कैबिनेट मिशन (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
कैबिनेट मिशन (Cabinet Mission) ब्रिटिश सरकार द्वारा मार्च 1946 में भारत भेजा गया एक उच्च-स्तरीय मिशन था। इसका मुख्य उद्देश्य भारत को सत्ता हस्तांतरण की योजना तैयार करना और भारत के लिए एक संविधान सभा के गठन का मार्ग प्रशस्त करना था। यह मिशन द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति और भारत में बढ़ती राष्ट्रवादी भावना के बाद आया था।
1. पृष्ठभूमि और मिशन के कारण (Background and Reasons for the Mission)
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की बदलती परिस्थितियों और भारत में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता ने ब्रिटिश सरकार को कैबिनेट मिशन भेजने के लिए प्रेरित किया।
- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति: द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की जीत के बाद, ब्रिटिश सरकार पर भारत को स्वतंत्रता देने का दबाव बढ़ गया था।
- लेबर पार्टी की सरकार: ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार सत्ता में आई थी, जो भारत के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण थी और स्वतंत्रता के पक्ष में थी। क्लीमेंट एटली तब ब्रिटिश प्रधान मंत्री थे।
- भारत में बढ़ती अशांति: भारत में शाही भारतीय नौसेना विद्रोह (1946), विभिन्न किसान और मजदूर आंदोलन, और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के बाद की बढ़ती राष्ट्रवादी भावना ने ब्रिटिश सरकार को यह एहसास कराया कि अब भारत पर शासन करना मुश्किल है।
- सांप्रदायिक समस्या: मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग और हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ रहा था, जिससे सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया जटिल हो गई थी।
- क्रिप्स मिशन की विफलता: क्रिप्स मिशन (1942) की विफलता के बाद, एक नए और अधिक व्यापक प्रस्ताव की आवश्यकता थी।
2. कैबिनेट मिशन के सदस्य (Members of the Cabinet Mission)
कैबिनेट मिशन में ब्रिटिश कैबिनेट के तीन प्रमुख सदस्य शामिल थे।
- लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस: भारत के राज्य सचिव (Secretary of State for India) – मिशन के अध्यक्ष।
- सर स्टैफोर्ड क्रिप्स: बोर्ड ऑफ ट्रेड के अध्यक्ष (President of the Board of Trade) – क्रिप्स मिशन (1942) का नेतृत्व किया था।
- ए.वी. अलेक्जेंडर: फर्स्ट लॉर्ड ऑफ द एडमिरल्टी (First Lord of the Admiralty)।
3. कैबिनेट मिशन के प्रमुख प्रस्ताव (Main Proposals of the Cabinet Mission)
कैबिनेट मिशन ने भारत के लिए एक संघीय ढांचा और संविधान सभा के गठन का प्रस्ताव दिया, जिसमें पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया गया।
- अविभाजित भारत का प्रस्ताव: मिशन ने पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया और एक अविभाजित भारत का प्रस्ताव रखा। उनका मानना था कि पाकिस्तान एक व्यवहार्य राज्य नहीं होगा।
- भारतीय संघ: भारत को एक संघ (Union) होना चाहिए, जिसमें ब्रिटिश भारत और रियासतें दोनों शामिल होंगी। संघ के पास रक्षा, विदेश मामले और संचार का नियंत्रण होगा।
- प्रांतों का समूहीकरण (Grouping of Provinces): प्रांतों को तीन समूहों (Groups) में विभाजित किया जाएगा:
- ग्रुप A: हिंदू बहुल प्रांत (मद्रास, बंबई, मध्य प्रांत, संयुक्त प्रांत, बिहार, उड़ीसा)।
- ग्रुप B: उत्तर-पश्चिमी मुस्लिम बहुल प्रांत (पंजाब, उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत, सिंध)।
- ग्रुप C: उत्तर-पूर्वी मुस्लिम बहुल प्रांत (बंगाल, असम)।
- संविधान सभा का गठन: एक संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जिसमें कुल 389 सदस्य होंगे: 292 ब्रिटिश प्रांतों से (प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा चुने गए), 93 रियासतों से (नामांकित), और 4 मुख्य आयुक्त प्रांतों से।
- अंतरिम सरकार: संविधान बनने तक एक अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा, जिसमें सभी प्रमुख भारतीय राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
