उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में कत्यूरी शासन के पतन के बाद चन्द्र वंश का उदय हुआ। चन्द्र शासकों ने एक विस्तृत और सुदृढ़ राज्य की स्थापना की, जिसने कुमाऊँ की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना पर गहरी छाप छोड़ी।
चन्द्र शासन (Chand Dynasty)
- चन्द्र वंश ने कुमाऊँ पर लगभग 700 वर्षों तक शासन किया (अनुमानित 10वीं/11वीं शताब्दी से 1790 ई. तक)।
- इनकी प्रारंभिक राजधानी चम्पावत थी, जिसे बाद में अल्मोड़ा स्थानांतरित किया गया।
- चन्द्र शासकों का राजचिह्न गाय था।
- इस वंश के कुल 62 शासक माने जाते हैं।
उत्पत्ति और स्थापना
चन्द्र वंश की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न मत प्रचलित हैं:
- प्रयाग (इलाहाबाद) से आगमन: सर्वाधिक मान्य मत के अनुसार, चन्द्र शासक प्रयाग के निकट झूसी से आए थे।
- संस्थापक:
- सोमचन्द (लगभग 1020/1025 ई. या कुछ स्रोतों के अनुसार 700 ई.): अधिकांश इतिहासकार इन्हें चन्द्र वंश का संस्थापक मानते हैं। माना जाता है कि वे कन्नौज के शासक की पुत्री से विवाह के उपरांत दहेज में चम्पावत क्षेत्र प्राप्त कर यहाँ शासन स्थापित किया। उन्होंने स्थानीय रावत राजा (कत्यूरी सामंत) को पराजित किया।
- थोरचन्द (लगभग 1261 ई.): एटकिंसन और बद्रीदत्त पाण्डेय के अनुसार, थोरचन्द संस्थापक थे।
- सोमचन्द ने चम्पावत में राजबुंगा किले का निर्माण करवाया और अपने सहयोगी कार्की, बोरा, तड़ागी और चौधरी (चौड़पाल) लोगों को मंत्री और सेनापति नियुक्त किया, जिन्हें ‘चाराल’ कहा गया।
प्रमुख चन्द्र शासक और उनकी उपलब्धियाँ
1. सोमचन्द
- चन्द्र वंश का संस्थापक (बहुमान्य मत)।
- राजधानी: चम्पावत। राजबुंगा किले का निर्माण।
- स्थानीय रावत राजा को पराजित किया।
- ‘चाराल’ व्यवस्था की शुरुआत।
- पंचायती राज व्यवस्था का सूत्रपात किया, जिसमें मेहरा और फर्त्यालों को महत्व दिया।
2. इन्द्रचन्द
- रेशम उत्पादन और व्यापार को प्रोत्साहित किया। चीन (नेपाल के रास्ते) से रेशम मंगाकर रेशम वस्त्र बनाने का कार्य शुरू करवाया।
- इनके समय में पटरंगवाली प्रथा (रेशम बुनकरों से संबंधित) प्रचलित थी।
3. वीणाचन्द
- एक विलासी शासक, जिसके समय में खस राजाओं ने विद्रोह कर सत्ता हथिया ली थी।
4. वीरचन्द
- खस राजाओं से पुनः सत्ता प्राप्त की।
5. ज्ञानचन्द (गरुड़ ज्ञानचन्द) (1365-1420 ई.)
- दिल्ली सल्तनत के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक से मुलाकात की और “गरुड़” की उपाधि प्राप्त की। इनका राजचिह्न गरुड़ था।
- तराई-भाबर क्षेत्र पर अधिकार किया।
- शेरा खड़कोत इनका प्रसिद्ध सेनापति था।
- इनके समय का एक महत्वपूर्ण ताम्रपत्र गोबासा ताम्रपत्र (1317 शक संवत) है।
6. भारतीचन्द (1437-1450 ई.)
- एक शक्तिशाली और महत्वाकांक्षी शासक।
- डोटी (पश्चिमी नेपाल) के रैका राजाओं के आधिपत्य से कुमाऊँ को मुक्त कराया। 12 वर्षीय युद्ध किया।
- इनके समय में नायक जाति की उत्पत्ति हुई (युद्ध के दौरान सैनिकों द्वारा स्थानीय स्त्रियों से संबंध)।
7. रत्नचन्द (1450-1488 ई.)
- डोटी और सोर पर विजय प्राप्त की।
- पहला भूमि बंदोबस्त करवाया।
8. कीर्तिचन्द (1488-1503 ई.)
- गढ़वाल के पंवार शासक अजयपाल को पराजित किया और बारहमण्डल पर अधिकार किया।
9. भीष्मचन्द (1555-1560 ई.)
- इन्होंने राजधानी चम्पावत से अल्मोड़ा (खगमरा कोट) स्थानांतरित करने का प्रयास किया और खगमरा किले का निर्माण शुरू करवाया।
- इनकी हत्या गजुआ ठिंगा नामक व्यक्ति ने कर दी थी।
10. बालो कल्याणचन्द (1560-1568 ई.)
- इन्होंने अल्मोड़ा नगर की स्थापना की और राजधानी को चम्पावत से अल्मोड़ा पूर्ण रूप से स्थानांतरित किया।
- अल्मोड़ा में लालमंडी किले (फोर्ट मोयरा) का निर्माण करवाया।
- चंपावत के बालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
11. रुद्रचन्द (1568-1597 ई.)
