ज्वालामुखी और जलवायु (Volcanoes and Climate)
ज्वालामुखीय गैसों का जलवायु पर प्रभाव (Impact of Volcanic Gases on Climate)
ज्वालामुखीय विस्फोट के दौरान उत्सर्जित गैसें वायुमंडल में महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं:
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂): ग्रीनहाउस गैस के रूप में कार्य करती है, जो दीर्घकालिक तापमान वृद्धि में योगदान करती है।
- सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂): वायुमंडल में प्रवेश कर सल्फेट एरोसोल बनाती है, जो सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर तापमान को अस्थायी रूप से कम करती है।
- जल वाष्प: वायुमंडल में जल चक्र को प्रभावित करती है।
- हाइड्रोजन क्लोराइड और हाइड्रोजन फ्लोराइड: अम्लीय वर्षा का कारण बनती हैं, जिससे स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
ज्वालामुखीय सर्दी और वैश्विक तापमान में परिवर्तन (Volcanic Winter and Global Temperature Changes)
बड़े ज्वालामुखीय विस्फोट वैश्विक तापमान में अस्थायी परिवर्तन का कारण बन सकते हैं:
- ज्वालामुखीय सर्दी (Volcanic Winter): सल्फेट एरोसोल और राख वायुमंडल में सूर्य की किरणों को अवरुद्ध कर वैश्विक तापमान को कम करते हैं।
- उदाहरण: 1815 में माउंट तंबोरा (इंडोनेशिया) के विस्फोट के बाद “साल बिना गर्मी का”।
- वैश्विक तापमान में वृद्धि: CO₂ जैसी गैसों के उत्सर्जन के कारण दीर्घकालिक तापमान में वृद्धि हो सकती है।
- उदाहरण: लगातार ज्वालामुखीय गतिविधि के कारण प्राचीन पृथ्वी के गर्म काल।
- क्षेत्रीय प्रभाव: ज्वालामुखीय राख स्थानीय जलवायु को प्रभावित कर सकती है, जैसे भारी वर्षा या सूखा।
परीक्षापयोगी तथ्य
- 1815 में माउंट तंबोरा के विस्फोट ने वैश्विक तापमान में 1°C तक की गिरावट दर्ज की।
- ज्वालामुखीय गैसों का वैश्विक कार्बन चक्र में योगदान लगभग 0.3% है।
- सल्फेट एरोसोल सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर अल्बीडो प्रभाव को बढ़ाते हैं।
- 1991 में माउंट पिनातुबो के विस्फोट ने वैश्विक तापमान को लगभग 0.5°C तक कम कर दिया।
- ज्वालामुखीय सर्दी स्थानीय कृषि और जलवायु को गहराई से प्रभावित कर सकती है।