- रियासतों पर संप्रभुता: ब्रिटिश संप्रभुता (Paramountcy) रियासतों पर समाप्त हो जाएगी, और उन्हें भारतीय संघ में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया जाएगा।
4. कैबिनेट मिशन की प्रतिक्रिया और विफलता (Reaction and Failure of the Cabinet Mission)
कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को विभिन्न दलों ने अलग-अलग कारणों से स्वीकार या अस्वीकार कर दिया, जिससे अंततः यह असफल रहा।
- कांग्रेस की प्रतिक्रिया:
- कांग्रेस ने अविभाजित भारत के प्रस्ताव और संविधान सभा के गठन के विचार को स्वीकार किया।
- हालांकि, कांग्रेस ने प्रांतों के समूहीकरण (Grouping) के अनिवार्य प्रावधानों पर आपत्ति जताई, विशेषकर ग्रुप B और C में असम और NWFP जैसे हिंदू बहुल क्षेत्रों को मुस्लिम बहुल प्रांतों के साथ रखने पर।
- कांग्रेस ने अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के साथ शक्ति-साझाकरण पर भी आपत्ति जताई।
- मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया:
- मुस्लिम लीग ने प्रारंभ में कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया क्योंकि उन्हें लगा कि समूहीकरण योजना से अंततः पाकिस्तान का निर्माण हो सकता है।
- हालांकि, जब कांग्रेस ने समूहीकरण को अनिवार्य मानने से इनकार कर दिया, तो लीग ने 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस’ (Direct Action Day) की घोषणा की, जिससे व्यापक सांप्रदायिक दंगे हुए।
- लीग ने बाद में संविधान सभा का बहिष्कार किया और पाकिस्तान की अपनी मांग पर अड़ी रही।
- मिशन की विफलता: कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समूहीकरण और अंतरिम सरकार के गठन पर आम सहमति न बन पाने के कारण मिशन अपने मुख्य उद्देश्य में असफल रहा।
5. कैबिनेट मिशन का महत्व और परिणाम (Significance and Consequences of the Cabinet Mission)
कैबिनेट मिशन की विफलता के बावजूद, इसने भारत के संवैधानिक और राजनीतिक भविष्य पर गहरा प्रभाव डाला।
- पाकिस्तान की मांग की अस्वीकृति: मिशन ने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया, हालांकि समूहीकरण योजना ने भविष्य के विभाजन के लिए एक आधार प्रदान किया।
- संविधान सभा का गठन: कैबिनेट मिशन की सिफारिशों के आधार पर ही संविधान सभा का गठन किया गया, जिसने भारत के संविधान का निर्माण किया।
- अंतरिम सरकार का गठन: मिशन के प्रस्तावों के बाद, सितंबर 1946 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन किया गया।
- सत्ता हस्तांतरण का मार्ग: यद्यपि मिशन अपने तात्कालिक उद्देश्य में असफल रहा, इसने ब्रिटिश सरकार की भारत को स्वतंत्रता देने की इच्छा को स्पष्ट कर दिया और सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को तेज किया।
- सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा: मिशन की अस्पष्टताओं और विभिन्न दलों की व्याख्याओं ने सांप्रदायिक विभाजन को और गहरा किया, जिससे अंततः भारत का विभाजन हुआ।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
कैबिनेट मिशन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया एक महत्वपूर्ण प्रयास था। लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस, सर स्टैफोर्ड क्रिप्स और ए.वी. अलेक्जेंडर के नेतृत्व में आए इस मिशन ने एक अविभाजित भारत, एक संघीय ढांचा और संविधान सभा के गठन का प्रस्ताव दिया। यद्यपि इसने पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया, लेकिन प्रांतों के समूहीकरण पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच सहमति न बन पाने के कारण यह अपने मुख्य उद्देश्य में असफल रहा। हालांकि, कैबिनेट मिशन की सिफारिशों के आधार पर ही संविधान सभा का गठन हुआ और अंतरिम सरकार बनी, जिसने भारत के संवैधानिक भविष्य की नींव रखी। यह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बना रहेगा, जो स्वतंत्रता की दहलीज पर भारत के सामने खड़ी जटिलताओं और चुनौतियों को दर्शाता है।