- मुगल सम्राट अकबर के समकालीन थे। 1587 में लाहौर में अकबर से भेंट की और उनकी अधीनता स्वीकार की।
- अकबर ने इन्हें चौरासी माल परगना (तराई) का फरमान दिया।
- इन्होंने सामाजिक व्यवस्था स्थापित की, जिसमें औली ब्राह्मणों को महत्व दिया और धर्मनिर्णय पुस्तक की रचना करवाई।
- अल्मोड़ा में मल्ला महल (राजमहल) का निर्माण करवाया।
- रुद्रपुर नगर बसाया।
- गढ़वाल पर आक्रमण किया लेकिन सफल नहीं हुए।
12. लक्ष्मीचन्द (1597-1621 ई.)
- इन्होंने गढ़वाल पर सात बार असफल आक्रमण किए, लेकिन आठवें आक्रमण में सफल रहे।
- इनके सेनापति गैंडा सिंह और कालू तड़ागी थे।
- बागेश्वर के बागनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार 1602 ई. में करवाया।
- न्याय व्यवस्था के लिए न्यूवली और बिस्टाली नामक कचहरियाँ स्थापित कीं।
13. बाज बहादुर चन्द (1638-1678 ई.)
- यह चन्द्र वंश का सबसे शक्तिशाली शासक माना जाता है।
- मुगल सम्राट शाहजहाँ के समकालीन। शाहजहाँ ने इन्हें “बहादुर” और “जमींदार” की उपाधि दी।
- तिब्बत और गढ़वाल पर आक्रमण किए। हूणिया देश (तिब्बत) पर आक्रमण कर कैलाश मानसरोवर तक अधिकार किया और तिब्बती शासक से कर वसूला।
- पिथौरागढ़ में एक हथिया देवाल का निर्माण करवाया।
- बाजपुर नगर (ऊधमसिंह नगर) बसाया।
- घूंठ भूमि दान की प्रथा शुरू की।
14. उद्योतचन्द (1678-1698 ई.)
- डोटी और गढ़वाल पर सफल आक्रमण किए।
- अल्मोड़ा में पार्वतीश्वर, उद्योतचन्द्रेश्वर और त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का निर्माण करवाया।
15. जगतचन्द (1708-1720 ई.)
- इनके शासनकाल को “कुमाऊँ का स्वर्णकाल” कहा जाता है।
- इन्होंने गढ़वाल पर आक्रमण कर श्रीनगर पर अधिकार कर लिया था।
- इनकी मृत्यु चेचक से हुई।
16. कल्याणचन्द पंचम (1729-1747 ई.)
- इनके समय में रुहेलों ने कुमाऊँ पर आक्रमण (1743-44) किया और अल्मोड़ा पर अधिकार कर लिया।
- गढ़वाल के शासक प्रदीप शाह ने इनकी सहायता की थी।
17. दीपचन्द (1747-1777 ई.)
- इनके समय में पानीपत का तीसरा युद्ध (1761) हुआ, जिसमें इन्होंने मराठों के विरुद्ध अहमदशाह अब्दाली का साथ देने के लिए अपनी सेना भेजी थी।
18. मोहनचन्द (1777-1779 ई. और 1786-1788 ई.)
- अंतिम महत्वपूर्ण शासकों में से एक। इनके समय में राज्य में अस्थिरता रही।
19. महेन्द्रचन्द (1788-1790 ई.)
- चन्द्र वंश का अंतिम शासक।
- 1790 ई. में गोरखाओं ने हवालबाग के युद्ध में इन्हें पराजित कर कुमाऊँ पर अधिकार कर लिया।
चन्द्र शासन की प्रशासनिक और सामाजिक व्यवस्था
- प्रशासन: राजा सर्वोच्च होता था। राज्य परगनों और गर्खों में विभाजित था। ‘चाराल’ (प्रारंभिक मंत्री) और बाद में अन्य मंत्री और अधिकारी प्रशासन में सहायता करते थे।
- राजस्व: भू-राजस्व आय का प्रमुख स्रोत था। विभिन्न प्रकार के कर (जैसे सिरती, ज्यूलिया, कटक) लगाए जाते थे।
- सैन्य व्यवस्था: स्थायी सेना के साथ-साथ आवश्यकता पड़ने पर स्थानीय लोगों को भी सेना में भर्ती किया जाता था।
- समाज: समाज मुख्यतः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्णों में विभाजित था। खस जाति का भी महत्वपूर्ण स्थान था।
- न्याय व्यवस्था: राजा सर्वोच्च न्यायाधीश होता था। स्थानीय स्तर पर पंचायतें भी न्याय करती थीं। लक्ष्मीचन्द ने न्यूवली और बिस्टाली कचहरियाँ स्थापित कीं।
निष्कर्ष (Conclusion)
चन्द्र वंश ने कुमाऊँ क्षेत्र में एक लंबे और प्रभावशाली शासन की स्थापना की। उनके शासनकाल में कला, साहित्य और स्थापत्य का विकास हुआ, साथ ही एक विशिष्ट प्रशासनिक और सामाजिक संरचना भी विकसित हुई। यद्यपि आंतरिक कलह और बाहरी आक्रमणों के कारण उनका पतन हुआ, तथापि कुमाऊँ के इतिहास और संस्कृति पर चन्द्र शासन की अमिट छाप आज भी विद्यमान है।
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