कुली बेगार आंदोलन (Coolie Begar Movement) – उत्तराखंड
1. परिचय (Introduction)
कुली बेगार आंदोलन उत्तराखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन था। यह आंदोलन 1921 में शुरू हुआ और इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन द्वारा थोपे गए कुली बेगार प्रथा को समाप्त करना था। इस प्रथा के तहत स्थानीय लोगों को बिना किसी पारिश्रमिक के ब्रिटिश अधिकारियों और यात्रियों के सामान ढोने के लिए मजबूर किया जाता था।
2. कुली बेगार प्रथा का विवरण (Details of Coolie Begar System)
2.1 कुली प्रथा
कुली प्रथा के तहत स्थानीय लोगों को सामान ढोने के लिए मजदूरी दी जाती थी, लेकिन यह मजदूरी बहुत कम होती थी और कार्य अत्यधिक कठोर।
2.2 बेगार प्रथा
बेगार प्रथा में लोगों को बिना किसी पारिश्रमिक के काम करने के लिए मजबूर किया जाता था। यह अनिवार्य श्रम था, जो ब्रिटिश अधिकारियों के लिए किया जाता था।
2.3 कुली-उतार प्रथा
इस प्रथा में स्थानीय मुखियाओं को अपने क्षेत्र के लोगों की सूची देनी होती थी, जिन्हें कुली या बेगार के रूप में भेजा जाता था।
3. आंदोलन के कारण (Causes of the Movement)
- ब्रिटिश शासन द्वारा स्थानीय लोगों का शोषण और अत्याचार।
- कुली बेगार प्रथा के कारण आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ।
- राष्ट्रीय आंदोलन का प्रभाव और स्वतंत्रता की भावना का प्रसार।
- स्थानीय नेताओं द्वारा जागरूकता अभियान।
4. आंदोलन के प्रमुख नेता (Key Leaders of the Movement)
नाम | जन्म वर्ष | जन्म स्थान | योगदान |
---|---|---|---|
बद्री दत्त पांडे | 1882 | अल्मोड़ा | आंदोलन के प्रमुख नेता, ‘कुमाऊँ केसरी’ उपाधि |
हरगोविंद पंत | 1885 | नैनीताल | आंदोलन में सक्रिय, कानूनी सहायता प्रदान की |
गोविंद बल्लभ पंत | 1887 | खोत, अल्मोड़ा | आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया |
श्याम लाल साह | 1895 | हल्द्वानी | जनता को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका |
5. आंदोलन की प्रमुख घटनाएँ (Major Events of the Movement)
5.1 अल्मोड़ा सम्मेलन
जनवरी 1921 में अल्मोड़ा में एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें कुली बेगार प्रथा के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाई गई।
5.2 कुली बेगार रजिस्टर का त्याग
मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी 1921 को बागेश्वर में सरयू नदी के किनारे लोगों ने कुली बेगार रजिस्टर को जल में प्रवाहित किया। यह आंदोलन का प्रतीकात्मक विरोध था।
5.3 ब्रिटिश प्रशासन की प्रतिक्रिया
ब्रिटिश प्रशासन ने आंदोलन को दबाने के लिए कठोर कदम उठाए, लेकिन जनता के दृढ़ संकल्प के आगे उन्हें झुकना पड़ा।
6. आंदोलन के परिणाम (Results of the Movement)
- कुली बेगार प्रथा का अंत हुआ।
- जनता में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी।
- राष्ट्रीय आंदोलन को उत्तराखंड में गति मिली।
- स्थानीय नेताओं की प्रतिष्ठा बढ़ी।
7. आंदोलन का महत्व (Significance of the Movement)
कुली बेगार आंदोलन उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला बड़ा जन आंदोलन था। इसने न केवल एक अमानवीय प्रथा को समाप्त किया, बल्कि लोगों में स्वतंत्रता और अधिकारों के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई। यह आंदोलन राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अभिन्न हिस्सा बना।
8. परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण तथ्य (Important Facts for Exams)
- कुली बेगार आंदोलन 1921 में उत्तराखंड में शुरू हुआ।
- बागेश्वर में सरयू नदी के किनारे रजिस्टरों का त्याग किया गया।
- बद्री दत्त पांडे आंदोलन के प्रमुख नेता थे।
- ‘कुमाऊँ केसरी’ की उपाधि बद्री दत्त पांडे को मिली।
- आंदोलन के परिणामस्वरूप कुली बेगार प्रथा समाप्त हुई।
9. निष्कर्ष (Conclusion)
कुली बेगार आंदोलन उत्तराखंड के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इसने न केवल एक अन्यायपूर्ण प्रथा को समाप्त किया, बल्कि जनता में अधिकारों के प्रति जागरूकता भी लाई। यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखंड के योगदान का प्रतीक है।