भगत सिंह (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी और समाजवादी विचारक थे। उनका जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान में) के बंगा गाँव में हुआ था। उन्हें हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के एक महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में जाना जाता है और उन्हें 23 मार्च, 1931 को फांसी दी गई थी।
1. प्रारंभिक जीवन और वैचारिक विकास (Early Life and Ideological Development)
भगत सिंह का परिवार देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत था, जिसने उनके क्रांतिकारी विचारों को आकार दिया।
- पारिवारिक पृष्ठभूमि: उनका परिवार एक देशभक्त आर्य समाजी सिख परिवार था। उनके चाचा अजीत सिंह एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे और ‘भारत माता सोसाइटी’ के संस्थापक थे। उनके पिता, किशन सिंह, भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे।
- जलियांवाला बाग हत्याकांड का प्रभाव: 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने युवा भगत सिंह पर गहरा प्रभाव डाला, जिसने उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।
- शिक्षा और प्रभाव: उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की, जहाँ वे समाजवादी और मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित हुए। वे लेनिन, मार्क्स और अन्य समाजवादी विचारकों के लेखन से प्रेरित थे।
- नौजवान भारत सभा (1926): उन्होंने युवाओं को संगठित करने और उनमें राष्ट्रवादी भावना जगाने के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की।
2. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से HSRA तक
भगत सिंह ने क्रांतिकारी गतिविधियों को संगठित करने के लिए प्रमुख भूमिका निभाई।
- हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA): 1924 में सचिन सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल और जोगेश चंद्र चटर्जी द्वारा कानपुर में स्थापित HRA का उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत में एक संघीय गणतंत्र की स्थापना करना था। भगत सिंह बाद में इससे जुड़े।
- काकोरी कांड (1925): HRA के सदस्यों ने लखनऊ के पास काकोरी में एक ट्रेन में सरकारी खजाने को लूटा। इस घटना के बाद कई प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA):
- 1928 में, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव और अन्य क्रांतिकारियों ने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में HRA का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) कर दिया।
- नाम में ‘सोशलिस्ट’ जोड़ने का उद्देश्य आंदोलन को एक समाजवादी विचारधारा देना था, जिसमें न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता बल्कि सामाजिक और आर्थिक समानता भी शामिल थी।
3. प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियाँ (Major Revolutionary Activities)
भगत सिंह और उनके साथियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई साहसिक कार्य किए।
- सांडर्स की हत्या (1928):
- 30 अक्टूबर, 1928 को, साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय पर हुए लाठीचार्ज के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
- भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जे.पी. सांडर्स की हत्या कर दी।
- केंद्रीय विधानमंडल में बम फेंकना (1929):
- 8 अप्रैल, 1929 को, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ‘बहरों को सुनाने के लिए’ दिल्ली में केंद्रीय विधानमंडल (Central Legislative Assembly) में बम फेंके।
- बम फेंकने का उद्देश्य किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार के जन सुरक्षा विधेयक (Public Safety Bill) और व्यापार विवाद विधेयक (Trade Disputes Bill) जैसे दमनकारी कानूनों का विरोध दर्ज कराना था।
- उन्होंने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ (क्रांति अमर रहे) के नारे लगाए और पर्चे फेंके।
- लाहौर षड्यंत्र केस: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को सांडर्स की हत्या और केंद्रीय विधानमंडल में बम फेंकने के लिए दोषी ठहराया गया।
4. विचार और दर्शन (Thoughts and Philosophy)
भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि एक गहरे विचारक और समाजवादी दार्शनिक भी थे।
- समाजवादी विचार: वे मार्क्सवाद और समाजवाद से गहरे प्रभावित थे। उनका मानना था कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं होनी चाहिए, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समानता भी होनी चाहिए।
- नास्तिकता: उन्होंने अपनी पुस्तक ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ (Why I Am an Atheist) में अपने नास्तिक विचारों को स्पष्ट किया।
- ‘इंकलाब जिंदाबाद’: यह नारा उनके द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था, जिसका अर्थ है ‘क्रांति अमर रहे’। यह नारा केवल राजनीतिक क्रांति तक सीमित नहीं था, बल्कि सामाजिक और वैचारिक क्रांति की भी वकालत करता था।
- बलिदान का महत्व: उनका मानना था कि बलिदान ही जनता को जगाने और क्रांति लाने का सबसे प्रभावी तरीका है।
- मानवतावाद: वे मानव गरिमा और सभी मनुष्यों की समानता में विश्वास रखते थे।
5. फांसी और विरासत (Execution and Legacy)
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को उनके बलिदान के लिए हमेशा याद किया जाता है।
- फांसी: 23 मार्च, 1931 को, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई। इस दिन को भारत में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- विरासत:
- भगत सिंह भारत के युवाओं के लिए बलिदान, साहस और देशभक्ति के प्रतीक बन गए।
- उनके विचारों ने भविष्य के समाजवादी आंदोलनों और स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया।
- उन्हें भारतीय राष्ट्रवाद के एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत और वैचारिक प्रतिरोध प्रस्तुत किया।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे नायक थे जिन्होंने अपने छोटे से जीवनकाल में देश के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया। एक क्रांतिकारी, विचारक और समाजवादी के रूप में, उन्होंने न केवल ब्रिटिश शासन को सशस्त्र संघर्ष से चुनौती दी, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समानता पर आधारित एक नए भारत की कल्पना भी की। सांडर्स की हत्या और केंद्रीय विधानमंडल में बम फेंकने जैसी उनकी साहसिक कार्रवाइयों ने भारतीयों में आत्म-विश्वास और ब्रिटिश शासन के प्रति भय को कम किया। 23 मार्च, 1931 को उनका बलिदान भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया और उन्होंने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अमिट छाप छोड़ी। भगत सिंह भारतीय इतिहास में एक ऐसे प्रतीक बने रहेंगे जिन्होंने अपने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।