परिचय: ऊष्मागतिकी के नियम
ऊष्मागतिकी (Thermodynamics) भौतिकी की वह शाखा है जो ऊष्मा, कार्य और ऊर्जा के बीच संबंधों का अध्ययन करती है। इसके मौलिक सिद्धांत चार नियमों पर आधारित हैं, जो ब्रह्मांड में ऊर्जा के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं।
ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम (Zeroth Law)
यह नियम तापीय साम्यावस्था (Thermal Equilibrium) की अवधारणा को परिभाषित करता है।
कथन: “यदि दो निकाय (A और B) किसी तीसरे निकाय (C) के साथ अलग-अलग तापीय साम्यावस्था में हैं, तो वे (A और B) एक दूसरे के साथ भी तापीय साम्यावस्था में होंगे।”
- यह नियम तापमान की अवधारणा का आधार है।
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम (First Law)
यह नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम का ही एक रूप है।
कथन: “किसी विलगित निकाय की कुल ऊर्जा स्थिर रहती है। ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है, केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।”
सूत्र
ΔU = Q – W
जहाँ:
- ΔU = निकाय की आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन
- Q = निकाय को दी गई ऊष्मा (ऊष्मा देने पर धनात्मक)
- W = निकाय द्वारा किया गया कार्य (कार्य करने पर धनात्मक)
ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम (Second Law)
यह नियम ऊष्मा प्रवाह की दिशा और ऊर्जा रूपांतरण की सीमाओं को बताता है। यह एंट्रॉपी (Entropy) की अवधारणा को प्रस्तुत करता है, जो किसी निकाय की अव्यवस्था का माप है।
इसके दो प्रमुख कथन हैं:
- केल्विन-प्लांक कथन: “ऐसा कोई भी इंजन बनाना असंभव है जो एक चक्रीय प्रक्रम में कार्य करते हुए, ऊष्मा स्रोत से ली गई संपूर्ण ऊष्मा को कार्य में बदल दे।” (अर्थात् 100% दक्ष इंजन बनाना असंभव है)।
- क्लाउसियस कथन: “बाहरी कार्य के बिना, ऊष्मा का प्रवाह ठंडी वस्तु से गर्म वस्तु की ओर स्वतः नहीं हो सकता।”
संख्यात्मक उदाहरण
उदाहरण (प्रथम नियम)
प्रश्न: एक ऊष्मागतिक निकाय को 200 J ऊष्मा दी जाती है और निकाय द्वारा 50 J कार्य किया जाता है। निकाय की आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन की गणना कीजिए।
हल:
दिया है:
दी गई ऊष्मा (Q) = +200 J (क्योंकि ऊष्मा दी जा रही है)
किया गया कार्य (W) = +50 J (क्योंकि निकाय द्वारा कार्य किया जा रहा है)
प्रथम नियम के सूत्र से: ΔU = Q – W
ΔU = 200 J – 50 J
ΔU = 150 J
अतः, निकाय की आंतरिक ऊर्जा में 150 J की वृद्धि होगी।