और गैस उत्सर्जन का पता लगाने के लिए उपयोगी।
- रडार तकनीक: ज्वालामुखीय क्षेत्रों में भूमि के ऊंचाई में बदलाव का विश्लेषण।
- ग्लोबल वोल्केनिज्म प्रोग्राम: सैटेलाइट डेटा का उपयोग कर वैश्विक ज्वालामुखीय गतिविधियों की रिपोर्टिंग।
परीक्षापयोगी तथ्य
- सैटेलाइट इमेजिंग ने माउंट एटना (इटली) और माउंट मेरापी (इंडोनेशिया) जैसे सक्रिय ज्वालामुखियों की निगरानी को अधिक सटीक बनाया है।
- ड्रोन तकनीक का उपयोग 2018 के किलाउआ (हवाई) विस्फोट के दौरान सुरक्षित डेटा संग्रह के लिए किया गया।
- ग्लोबल वोल्केनिज्म प्रोग्राम 1980 से ज्वालामुखीय गतिविधियों की निगरानी कर रहा है।
- थर्मल इमेजिंग का उपयोग ज्वालामुखीय क्षेत्रों में मैग्मा के स्थान को मापने के लिए किया जाता है।
- रिमोट सेंसिंग ने 1991 के माउंट पिनातुबो (फिलीपींस) विस्फोट के बाद राख के फैलाव की निगरानी में मदद की।